स साल चैत्र महीने की अमावस्या तिथि दो दिन यानी 31 मार्च और 1 अप्रैल को रहेगी। अमावस्या को धर्म ग्रंथों में पर्व कहा गया है। इस तिथि पर पितरों की विशेष पूजा की जाती है। ज्योतिष के नजरिये से इस दिन सूर्य और चंद्रमा एक ही राशि में आ जाते हैं। इन दोनों के ग्रहों के बीच का अंतर 0 डिग्री हो जाता है। हर महीने की अमावस्या पर कोई न कोई व्रत या पर्व मनाया जाता है। ये तिथि पितरों की पूजा के लिए खास मानी जाती है। इसलिए इस दिन पितरों की विशेष पूजा करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है।
व्रत-पूजा और श्राद्ध के लिए शुक्रवार
31 मार्च, गुरुवार को अमावस्या तिथि दोपहर 12 बजे बाद शुरू होगी। जो अगले दिन दोपहर करीब 12 बजे तक रहेगी। इसलिए इस दिन व्रत और पीपल पूजा के साथ ही पितरों के लिए श्राद्ध किया जाएगा। साथ ही इस दिन अमावस्या तिथि में होने वाली हर तरह की पूजा की जा सकेगी।
स्नान-दान के लिए शुक्रवारी अमावस्या
1 अप्रैल, शुक्रवार को भी अमावस्या तिथि सूर्योदय से दोपहर 12 बजे तक रहेगी। इसलिए इस दिन स्नान-दान करना चाहिए। इस दिन तीर्थ या पवित्र नदी के जल से नहाने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। साथ ही इस दिन किए गए दान का कई गुना पुण्य फल मिलता है। ये हिंदू कैलेंडर के साल की पहली अमावस्या है।
अमावस्या से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
1. ज्योतिष में अमावस्या को रिक्ता तिथि कहा जाता है यानी इस तिथि में किए गए काम का फल नहीं मिलता।
2. अमावस्या को महत्वपूर्ण खरीदी-बिक्री और हर तरह के शुभ काम नहीं किए जाते हैं। इस तिथि में पूजा पाठ का विशेष महत्व है।
3. ज्योतिष में अमावस्या को शनिदेव की जन्म तिथि माना गया है।
4. इस तिथि में पितरों के उद्देश्य से किया गया दानादि अक्षय फलदायक होता है।
5. सोमवार या गुरुवार को पड़ने वाली अमावस्या को शुभ माना जाता है।
6. रविवार को अमावस्या होना अशुभ माना जाता है।
7. इस तिथि पर भगवान शिव और पार्वती देवी की विशेष पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है।
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