कहानी:महाभारत के समय की घटना है। उस समय कौरव-पांडव राजकुमार छोटे थे। एक दिन सभी राजकुमार खेल रहे थे और उनकी कोई वस्तु कुएं में गिर गई। कुएं में गिरी हुई उस चीज को एक ब्राह्मण योद्धा ने निकाला था। वह ब्राह्मण द्रोणाचार्य थे।
सभी राजकुमार अपने पितामह भीष्म के पास पहुंचे और उन्होंने द्रोणाचार्य की बहुत प्रशंसा की और कहा, 'इनके जैसा धनुर्धर हमने नहीं देखा है।'
भीष्म ने द्रोणाचार्य से बात की तो द्रोणाचार्य ने संक्षिप्त में अपनी कहानी बताई। द्रोण ने कहा, 'मैं भारद्वाज ऋषि का पुत्र हूं और बचपन में ऋषि अग्निवेश के आश्रम में मैं और राजा द्रुपद शिक्षा ले रहे थे। उस समय द्रुपद राजकुमार थे। हम दोनों गहरे मित्र हो गए थे।
जब हम दोनों की पढ़ाई पूरी हुई तो द्रुपद ने मुझसे कहा था कि तुम मेरे अभिन्न मित्र हो और जब मैं राजा बनूंगा, तब तुम मेरे पास आना, मैं तुम्हारी सहायता करूंगा।
इसके बाद वह अपने राज्य चले गए। मेरा विवाह हो गया। हमारे यहां एक पुत्र हुआ। उसका नाम रखा अश्वत्थामा। जब मेरा पुत्र छोटा था तो वह मुझसे पीने के लिए दूध मांगता था। उस समय मेरे पास इतना धन नहीं था कि मैं उसे दूध लाकर दे सकूं।
एक दिन अन्य ब्राह्मण पुत्रों ने अश्वत्थामा को पानी में आटा घोलकर दे दिया। मेरे बेटे ने आटे का पानी दूध समझकर पी लिया और वह बहुत खुश था। ये देखकर मुझे बहुत दुख हुआ।
मैं योग्य था, लेकिन मेरे पास धन नहीं था। मैं अपने मित्र द्रुपद से मदद मांगने के लिए पहुंचा। द्रुपद ने मेरे साथ पढ़ाई की थी, लेकिन वह मुझे पहचानने से ही इनकार कर रहे थे। मेरा अपमान किया और कहा कि एक राजा और गरीब ब्राह्मण की मित्रता नहीं हो सकती है। तुम किसी गलतफहमी में यहां आ गए हो। ऐसा कहकर द्रुपद ने मुझे दरबार से निकाल दिया।
उस दिन मैंने ये संकल्प लिया था कि मैं अपने अपमान का बदला दो तरह से लूंगा। एक तो मैं द्रुपद को शिक्षा दूंगा। मेरे पास ऐसे शिष्य होंगे जो द्रुपद पर आक्रमण करके बंदी बनाएंगे। दूसरा, मैं अपनी योग्यता से इतना समृद्ध हो जाऊंगा कि राजा के जैसा मेरा भी जीवन होगा।'
भीष्म ने द्रोणाचार्य की बातें सुनीं और कहा, 'अपनी योग्यता से समृद्ध होने का अधिकार सभी को है। मैं आज से आपको हमारे कुरु वंश का गुरु घोषित करता हूं और आप यहां राजाओं की तरह रहिए।'
सीख
ये किस्सा हमें दो संदेश दे रहा है। पहला ये कि हमें कभी भी अपने पुराने संबंधों का अपमान नहीं करना चाहिए। दूसरा संदेश ये है कि हमें अपनी योग्यता का उपयोग बुद्धिमानी के साथ करना चाहिए। अगर हम योग्य हैं तो समर्थ अवश्य बनें। अपनी योग्यता से मिले धन और सुविधाओं का लाभ पूरे परिवार को दें।
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