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होलिका दहन 17 की रात में:मथुरा के पास फालैन गांव को कहते हैं प्रहलाद का गांव, यहां जलती होली के बीच में से चलकर निकलता है पंडा

मथुरा, वृंदावन, बरसाना की होली विश्व प्रसिद्ध है। इनके साथ ही मथुरा के एक करीबी गांव फालैन की होली भी काफी प्रसिद्ध है। यहां मोनू पंडा जलती हुई होली के बीच में से तीसरी बार चलकर निकलेगा। फालैन गांव को प्रहलाद का गांव कहा जाता है। होली पर इस गांव में मेला लगता है, देश-दुनिया से हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। यात्रियों के स्वागत के लिए गांव के लोग अपने-अपने घरों की रंगाई-पुताई कराते हैं।

फालैन गांव के भागवत प्रवक्ता संत योगीराज महाराज ने बताया कि यहां होलिका दहन 17 और 18 की मध्य रात्रि में होगा। रात में करीब 4 बजे होलिका दहन किया जाएगा। होली पर फालैन में भव्य आयोजन किए जाते हैं। होलिका सजाने के लिए आसपास के 5-7 गांवों से लोग हजारों कंडे लेकर आते हैं। फालैन में करीब 25-30 फीट चौड़ी और 10-12 फीट ऊंची होलिका कंडों से तैयार की जाती है।

शुभ मुहूर्त में मोनू पंडा जी जलती होली में से निकलेंगे। ये कारनामा कुछ ही सेकंड्स का होता है। मोनू पंडा से पहले उनके पिता जी 10 बार जलती होली में से निकल चुके हैं। यहां हैरानी की बात ये है कि जलती होली में से निकलने वाले पंडा का बाल भी नहीं जलता है।

फालैन गांव के मंदिर में स्थापित प्रतिमाएं।
फालैन गांव के मंदिर में स्थापित प्रतिमाएं।

होली के लिए मोनू पंडा ऐसे करते हैं तैयारियां

होली से करीब एक महीने पहले से मोनू पंडा अपनी तैयारियों में जुट गए थे। वे घर छोड़कर यहां के प्रहलाद मंदिर में रह रहे हैं। मंदिर में लगातार पूजा और मंत्र जाप करते हैं। जलती होली से निकलने वाला पंडा एक महीने पहले लोगों के साथ पूरे गांव के परिक्रमा की गई थी, होली के स्थान की पूजा की। मोनू पंडा अन्न छोड़कर फलाहार कर रहे हैं। जलती होली में से निकलने से पहले मोनू पंडा करीब 3 दिन तक सोता भी नहीं है। होली से एक दिन पहले गांव के लोग कंडों की मदद से विशाल होलिका तैयार करेंगे। फाल्गुन पूर्णिमा पर होलिका पूजन किया जाएगा है और होली जलाई जाएगी। शुभ मुहूर्त में मोनू पंडा की बुआ प्रहलाद कुंड से एक लोटा पानी लेकर आएंगी और जलती होली में डाल देंगी। मान्यता है कि इससे होलिका शांत हो जाती है। इसके बाद पंडा प्रहलाद कुंड में स्नान करेंगे। मोनू पंडा एक गमछा, माला लेकर भक्त प्रहलाद का ध्यान करते हुए जलती हुई होली से निकलेंगे। इसके बाद गांव में होली मनाई जाएगी।

ये प्रहलाद का गांव है

योगीराज महाराज के मुताबिक यहां मान्यता है कि ये गांव दैत्यराज हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद का है। पुराने समय में यहां के एक पंडा यानी पुजारी को सपना आया कि एक पेड़ के नीचे भगवान की मूर्ति दबी हुई है। इसके बाद गांव के पंडा परिवार के सदस्यों ने यहां रह रहे एक संत के मार्गदर्शन में खुदाई की थी। इस खुदाई में भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की मूर्ति मिली थी। उस समय उस संत ने पंडा परिवार को ये आशीर्वाद दिया कि हर साल होली पर इस परिवार का जो भी व्यक्ति पूरी आस्था से भक्ति करेगा, उसे भक्त प्रहलाद की विशेष कृपा मिलेगी और वह जलती हुई होली से निकल सकेगा। गांव में भक्त प्रहलाद का मंदिर है और यहां एक कुंड भी है।

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