सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश में सरकारी विभागों में पदस्थ एडहॉक कर्मचारियों (तदर्थ) के पक्ष में बड़ा फैसला दिया है। शीर्ष अदालत ने सरकार की अपील को खारिज करते हुए कहा है कि एडहॉक नियुक्तियां जो पूर्व में की जा चुकी हैं उन्हें निरस्त कर फिर से उन्हीं पदों पर नई नियुक्ति नहीं की जा सकती।
दरअसल, सरकार ने 26 जून 2014 को एक विज्ञापन निकालकर कॉलेजों में एक साल के लिए गेस्ट प्राध्यापक की भर्ती निकाली थी। बाकायदा लिखित परीक्षा, साक्षात्कार भी लिए गए थे। नियुक्ति के बाद इन्हें एडहॉक करार दिया था। सालभर बीतने के बाद सरकार ने इन नियुक्ति को निरस्त करने का फैसला ले लिया और नए सिरे से विज्ञापन जारी कर दिया।
इस पर प्राध्यापक मनीष गुप्ता व अन्य लेक्चरर ने इस नियुक्ति प्रक्रिया को हाई कोर्ट में चुनौती दी। सिंगल बेंच ने नए विज्ञापन को न केवल निरस्त किया, बल्कि यह भी कहा कि एडहॉक प्राध्यापक को यूजीसी के हिसाब से वेतनमान दिया है। सरकार ने इस फैसले को डिविजन बेंच में चुनौती दी। डिविजन बेंच ने सिंगल बेंच का फैसला निरस्त कर दिया। इस पर प्राध्यापकों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव, जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने कहा कि एडहॉक पर नियुक्त हुए प्राध्यापक कठिन परीक्षा और साक्षात्कार के बाद चुने गए हैं। जबरन नियुक्ति निरस्त कर नए सिरे से नियुक्त किया जाना है। एडहॉक के बदले एडहॉक नियुक्ति किया जाना गलत है। जिनकी नियुक्ति हुई उन्हें ही यथावत रखा जाए।
अधिवक्ता आनंद अग्रवाल, वरुण रावल के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से शासन के सभी विभागों में पदस्थ एडहॉक कर्मचारियों की नौकरी बची रहेगी। सुप्रीम कोर्ट का जारी आदेश कानून बन जाता है। स्कूली शिक्षा, उच्च शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा, पीएचई, नगरीय निकाय, स्वास्थ्य सहित कई विभागों में एडहॉक नियुक्ति होती है। सरकार इन्हें हटाकर नई नियुक्ति नहीं कर सकेगी।
0 टिप्पणियाँ