कहानी:डॉ. राजेंद्र प्रसाद भारत के राष्ट्रपति बन गए थे और सरकारी दौरे पर बिहार में थे। दौरे के बीच में उन्हें लगा कि उनके जूते पुराने हो गए हैं, पैरों को दिक्कत दे रहे हैं। इस कारण बार-बार उनका ध्यान जूतों की ओर ही जा रहा था।
डॉ. प्रसाद ने अपने सचिव को बुलाया और कहा, 'हमारे लिए नए जूतों की व्यवस्था कर दो।'
सचिव राष्ट्रपति जी के लिए जूते लेने चला गया। सचिव ने बहुत ही मुलायम और महंगे जूते खरीदे। सचिव सोच रहा था कि ये मुलायम जूते पहनकर राष्ट्रपति प्रसन्न होंगे और देश के राष्ट्रपति हैं तो कीमत भी नहीं पूछेंगे।
जब सचिव डॉ. प्रसाद के पास जूते लेकर पहुंचा तो मामला उलटा ही हो गया। डॉ. प्रसाद ने मुलायम जूते देखे तो उन्होंने कहा, 'तुम जानते हो कि मैं हमेशा कड़क जूते पहनता हूं। ताकि ये आभास बना रहे कि मुझे मेरा आचरण अच्छा रखना है। दूसरी बात ये है कि इसकी कीमत मेरी हैसियत से ज्यादा है। ये जूते एक राष्ट्रपति नहीं, राजेंद्र प्रसाद पहन रहा है। मेरी हैसियत मैं जानता हूं, इतने महंगे जूते क्यों लेकर आए? जाइए इन्हें वापस करिए।'
सचिव ये बात सुनकर जाने लगा तो अचानक डॉ. प्रसाद ने पीछे से फिर आवाज लगाई, 'क्या आप अभी जा रहे हैं?'
सचिव ने कहा, 'जी, मैं अभी जा रहा हूं।'
डॉ. प्रसाद ने कहा, 'तो फिर अभी रुक जाइए। आप फिर सरकारी गाड़ी से जाएंगे। उतना ही पेट्रोल खर्च होगा। जब हम अपना दौरा खत्म करके उधर से निकलेंगे, तब ये जूते बदलवा लेना।'
उस दिन अधिकारी को ये बात समझ आ गई कि एक बड़ा व्यक्ति जब सरकारी कोष के लिए इतना सतर्क हो जाएगा तो उस दिन राष्ट्र का भविष्य सुरक्षित हो जाएगा।
सीख
हमें भी अपने निजी और घर-परिवार के खर्चों में कंजूसी नहीं करनी चाहिए, लेकिन मितव्ययिता जरूर रखनी चाहिए। जो भी खर्च करें, वह मांग के हिसाब से नहीं, बल्कि जरूरत के हिसाब से करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखेंगे तो भविष्य में पैसों की समस्याओं से निपटा जा सकता है।
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