जोबट की बेटी शाहीन मकरानी अन्य बेटियों के लिए प्रेरणा स्त्रोत बनी है। वे देश के लिए बॉक्सिंग में स्वर्ण मेडल जितना चाहती है। इतना ही नहीं वो नगर में बेटियों को बॉक्सिंग का प्रशिक्षण भी दे रहीं है। शाहीन द्वारा प्रशिक्षित नगर की मानवी ने जिला स्तर पर सिल्वर मेडल भी बॉक्सिंग में जीता है।
जोबट के गरीब परिवार में जन्मी शाहीन जो स्टेट बॉक्सिंग चैंपियन है, वे देश के लिए बॉक्सिंग में स्वर्ण मेडल जीतकर देश का नाम रोशन करने की इच्छा रखती है। लेकिन उनकी उम्मीदों पर गरीबी आड़े आर ही है क्योंकि राष्ट्र के लिए खेलने के लिए अच्छे प्रशिक्षक के साथ धन की भी जरूरत होती है। शाहीन का कहना है सम्पन्न परिवार, समाज व देश का साथ हो तो ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियां खेल क्षेत्र में बुलंदियों को छू सकती है। स्टेट बॉक्सिंग चैंपियन बनी शाहीन देश के लिए बॉक्सिंग में परचम लहराना चाहती है। शाहीन का कहना है कि जब उन्होंने पहली बार बॉक्सिंग के रिंग को देखा था तब प्रण लिया था कि वे बॉक्सिंग में पारंगत होंगी, लेकिन पेशे से ड्राइवर पिता इसके विरोधी रहे, लेकिन कोच महेश भामदरे की पहल पर वे राजी हुए। शाहीन स्टेट बॉक्सिंग चैंपियन है, अपनी सफलता का श्रेय कोच महेश भामदरे, अजय रिछारिया, आदिल मकरानी को देतीं है। वे देश के लिए बॉक्सिंग में स्वर्ण पदक जीतना चाहती है। शाहीन के प्रशिक्षक मकरानी ने नगर की बेटी मानवी महेश आसोरिया को भी बॉक्सिंग में सहयोग किया। मानवी ने जिला स्तर पर सिल्वर मेडल जीतकर जोबट का नाम रोशन किया।
टिफिन सेंटर से करीब 2 हजार रुपए रोज कमा रही सुशीला, बेटे-बहू को भी अन्य काम शुरू करवाया
उदयगढ़। मैं देसी एवं पाश्चात संस्कृति से जुड़े विभिन्न व्यंजन बेहतर तरीके से बनाकर टिफिन के माध्यम से उसको घर-घर तक पहुंचाती हूं। हर कोई हमारे बनाया भोजन की तारीफ कर लुत्फ उठाता है। टिफिन सेंटर के माध्यम से रोज करीब 2 हजार रुपए की कमाई हो जाती है। इस काम से मेरे बेटे दीपक माली और बहू किरण माली को रोजगार मिल रहा है।
यह कहना है सुशीला माली (सोनाक्षी) का। उन्होंने कहा सब संभव हो पाया मध्यप्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत गठित स्व सहायता समूह से जुड़ने के बाद। सुशीला आजीविका महिला समूह उदयगढ़ की सचिव है। समूह का गठन 2013 में हुआ था और समूह के सभी सदस्य अपनी बचत और आंतरिक ऋण प्रक्रिया के माध्यम से विभिन्न प्रकार की आय अर्जन गतिविधियां कर स्वावलंबी हो रहे हैं। सुशीला बताती है कि करीब 12 साल पूर्व पति का निधन हो गया था, ऐसी स्थिति में 2 बच्चों के पालन पोषण का दायित्व उस पर आ गया था। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी। समूह से लिए कर्ज से टिफिन सेंटर शुरू करने के साथ लड़के को कपड़े की दुकान लगवाई व बहू को ब्यूटी पार्लर का कोर्स करवाकर उसका ब्यूटी पार्लर शुरू करवा दिया। इस प्रकार से उसने समूह से 12 बार करीब 2 लाख 20 हजार का लोन लेकर उसकी भरपाई कर दी है। आज पूरा परिवार स्वावलंबी होकर 15000 से 20000 रुपए महीना कमा रहा है।
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