कहानी:श्रीराम ने एक दिन अपने छोटे भाई शत्रुघ्न से कहा, 'लवणासुर नाम का राक्षस मधुवन में रहता है और ऋषि-मुनियों को परेशान करता है। खासतौर पर च्यवन ऋषि उससे बहुत दुखी हैं। मैं तुम्हें आदेश देता हूं कि तुम मधुवन जाकर उस राक्षस का वध करो, मैं तुम्हें वहां का राजा बना दूंगा।'
श्रीराम निर्णय ले चुके थे कि मधुवन का राजा शत्रुघ्न ही होगा। शत्रुघ्न जब मधुवन पहुंचे तो उन्होंने च्यवन ऋषि से पूछा, 'आप मुझे सलाह दें कि लवणासुर को कैसे मारा जाए? क्योंकि उसके पास एक अजेय शस्त्र है।'
च्यवन ऋषि ने कहा, 'जब लवणासुर भोजन के लिए बाहर जाता है तो वह अपना अजेय अस्त्र घर पर ही छोड़कर जाता है। आप उससे युद्ध तभी करना, जब वह घर से बाहर हो। उसके घर के द्वार को रोक देना, ताकि वह घर में प्रवेश न कर सके और उस अजेय शक्ति को प्राप्त न कर सके। तुम सैनिक, व्यापारी, नृतकों की सभी की मदद लो। पूरा जन समाज साथ में रखना। जब लवणासुर असावधान और अस्त्र हीन दिखाई दे तो तुम आक्रमण कर देना।'
च्यवन ऋषि की बात मानकर शत्रुघ्न ने ऐसा ही किया। लवणासुर मारा गया। श्रीराम इस बात से खुश थे कि मेरा भाई राजा बन गया, लेकिन उनके लिए इससे भी बड़ी बात ये थी कि शत्रुघ्न ने युद्ध से पहले ऋषि च्यवन से सलाह ली थी।
सीख
जब भी कोई बड़ा काम करें तो घर के बड़ों से, गुरु, साधु-संतों से सलाह जरूर लें। भले ही हम वीर और बुद्धिमान हों, लेकिन अनुभवी लोगों की सलाह हमारे काम को आसान बना सकती है।
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