कहानी:प्रजापति दक्ष और शिव जी से जुड़ी घटना है। दक्ष देवताओं के बड़े नेताथे। सभी उनका मान-सम्मान करते थे। एक दिन एक यज्ञ में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि और देवता शामिल हुए।
यज्ञ सभा में सभी बैठे हुए थे। उस समय दक्ष प्रजापति ने यज्ञ सभा में प्रवेश किया। उनका गरिमामय व्यक्तित्व था। दक्ष के सम्मान में सभी लोग अपनी-अपनी जगह पर खड़े हो गए। अपना मान-सम्मान देखकर दक्ष का अहंकार जाग गया।
दक्ष ने सभा में ये नहीं देखा कि उसके सम्मान में कौन-कौन खड़ा हुआ है, उसने ये देखा कि कौन खड़ा नहीं हुआ है। उस समय शिव जी बैठे हुए थे और आंखें बंद करके ध्यान लगा रहे थे।
शिव जी को बैठा हुआ देखकर दक्ष ने सोचा कि ये मेरे दामाद हैं, मेरे पुत्र की तरह हैं, ये मेरे सम्मान में खड़े नहीं हुए। मैंने ब्रह्मा जी के कहने पर मेरी पुत्री का विवाह इस व्यक्ति से कर दिया, जिसका अमंगल रूप है। इतना सोचने के बाद दक्ष ने गुस्से में शिव जी को भला-बुरा कह दिया।
शिव जी तो दक्ष की बातें सुनकर चुप बैठ हुए थे, लेकिन नंदीश्वर ने शिव जी का अपमान होता देखकर दक्ष को शाप दे दिया। नंदीश्वर को गुस्से में देखकर भृगु ऋषि ने नंदी को शाप दे दिया। इसके बाद पूरी यज्ञ सभा में सभी ने एक-दूसरे को शाप दे दिए। शुभ कार्यक्रम पूरी तरह से बिगड़ गया। इसके बाद शिव जी अपने गणों को लेकर वहां से चले गए।
सीख
अहंकार किसी भी अच्छे खासे चलते हुए शुभ काम को बिगाड़ देता है। शिव जी ने तो अपने गुस्से पर काबू कर दिया था, लेकिन दक्ष ने गुस्से पर काबू नहीं किया। पद, प्रतिष्ठा और मान-सम्मान की वजह से अधिकतर लोग अहंकारी हो जाते हैं। अहंकारी को शब्दों का ध्यान नहीं रहता है और गलत बोली की वजह से सारे काम और रिश्ते बिगड़ जाते हैं।
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