इंदौर 10 साल का । 500 से ज्यादा श्लोक कंठस्थ याद हैं। पांच सालों में गुजरात व मप्र के कई शहरों के जैन उपाश्रयों में तप कर चुका है। इसके बाद से ही 15 किमी का पैदल विहार भी किया है। वह बिना पंखे, फ्रिज, मोबाइल, टीवी के रहने आदी हो चुका है। उसने पांच साल की उम्र से ही रात के भोजन का त्याग कर दिया है।
चेहरे पर मासूमियत, मन में अगाध श्रद्धा, संत जीवन के प्रति जबर्दस्त विश्वास अपने संत जीवन के बारे में बताया।
सिद्धम जैन झाबुआ का रहने वाला है। वह इंदौर में दीक्षा लेने वाला है। सिद्धम कहता है मुझे पांच साल की उम्र में ही संत जीवन की समझ आ गई थी। उपधान में सुबह 4.30 बजे उठना, बिना स्नान किए व कच्चे पानी को छुए हर एक दिन छोड़कर उपवास कर रहा हूं। यह क्रम पांच सालों से चल रहा है। मम्मी-पापा कहते हैं आगे जाकर धर्म की इस परम्परा को खूब आगे बढ़ाना, उन्हें शोभायमान करना। मैं उसी संयम की राह पर चल रहा हूं।
सिद्धम ने कहा दीक्षा लेने से मैं अब छह निकायों के जीवों की हिंसा से बच जाऊंगा, मुझे पाप नहीं लगेगा। दीक्षा वह होती है जो आत्मा का कल्याण करने में अपने को सहयोग करती है। मुझे परम पूज्य बंधु बेलेडी व साधु-साध्वियों से दीक्षा की प्रेरणा मिली।
मैं जब पांच साल पहले गुरुजी जैन आचार्य श्री जिनचंद्र सागर सुरीश्वरजी महाराज के पास आया तो संत जीवन की समझ आ गई। मैंने उनके साथ सामयिक रूप से कई चीजें की। इसके तहत 15 किमी का पैदल विहार किया। उपधान में सुबह 4.30 बजे उठना, बिना स्नान किए व कच्चे पानी को छुए हर एक दिन छोड़कर उपवास किया।
मां बोली, दीक्षा मैं लेना चाहती थी, लेकिन बेटा उस इच्छा को पूरा कर रहा है
मां प्रियंका जैन ने कहा कि इकलौते बेटे को दीक्षा दिलाने को लेकर काफी उत्सुक हूं। बेटा अच्छी राह पर जाता है तो इससे खुशी होती है। पति भी यही सोचते हैं कि बेटा अच्छा कर रहा है। मैं भी बचपन से दीक्षा लेना चाहती थी, उसने मेरी प्रेरणा को फॉलो किया। मैं उसे बचपन से ही कहती थी कि यह संयम लेने जैसा है। मैं बार-बार उसे आचार्यजी के पास लेकर जाती थी। दीक्षा मुझे लेनी थी लेकिन मैं नहीं ले पाई तो बच्चे को दिला रही हूं। आज वो संयम के मार्ग पर आगे जा रहा है। पिता मनीष जैन का मानना था कि वह थोड़ा बड़े होने पर दीक्षा लें लेकिन उसने मजबूती से प्रयास किया तो परिवार में सभी ने सहमति दे दी।
मनोरंजन से दूर
सिद्धम ने कहा मैंने पांच साल पहले ही टीवी, वीडियो, मोबाइल, इंटरनेट का त्याग कर दिया था। रतलाम की दो जुड़वां बहनों व एक 10 वर्षीय बच्चे के भी सांसारिक जीवन को छोड़कर वैराग्य जीवन की राह पकड़ने के मामले में कि मुझे अच्छा लग रहा है। धर्म के साथ और भी कई सारे बच्चे जुड़ेंगे। मामले में आचार्य श्री जिनचंद्र सागर सुरीश्वरजी महाराज ने बताया कि सिद्धम को 500 से ज्यादा श्लोक कंठस्थ हैं। उसने बीते पांच सालों में मेरे साथ गुजरात व मप्र के कई शहरों के जैन उपाश्रयों में तप किया है। वह बिना पंखे, फ्रिज, मोबाइल, टीवी का आदी हो चुका है। उसने तब से ही रात के भोजन का त्याग कर दिया है।
अब गाथा करने को कहेंगे तो लगेगा पुण्य
बकौल सिद्धम अब 15 मई को मुझे नया नाम मिलेगा। अभी संसार में सब लोग बोलते हैं कि चल सिद्धम आइसक्रीम खाकर ले। फिर सब मुझे मेरा जो भी नया नाम होगा उससे पुकारेंगे और कहेंगे कि गाथा कर लो तो उस नाम के कारण भी पुण्य होगा।
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