“हृदय से पुकार : ईश प्राप्ति का मूल मंत्र”
हमेशा हमनें सुना है कि भगवान केवल भाव के भूखे होते है और भगवान भक्त के अधीन होते है और हमारे धर्मग्रंथो में भी यही कथन पूर्णतः सत्य और प्रत्यक्ष सिद्ध हुआ है। जबभी भक्त ने भाव-विभोर होकर हृदय से भक्तवत्सल ईश्वर को पुकारा तो ईश्वर दौड़े चले आए। ईश्वर को तो केवल हृदय के भाव समझ में आते है। उन्हें गुण-अवगुण, छल-कपट, अमीर-गरीब की परिभाषा समझ नहीं आती। उन्हें तो भक्त का भोलापन, अडिग निष्ठा, अपनत्व, प्रेम और भाव ही समझ आते है।
मीरा ईश्वर को हृदय के भाव से पुकारती थी। दुनिया का विश्लेषण उनके लिए कोई माईने नहीं रखता था। वह प्रभु भक्ति में नाचती-गाती और हृदय से गिरधर गोपाल को पुकारती। कृष्ण भक्ति की चरम सीमा को छूने वाली मीरा ने विष पीना भी सहर्ष स्वीकार किया, पर ईश भक्ति नहीं छोड़ी और हर समय प्रभु को भक्त की पुकार पर आना पड़ा। सुदामा ने मित्र के रूप में प्रभु के होते हुए भी कभी कोई लालच नहीं किया। कभी कुछ नहीं माँगा और हमेशा हृदय से नारायण को पुकारा। पेटभर भिक्षा न मिलने के बावजूद भी जो मिलता उसे भी नारायण को अर्पित कर देते। निर्धनता में भी हृदय की पुकार कम नहीं की और यही पुकार प्रभु को नंगे पैर दौड़ने पर विवश कर गई। भक्त नरसी ने ठाकुरजी पर सबकुछ छोड़ दिया। हर परिस्थिति में केवल ठाकुरजी को भाव-विभोर होकर पुकारते रहे और प्रभु ने उनकी ऐसी लाज रखी की पूरी दुनिया देखती रह गई। विपरीत समय में भी नरसी ने प्रभु में विश्वास नहीं छोड़ा और भक्त की लाज रखने में ठाकुरजी ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी।
द्रौपदी ने जिस स्थिति में श्रीकृष्ण को पुकारा अगर भगवान न होते तो शायद नारी सम्मान हताहत होता, पर प्रभु तो भक्त की रक्षा के लिए एक क्षण की भी देरी नहीं करते। द्रौपदी की पुकार श्रीकृष्ण को तुरंत खींच लाई। प्रहलाद का विश्वास प्रभु के प्रति इतना असीम था कि वह मृत्यु के भय से भी भ्रमित नहीं हुआ और भक्त की बात रखने के लिए प्रभु हर स्थिति में प्रत्यक्ष हुए, यहाँ तक की भक्त का वचन सत्य करने के लिए खंभे से प्रकट हो गए और भक्त की पुकार व्यर्थ नहीं जाने दी। केवट भगवान का सीधा-साधा भोला से भक्त था। किसी वेद-पुराण का उसे विशेष ज्ञान नहीं था, पर ईश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा थी। प्रभु तो सिर्फ भक्ति का भाव और भक्त का मन ही देखते है। शबरी ने धैर्यपूर्वक श्रीराम को पुकारा और भक्त का धैर्य और प्रतीक्षा प्रभु को शबरी के पास लेकर गई। जिस अहिल्या को सबने त्यागा उसकी भी पुकार पर प्रभु ने उनका उद्धार किया। संत रैदास की भक्तिनिष्ठा की गरिमा रखने के लिए ठाकुरजी हर समय उपस्थित हुए। भक्त हर परीक्षा पर खरा उतरा और ठाकुरजी की भक्ति से नहीं डिगा। रैदास के वचन का मान रखने के लिए प्रभु हर समय दौड़े चले आए। इन सभी ने निश्चल भाव से हरि को पुकारा। विकट परीक्षा की घड़ी में भी अपने गोविंद-गोपाल पर विश्वास नहीं छोड़ा और प्रभु ने भी भक्त की भक्ति देखकर उनका साथ नहीं छोड़ा। प्रभु को जिस रूप में भक्त ने पुकारा प्रभु उसी स्वरूप में भक्त की पुकार पर प्रत्यक्ष हुए। यहाँ तक की एक गज की पुकार पर भी ठाकुरजी ने आने में तनिक भी देरी नहीं की। कभी प्रेमी, पुत्र, सखा हर रूप में प्रभु ने भक्त का मान रखा और भक्ति की लाज रखी। जब विभीषण को रावण ने निकाल दिया और उसने भी राघव को पुकारा तो प्रभु श्रीराम ने उनको भी गले लगाया।
ईश्वर प्राप्ति के लिए किसी विशेष वेद-पुराण की आवश्यकता नहीं है और न ही वन-वन भटकना ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है। वैराग्य की भी आवश्यकता नहीं है। यह जीतने भी उदाहरण है यह सभी गृहस्थ ही है। याद रखिए ईश्वर सदैव गृहस्थ के घर ही आए, पर यह सभी गृहस्थ भी गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी ईश्वर को पुकारना नहीं भूले। गृहस्थ की कठिनाई, विपरीत समय, कठिन परीक्षा में भी इन्होने प्रभु के प्रति विश्वास को नहीं छोड़ा। कुछ क्षण ही सही पर हृदय से ईश्वर को पुकारिए। यदि आपकी पुकार सच्ची है तो ईश्वर जिस भी स्थिति में होगे वह दौड़े चले आएंगे। जब बच्चा माँ को अपना सर्वस्व मानता है और माँ को पुकारता है तो वह माँ किसी भी स्थिति में हो, कितनी ही गहरी नींद में हो, कितने भी कार्य में व्यस्त हो बालक के पुकारने पर माँ तुरंत आ जाती है। हम सभी ईश्वर के बालक ही है और हमें भी हृदय से पुकार जरूरत है। ईश्वर तो सदैव हमारे लिए तत्पर है।
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