इंदौर के प्राचीनतम मंदिरों में हरसिद्धि देवी मंदिर शामिल है। यहां दूर-दूर से भक्त देवी के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लेने आते हैं। इस मंदिर की स्थापना देवी अहिल्या बाई होलकर ने 21 मार्च 1766, शुक्रवार को दिन की थी। यह मंदिर मराठा शैली में बना है। मंदिर में देवी हरसिद्धि, देवी महालक्ष्मी और देवी सिद्धिदात्री विराजमान है। देवियों की प्रतिमाएं भी काफी विशेष है।
महिषासुर मर्दिनी रूप में है देवी
मंदिर में हरसिद्धि देवी का महिषासुर मर्दिनी के रूप में है। चारभुजाधारी देवी के दाए हाथों में से एक में तलवार और दूसरे में त्रिशुल है जबकि बाए हाथों में से एक में घंटी और दूसरे में नरमुंड है। हरसिद्धि देवी की संगमरमर की यह प्रतिमा करीब चार फीट की है। इसी प्रकार मंदिर में विराजित महालक्ष्मी की प्रतिमा भी कुछ खास है। अधिकांश आपने महालक्ष्मी की प्रतिमा सफेद संगमरमर की देखी होगी। मगर यहां काले पाषाण की देवी महालक्ष्मी की प्रतिमा है। यह प्रतिमा करीब ढ़ाई फीट की है। देवी के एक हाथ में अमृत तो दूसरे हाथ में पद्मपुष्प (कमल) है। जबकि तीसरी प्रतिमा सिद्धिदात्री की है, जो बिलकुल देवी हरसिद्धि के रुप से मिलती जुलती है। सिद्धिदात्रि की यह प्रतिमा संगमरमर की है। चारभुजाधारी इस प्रतिमा के दाए हाथों में से एक में खट्ग और त्रिशुल है, जबकि बाए हाथों में से एक में ढाल और दूसरे में मुंड है।
नाथद्वारा से आते है देवी के नेत्र
मंदिर के पुजारी पं.राधेश्याम जोशी बताते है कि देवी हरसिद्धि के नेत्र अलग से लगाए हैं। प्रतिमा के जो नेत्र हैं वह थोड़े छोटे हैं। कई वर्षों से उन्हें मीनाकार (मछली के आकार की) नेत्र लगाए जा रहे हैं। यह नेत्र नाथद्वारा से आते हैं। चांदी पर मीना लगाकर इन नेत्रों को तैयार किया जाता है। खास बात यह है कि इन नेत्रों को लगाने के लिए किसी भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता। नेत्रों को लगाने के लिए मधुमक्खी के छत्ते से निर्मित मेंढ लगाया जाता है। इस मंदिर की स्थापना 21 मार्च 1766 में देवी अहिल्या बाई होलकर ने की थी। मराठा शैली में बने इस मंदिर में देवी की प्रतिमाओं के साथ ही अष्ट भैरव की प्रतिमाओं के साथ गणेश जी और हनुमान जी की प्रतिमाएं भी है।
नवरात्रि पर चार बार होगा देवी का श्रृंगार
पुजारी पं. जोशी ने बताया कि नवरात्रि के नौ दिनों तक रोजाना देवी का चार बार श्रृंगार किया जाएगा। चार बार श्रृंगार के साथ ही आरती भी की जाएगी। भगवती का ब्रह्म मुहूर्त में अभिषेक किया जाएगा। ललिता सहस्त्रनाम का पाठ कर देवी का श्रृंगार कर सुबह 5.30 बजे आरती की जाएगी। इसके बाद सुबह 8.30 बजे दोबारा श्रृंगार व आरती होगी। सुबह सवा दस बजे तीसरा बार श्रृंगार कर देवी की आरती की जाएगी। इसके बाद शाम को 7.30 बजे देवी का श्रृंगार कर आरती की जाएगी।
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