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ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की परंपराएं:इन दिनों में स्नान-दान और पेड़-पौधे लगाने से मिलता है कई यज्ञ करने जितना पुण्य

ज्येष्ठ मास का शुक्ल पक्ष 31 मई से 14 जून तक रहेगा। इन 15 दिनों में स्नान-दान करने की परंपरा है। साथ ही इन दिनों बड़े व्रत और पर्व मनाए जाएंगे। जिनमें पानी और पेड़-पौधों की पूजा की जाती है। साथ ही इस महीने के आखिरी दिन पेड़-पौधे लगाने की भी परंपरा है। जिससे कई यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। इस तरह ज्येष्ठ महीने का शुक्ल पक्ष प्रकृति की अहमियत बताने वाला समय है।

पानी की अहमियत बताने वाला शुक्ल पक्ष
पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि पूरे ज्येष्ठ मास में जल दान करने की परंपरा है। ग्रंथों में इसका महत्व बताते हुए कहा है कि ज्येष्ठ महीने में जल का दान करने से कई यज्ञ करने जितना पुण्य मिलता है। इसके शुक्ल पक्ष में नौतपा खत्म होगा और पानी से जुड़े दो बड़े पर्व मनाए जाएंगे। इन दिनों दशमी तिथि पर गंगा दशहरा और उसके अगले दिन निर्जला एकादशी रहेगी। गंगा दशहरा पर देवी गंगा और नदी की पूजा की जाती है। वहीं, निर्जला एकादशी पर पूरे दिन बिना पानी पिए उपवास किया जाता है। ये दो दिन पानी की अहमियत बताते हैं।

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की परंपराएं...

सूर्य पूजा: ज्येष्ठ महीने में भगवान सूर्य के गभस्तिक रूप की पूजा करने का विधान ग्रंथों में बताया है। इन दिनों में सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद तांबे के लोटे से सूर्य को जल चढ़ाएं। ऊँ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद सूर्य को प्रणाम करना चाहिए। ऐसा करने से सेहत अच्छी रहती है और उम्र भी बढ़ती है।

स्नान- दान: ज्येष्ठ महीने में सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदियों के पानी या किसी तीर्थ जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद जरुरतमंद लोगों को भोजन और कपड़ों का दान करें। इस वक्त गर्मी का मौसम होने से इन दिनों में जल दान करने का ज्यादा महत्व है। साथ ही धन या छाते का भी दान कर सकत हैं।

तीर्थ दर्शन: ज्येष्ठ मास में तीर्थ यात्रा करने की परंपरा चली आ रही है। इस महीने के शुक्ल पक्ष में उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा कर सकते हैं। इस यात्रा से गर्मी से राहत मिलेगी। मन शांत होगा और पुण्य भी मिलेगा।

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