खजुराहो नृत्य समारोह की चौथी शाम फगुनाई बयार मानो मादकता घोल रही थी। उसमें भी जब वैभवशाली मंदिरों के आगोश में बनाये गए मंच पर सोनिया ओर रागिनी जैसी नृत्यांगनाएँ मंच पर अवतरित हुईं तो दर्शको को लगा कि देवलोक से कोई नर्तकी कंदरिया महादेव या जगदम्बी को अपने नृत्य से रिझाने उतरी है। सचमुच बड़ा ही अनूठा अहसास था। आज की संगीतमयी प्रस्तुतियों ने भी रसिकों को आनंदलोक की सैर कराई।
शाम की पहली विदुषी नृत्यांगना सोनिया परचुरे के कथक नृत्य से हुई। उन्होंने नृत्य की शुरुआत अर्द्धनारीश्वर नटेश्वर स्त्रोत से की। राग मधुवंती के मदहोश कर देने वाले सुरों में पगी रचना को उन्होंने बड़े ही मनोयोग से प्रस्तुत किया।
सोनिया जी ने कथक की तालीम किसी विशेष घराने से नहीं ली है, फिर भी तमाम घराने उनके नृत्य में शिद्दत से महसूस किए जा सकते हैं। अर्द्धनारीश्वर नटेश्वर स्त्रोत में आदि शंकराचार्य कृत इस रचना में भगवान शिव और माता पार्वती के अलौकिक स्वरूप का वर्णन है। सोनिया जी ने एक कथा के माध्यम से इसे पेश किया। इस कथा में पार्वती जी शिव से कहती है कि आप अपने द्वारा बनाई गई सृष्टि या संसार के बारे में बताइए, तब शिव कहते है कि मैं तुम्हें अपने मे समा लूंगा तब आप सब जान जाएगी। ऐसा ही होता है। ये रचना प्रकृति और पुरुष के मिलन की भी बयानगी है। सोनिया जी ने नृत भावों से शिव और पार्वती को बखूबी साकार किया।
उनकी अगली प्रस्तुति शुद्ध नृत्य की थी, जिसमें तीन ताल में ठाट, आमद तत्कार की प्रस्तुति दी। साथ ही दादा गुरु उस्ताद अल्लारखा ख़ाँ साहब एवं तालयोगी पं. सुरेश तलवलकर की कुछ खास परनों पर भी नृत्य किया। इस प्रस्तुति में सोनिया जी ने अंग संचालन के साथ पद संचालन आंखों की चाल और तत्कार में पैरों की तैयारी का गजब प्रदर्शन किया। प्रस्तुति का समापन उन्होंने भाव नृत्य से किया। विदुषी प्रभा अत्रे की राग किरवानी के सुरों में सजी बंदिश नंद नंदन मनमोहन श्यामसुंदर पर उन्होंने कृष्ण को साकार करने की कोशिश की। झपताल और त्रिताल के मिलन से तैयार इस प्रस्तुति पर रसिकों ने भरपूर तालियाँ बजाईं। सोनिया जी के साथ तबले पर आशय कुलकर्णी, हारमोनियम पर श्रेयस गोवित्रिकर, गायन पर मंजुश्री पाटिल, बाँसुरी पर क्षितिज सक्सेना ने साथ दिया जबकि पढन्त पर हर्षिता मुले एवं ईशा गाडगील ने साथ दिया।
कोट्टायम केरल से कलामंडलम सुनील एवं पेरिस लक्ष्मी की जोड़ी ने कथकली और भरतनाट्यम की दूसरी प्रस्तुति दी। इस जोड़ी में सुनील कथकली और पेरिस लक्ष्मी भरतनाट्यम करती हैं। दोनों ने आज अपनी प्रस्तुति की शुरुआत आनंद सागरथिल से की। भगवान कृष्ण महिमा पर आधारित यह रचना राग सन्मुखप्रिया और आदि ताल में थी। पल्लीपुराम उन्नीकृष्णन के संगीत संयोजन में सजी इस रचना पर दोनों ने बड़ी भावप्रवणता के साथ नृत्य प्रतुत किया।
अगली प्रस्तुति में कृष्ण और गोपियों की दिव्य रासलीला पर कलामंडलम सुनील एवं पेरिस लक्ष्मी की जोड़ी ने अद्भुत नृत्य किया। स्वाति थिरूनाल के संगीत से सजी यह रचना राग मिस्त्र पहाड़ी और मिस्त्र चापु ताल में निबद्ध थी। सुनील और पेरिस लक्ष्मी ने बड़े ही रंजक अन्दाज़ में ये प्रस्तुति दी। सुनील के कथकली में जहाँ अभिनय नृत्य और संगीत के समन्वय दिखा वहीं पेरिस लक्ष्मी के निर्देशन में मुख्य और हस्त मुद्राओं के साथ पद संचालन का संतुलन देखने को मिला।
अगले क्रम में कथकली में दुर्योधनवधम की प्रस्तुति "परी पाही "दी गई। इसमें द्रौपदी भगवान कृष्ण के पास आती है, उन्हें दुर्योधन से हुई हिंसा की याद दिलाती है और उन्हें अपनी रक्षा के लिए अपने वचन का सम्मान करने के लिए प्रेरित करती है। सुनील ने यह कथा बड़े ही ओजपूर्ण ढंग से नृत्य मुद्राओं में पिरोते हुए पेश की। रागमलिका के सुरों में सजी इस प्रस्तुति को खूब सराहा गया। नृत्य का समापन आपने 'गीथोपदेशम' से किया। ये प्रस्तुति भी रागमाला में थी। कुरुक्षेत्र के युद्ध के मैदान में जब अर्जुन अपने ही रिश्तेदारों को अपने दुश्मन के रूप में खड़ा देखकर अपना साहस खो देता है तब कृष्ण उसे गीता और अपने लौकिक रूप का खुलासा करते हैं। यह पेशकस भी खूब पसंद की गई।
कार्यक्रम का समापन दिल्ली की रागिनी नागर के कथक नृत्य से हुई। शमा घाटे की शिष्या रागिनी ने अपने नृत्य की शुरुआत शिव स्तुति से की। राग भैरव के स्वरों में पगी रचना "तस्मै नमः परम कारनाय" पर रागिनी ने अपने नृतभावों से शिव के शांत और तांडव स्वरूप का शानदार प्रस्तुतिकरण किया। इसके बाद उन्होंने तीनताल में शुद्ध नृत्य की प्रस्तुति दी। उन्होंने तोड़े, टुकड़े, परनों के साथ तत्कार मे पैरों का काम तेजी तैयारी से पेश किया। कालिया मर्दन की रचना शमा भाटे के नृत्य संयोजन में सजी थी। राग परज और तीन ताल में सजी कवित्त की बंदिश "कालिया पे ठाड़े आवें मोहन" पर रागिनी ने बड़े ही सहज ढंग से नृत्य पेश किया। उनके साथ तबले पर योगेश गंगानी, हरमिनियम एवं गायन पर शमीउल्लाह खान, बाँसुरी पर अतुल शंकर, पढन्त पर शाम्भवी कुलकर्णी ने साथ दिया।
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