शुक्रवार, 10 फरवरी को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी है। इस तिथि से होलाष्टक शुरू हो रहे हैं, जो कि पूर्णिमा पर होलिका दहन तक रहेंगे। अष्टमी से पूर्णिमा तक, इन आठ दिनों में शुभ काम नहीं किए जाते हैं। होलिका दहन के बाद फिर से शुभ और मांगलिक कर्म शुरू हो जाते हैं।
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा ने बताया कि होलाष्टक का मतलब है होली से पहले के आठ दिन। ऐसी मान्यता है कि असुर हिरण्यकश्चप ने इन आठ दिनों में ही भक्त प्रहलाद को कई तरह कष्ट दिए थे। इन दिनों में नए घर में प्रवेश, शादी, मुंडन, नए व्यापार की शुरुआत करने से बचना चाहिए।
होलाष्टक में मंत्र जाप, तप और ध्यान जरूर करें
होलाष्टक का समय जाप, तप और ध्यान करने के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। इन दिनों में ही भक्त प्रहलाद में भगवान विष्णु की अटूट भक्ति की थी। प्रहलाद के पिता हरिण्यकश्यप ने अपने प्रहलाद पर कई अत्याचार किए, कई बार उसे मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार विष्णुजी की कृपा से उसके प्राण बच गए।
इन दिनों में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। अगर आप शिव जी के भक्त हैं तो शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।
हनुमान जी के भक्त हैं तो हनुमान मंदिर में दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।
इन दिनों भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप बालगोपाल की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। दक्षिणावर्ती शंख से भगवान का अभिषेक करें। कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जाप करें।
होलाष्टक के दिनों में नकारात्मकता ज्यादा सक्रिय रहती है। इस वजह से हमारे विचारों में भी नकारात्मकता बढ़ जाती है। होलाष्टक में मन को शांत और सकारात्मक रखने के लिए ध्यान करें और भगवान का ध्यान करेंगे तो जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।
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