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इस बार होली पर भद्रा दोष:17 मार्च को होलिका दहन रात 1 बजे के बाद करना शुभ; 18 को उदय काल की पूर्णिमा में मनेगी होली

इस बार होलिका दहन पर यानी 17 मार्च को दोपहर से देर रात तक भद्रा रहेगी। ऐसे में होलिका दहन शाम को गोधूलि वेला में नहीं हो पाएगा और इसके लिए लोगों के पास सिर्फ रात का ही समय रहेगा। इससे पहले 10 तारीख को होलाष्टक शुरू हो जाएगा। जो कि होली दहन तक रहेगा। इन आठ दिनों में हर तरह के शुभ और मांगलिक काम करने की मनाही होती है। ग्रंथों के मुताबिक इन दिनों में भगवान विष्णु की पूजा और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना शुभ होता है।

17 मार्च को रात 1 बजे तक रहेगी भद्रा
होलिका दहन वाले दिन भद्रा का योग दोपहर तकरीबन 1.30 से रात 1 बजे तक रहेगा। इस कारण संध्या काल में गोधूलि वेला के समय भद्रा का प्रभाव होने से होलिका दहन नहीं किया जा सकेगा। इसलिए अगले दिन सुबह तक पूर्णिमा तिथि होने से रात मध्य रात्रि के बाद यानी रात 1 बजे के बाद होली जलाने का मुहूर्त रहेगा।

पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि भद्रा योग को शास्त्रों में अशुभ माना गया है। क्योंकि भद्रा के स्वामी यमराज होते हैं। पूर्णिमा पर भद्रा योग बनने की आशंका रहती है। इसलिए सावन की पूर्णिमा पर रक्षाबंधन और फाल्गुन पूर्णिमा पर मनाए जाने वाले होली के त्योहार पर भद्रा दोष का विचार किया जाता है।

होलाष्टक 10 मार्च से
धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से यानी रंग खेलने वाली होली से 8 दिन पहले ही होलाष्टक शुरू हो जाता है। इसलिए होलाष्टक के कारण 10 मार्च से लेकर 17 मार्च तक सभी शुभ कामों को करने की मनाही रहेगी।

इन दिनों में विष्णु भक्त प्रहलाद ने भगवान विष्णु की आराधना की थी और भगवान ने उनकी सहायता की। इसलिए होलाष्टक के दौरान भगवान विष्णु की पूजा स्नान-दान और मंत्र जाप करने का विधान है। होलाष्टक में महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से हर तरह के रोग और कष्टों से छुटकारा मिलता है और सेहत भी अच्छी रहती है।

18 मार्च को भी फाल्गुन पूर्णिमा, इसी दिन खेलेंगे होली
काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी के मुताबिक फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 17 मार्च को दोपहर करीब 1.20 पर शुरू होगी और अगले दिन दोपहर लगभ 12:40 तक रहेगी। 18 तारीख को उदयकालिन तिथि फाल्गुन पूर्णिमा ही रहेगी। इसी तिथि में होली खेली जाएगी। स्नान-दान और पूजा-पाठ के लिए भी ये ही दिन शुभ रहेगा। इसलिए संत, संन्यासी और अन्य श्रद्धालु शुक्रवार को ही सुबह तीर्थ स्नान भी करेंगे।

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