अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का कहना है कि यूक्रेन युध्द से अपने किस्म का पहला ग्लोबल ऊर्जा संकट खड़ा हो रहा है। इसको ध्यान में रखकर दुनियाभर के देशों को तेल और गैस का उपयोग कम करना चाहिए। 1973 में तेल संकट के बाद गठित एजेंसी ने कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमले के परिणाम आने वाले कुछ महीनों में और अधिक गंभीर होने की आशंका है। गर्मी का मौसम शुरू होने के साथ तेल भंडारों में ऐतिहासिक गिरावट आ चुकी है। एजेंसी के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर फतिह बिरोल ने कहा कि अधिक उत्पादन की बजाय मांग घटाकर स्थिति का मुकाबला किया जा सकता है। मौजूदा ऊर्जा संकट 1973 में तेल की कमी से अलग होगा क्योंकि इसके दायरे में केवल तेल ही नहीं बल्कि गैस भी आएगी।
परिवहन और बिजली उत्पादन पर असर पड़ेगा। चूंकि देश एक-दूसरे से जुड़ गए हैं इसलिए एक जगह से सप्लाई रुकने का वैश्विक बाजार पर असर पड़ेगा। एजेंसी ने तेल बचाने के लिए दस कदम उठाने की सिफारिश की है। इनमें वाहनों की गति घटाना, सप्ताह में तीन दिन घर से काम, एरोप्लेन की बजाय ट्रेन यात्रा,शहरों में रविवार को कार का उपयोग बंद करना, कार पूलिंग और सार्वजनिक परिवहन का किराया घटाना जैसे उपाय भी शामिल हैं। एजेंसी का कहना है, अगर अमीर देश दस कदम तत्काल उठाते हैं तो वे तेल की मांग 27 लाख बैरल प्रतिदिन घटा सकते हैं।
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