रविवार, 8 मई से उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम में सभी भक्त दर्शन कर सकेंगे। रविवार को कपाट खोलने के बाद रावल ईश्वरप्रसाद नंबूदरी विशेष पूजा करेंगे। बद्रीनाथ धाम को बद्री नारायण मंदिर भी कहा जाता है। ये धाम अलकनंदा नदी के किनारे नीलकंठ पर्वत पर स्थित है। आदि गुरु शंकराचार्य ने इस धाम की स्थापना की थी। बद्रीनाथ मंदिर में गर्भगृह, दर्शनमंडप और सभामंडप, ये तीन भाग हैं। इसी क्षेत्र में भगवान विष्णु और नर-नारायण ने तप किया था।
विष्णु जी ने किया तप और लक्ष्मी जी ने दी थी छाया
बद्रीनाथ के संबंध में मान्यता है कि भगवान विष्णु जी ने इस क्षेत्र में कठोर तप किया था। उस समय देवी लक्ष्मी ने बदरी यानी बेर का पेड़ बनकर विष्णु जी को छाया दी और मौसमी समस्याओं से विष्णु जी की रक्षा की थी। लक्ष्मी जी के इस सर्मपण भाव से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने इस जगह को बद्रीनाथ नाम से प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था।
ध्यान की मुद्रा में स्थापित है भगवान की प्रतिमा
बद्रीनाथ धाम में विष्णु जी की करीब एक मीटर ऊंची प्रतिमा है। विष्णु जी की ये मूर्ति ध्यान मुद्रा में है। इनके अलावा यहां कुबेर देव, लक्ष्मी-नारायण की प्रतिमाएं भी हैं। मंदिर में विष्णु जी के पांच स्वरूपों की पूजा की जाती है। विष्णु जी के इन पांच स्वरूपों को पंचबद्री कहते हैं। बद्रीनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा अन्य चार स्वरूपों भी मंदिर में ही हैं।
नर-नारायण की तपस्या स्थली
मान्यता है कि नर-नारायण ने भी बद्री वन में ही तप किया था। महाभारत के समय में नर-नारायण ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के रूप में अवतार लिया था। यहां श्री योगध्यान बद्री, श्री भविष्य बद्री, श्री वृद्घ बद्री, श्री आदि बद्री रूप में भगवान बद्रीनाथ भक्तों को दर्शन देते हैं।
कैसे पहुंचे बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चामोली जिले में स्थित है। यहां का सबसे करीबी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की दूरी 297 किमी है। रेल से ऋषिकेश पहुंचने के बाद बस या कार आदि से बद्रीनाथ पहुंच सकते हैं।
बद्रीनाथ का करीबी एयरपोर्ट देहरादून का जोली ग्रांट एयरपोर्ट है। यहां से बद्रीनाथ करीब 314 किमी दूर है। देहरादून से बद्रीनाथ आसानी से पहुंचा जा सकता है।
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