पूर्वी इंदौर को पश्चिमी हिस्से से जोड़ने वाले कुलकर्णी भट्टा पुल का मंगलवार को लोकार्पण होगा। इस पुल के लिए इंदौर ने 34 साल इंतजार किया है। 1988 में तत्कालीन सीएम मोतीलाल वोरा ने शिलान्यास किया था। घोषणा उनसे भी पहले सीएम रहे अर्जुनसिंह ने की थी। तब महज 10 लाख में निर्माण होना था।
इन 34 वर्षों में 9 सीएम और 5 महापौर के कार्यकाल गुजरे। अब जाकर 15 करोड़ में यह पुल बन पाया है, जबकि पुल महज 120 फीट लंबा और 100 फीट चौड़ा है। 15 साल पहले दोबारा प्रस्ताव बना, तब भी लागत 3.75 करोड़ थी, लेकिन इतने साल कागजों में पुल बनता रहा।
तत्कालीन सीएम अर्जुनसिंह ने की थी घोषणा मोतीलाल वोरा ने किया था शिलान्यास
- 3.75 करोड़ ही लागत थी 15 साल पहले दोबारा प्रस्ताव बनने के समय
- 2018 में काम शुरू हुआ, 18 माह में पूरा होना था, 4 साल लग गए
- 1-1.50 लाख की आबादी अनुमानित तौर पर रोज इस पुल से आवाजाही करेगी।
सिस्टम का चमत्कार
- 4 बार प्रस्ताव बने चार बार अलग-अलग परिषद में पुल का प्रस्ताव बना। पांच बार टेंडर हुए।
- पूर्व महापौर कैलाश विजयवर्गीय के कार्यकाल में 2003-04 में इसका पहला प्रस्ताव बना।
- डॉ. उमाशशि शर्मा के दौर में फिर एमआईसी में फाइल चली। तब लागत 7 करोड़ हो गई।
- टेंडर भी हो गया पर अतिक्रमण व अन्य कारणों से भूमिपूजन के बाद भी काम शुरू नहीं हुआ।
- तीसरी बार पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे के कार्यकाल में प्रस्ताव बना। 9 करोड़ लागत बताई।
- पूर्व महापौर मालिनी गौड़ के समय फाइल फिर खुली। पहले प्रस्ताव से 5 गुना लागत हो गई।
अंग्रेजों के जमाने का पुल था, थक गए थे इंतजार करते
यहां अंग्रेजों के जमाने का 100 साल पुराना पुल था। वह बहुत संकरा था, जिससे आए दिन जाम लगता था। परदेशीपुरा और आसापास के रहवासी नए पुल का बरसों से इंतजार कर रहे थे। यह पुल सीधे राजबाड़ा से लोगों को जोड़ेगा। -ताेताराम सुनहरे, (65 वर्ष) रहवासी
हमारे समय इतने फंड नहीं होते थे निगम के पास
मैं वर्ष 1994 तक सिटी इंजीनियर रहा। तब निगम का बजट 4 से 5 करोड़ होता था। उस समय लागत 10 लाख थी, लेकिन सिर्फ बजट में ही प्रावधान होता था। कागजों पर ही काम होता रहा। धरातल पर प्रोजेक्ट आ ही नहीं पाया। -एसके बायस, तत्कालीन सिटी इंजीनियर
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