- यदि नियंत्रण आंतरिक हो यानी आत्म-अनुशासन हो तो ज़िंदगी सुखी होती है। बाहरी हो तो ज़ोर-ज़बरदस्ती कहलाता है और जीवन को दु:खी बनाता है।
- बात इतनी ही सरल है कि ख़ुशी और संतुष्टि चाहिए तो अपने कार्यों और सोच का नियंत्रण ख़ुद के हाथों में रखिए।
ख़ुशी प्राप्त करने की आपकी क्षमता ही जीवन में आपकी सफलता का सच्चा पैमाना है। इससे ज़्यादा महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं है। इसकी जगह कोई दूसरी चीज़ नहीं ले सकती। यदि आप हर भौतिक चीज़ प्राप्त कर लें, लेकिन ख़ुश न हों, तो इसका मतलब यह है कि आप वास्तव में मनुष्य के रूप में अपनी पूर्ण संभावना तक पहुंचने में नाकाम रहे हैं।
मनुष्य उद्देश्यपूर्ण प्राणी है जो लक्ष्य और परिणाम प्राप्त करने की दिशा में प्रयत्न करता है। हर लक्ष्य के बाद एक और लक्ष्य सामने आ जाता है और फिर एक और लक्ष्य- जब तक कि आप इस तरह अंतत: मानव जीवन की सबसे बुनियादी शक्ति पर नहीं पहुंच जाते हैं। यह शक्ति और कुछ नहीं, ख़ुश रहने की इच्छा है। और आप तभी ख़ुश रह सकते हैं, जब आप आत्म-अनुशासन, आत्म-विजय और आत्म-नियंत्रण का अभ्यास करें। जब आप महसूस करते हैं कि जीवन पर आपका पूरा नियंत्रण है, तभी आपको सच्ची संतुष्टि मिलती है।
नियंत्रण का नियम
मैंने अपनी पुस्तक मैक्सिमम अचीवमेंट में नियंत्रण के नियम का महत्व बताया है। यह कहता है- ‘आप उसी हद तक ख़ुश महसूस करते हैं, जिस हद तक आपके जीवन पर आपका नियंत्रण होता है। आप उसी हद तक नाख़ुश महसूस करते हैं जिस हद तक आपको लगता है कि नियंत्रण आपके हाथ में नहीं है और दूसरे तत्व या लोग आपको नियंत्रित कर रहे हैं।’
मनोवैज्ञानिक इसे ‘नियंत्रण केंद्र’ की संज्ञा देते हैं। इस पर कई शोध हुए हैं और सबका निष्कर्ष यही है कि तनाव और दु:ख तभी पैदा होता है, जब आप ख़ुद को बाहरी परिस्थितियों द्वारा नियंत्रित महसूस करते हैं। इसे ‘आंतरिक नियंत्रण केंद्र’ (ख़ुश) और ‘बाहरी नियंत्रण केंद्र’ (दु:खी) कहा गया है।
आपका नियंत्रण केंद्र तब आंतरिक होता है, जब आपको महसूस होता है कि नियंत्रण आपके हाथ में है, आप अपने निर्णय ख़ुद लेते हैं और जीवन में अपने साथ होने वाली अधिकांश चीज़ों को प्राय: आप ही तय करते हैं। नियंत्रण केंद्र आंतरिक होने पर आपको यह एहसास होता है कि अपने जीवन की बागडोर आपके ही हाथों में है और अपनी गाड़ी आप स्वयं ही चला रहे हैं। आप महसूस करते हैं कि आप ही अपने साथ होने वाली अधिकांश चीज़ों को तय करते हैं, इसलिए आप शक्तिशाली, उद्देश्यपूर्ण और ख़ुश महसूस करते हैं।
दूसरी ओर, आपका नियंत्रण केंद्र उसी हद तक बाहरी होता है, जिस हद तक आपको महसूस होता है कि नियंत्रण आपके हाथ में नहीं है या आपमें अपने जीवन को दिशा देने की कम क्षमता है। उदाहरण के लिए, यदि आपको लगता है कि पक्षपाती या आलोचनात्मक बॉस आपको नियंत्रित कर रहा है, लेकिन आप नौकरी छोड़ने से डरते हैं, तो आपको तनाव और चिंता का अनुभव होता है। इससे आप ख़राब काम करते हैं, जिससे इसकी आशंका भी बढ़ जाती है कि आपका बॉस आपको नौकरी से निकाल देगा और वैसी ही परिस्थितियां निर्मित हो जाएंगी, जिनका आपको डर है।
एक और उदाहरण देखें। आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि आपका बुरा जीवनसाथी आपको नियंत्रित कर रहा है या आप किसी ऐसे संबंध में हैं, जिससे आप मुक्त नहीं हो सकते। हो सकता है कि नियंत्रित किए जाने का यह एहसास आपके बढ़ते हुए ख़र्च, क़र्ज या अपने जीवनस्तर को बनाए रखने के दायित्व के कारण हो। आपको यह भी लग सकता है कि आपकी शारीरिक स्थिति या शिक्षा की कमी के कारण नियंत्रण आपके हाथ में नहीं है। कई लोगों को यह महसूस होता है कि असामान्य बचपन या ख़राब परवरिश के कारण वे अतीत द्वारा नियंत्रित हैं और वे अपनी स्थिति को बदलने के लिए कुछ भी नहीं कर सकते। कई लोगों को महसूस होता है कि वे अपने व्यक्तित्व द्वारा नियंत्रित हैं। वे ‘मैं तो ऐसा ही हूं।’ कहकर आवश्यक अनुशासन और इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी से बरी हो जाते हैं, हालांकि वे जानते हैं कि जैसा जीवन वे जीना चाहते हैं और जिस तरह की ख़ुशी वे प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए उन्हें परिवर्तन करने होंगे।
नियंत्रण केंद्र को बाहर से अंदर लाने की कुंजी सरल है
आज ही अपने जीवन का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में लेने का निर्णय लें। एहसास करें और स्वीकार करें कि वास्तव में आप अपने निर्णय ख़ुद लेते हैं और आप आज जहां हैं और जिस हाल में हैं, अपने ही कारण हैं। यदि आपके जीवन का कोई पहलू ऐसा है, जहां आप ख़ुश नहीं हैं, तो उस स्थिति को बदलने के लिए जो भी ज़रूरी हो, उसे करने के लिए ख़ुद को आवश्यकतानुसार अनुशासित करें। तभी आप अपनी स्थिति को बदलने में सक्षम हो सकते हैं।
ख़ुशी का कारण
आपको यह लगता होगा कि ख़ुश रहने के लिए कुछ ख़ास परिस्थितियां होनी चाहिए। अक्सर आपकी मनचाही परिस्थितियों और मौजूदा परिस्थितियों के बीच के अंतर से ही यह तय होता है कि आप ख़ुश हैं या दु:खी। यह बहुत हद तक आपके अपने मूल्यांकन और निर्णय का मामला होता है।
एक पुरानी कहावत है, ‘सफलता का मतलब चाही गई चीज़ को पाना है, ख़ुशी का मतलब पाई हुई चीज़ को चाहना है।’ जब आपकी आमदनी और जीवन आपके लक्ष्यों तथा अपेक्षाओं के अनुरूप होते हैं और आप अपनी स्थिति से संतुष्ट होते हैं, तो आप ख़ुश होते हैं। दूसरी ओर, यदि किसी कारण से आपकी वर्तमान स्थिति आपकी मनचाही परिस्थिति से भिन्न होती है, तो आप असंतुष्ट और दु:खी रहते हैं।
संतुष्टि की यह अवस्था लगातार बदल सकती है। जब आप अपना करियर शुरू करते हैं, तो 50,000 डॉलर की वार्षिक आमदनी भी एक बड़ी उपलब्धि लग सकती है। लेकिन इस लक्ष्य पर पहुंचने के बाद आप इस बात को लेकर दु:खी हो जाते हैं कि आप एक लाख डॉलर या इससे ज़्यादा नहीं कमा रहे हैं। कुछ लोग साल में दस लाख डॉलर कमाने के बावजूद दु:खी हैं, क्योंकि वे एक करोड़ डॉलर नहीं कमा पाए। — ‘आत्म-अनुशासन की शक्ति’ से
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