यह मालवा उत्सव का छठा दिन था और शहर से हजारों लोग लोक संस्कृति के इस उत्सव के गवाह बने। सोमवार शाम गणगौर नृत्य की प्रस्तुति ने सभी को प्रभावित किया। निमाड़ अंचल में गणगौर पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व वहां बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। अपने नृत्य में कलाकारों ने इस पर्व की सही सुंदरता दिखाई। लाल छींट के घेरदार लहंगे पहनकर धनिया राजा व रनु बाई को अपने सिर पर रखा और धीमे-धीमे नृत्य किया। स्थानीय कलाकार रागिनी मक्खर और उनके समूह ने नारी शक्ति पर आधारित कथक नृत्य किया। लोक संस्कृति मंच के प्रमुख शंकर लालवानी भी यहां पूरे समय मौजूद रहे।
भाई की लंबी उम्र के लिए किया जानेवाला डाल खाई नृत्य
डाल खाई : उड़ीसा से आई 14 लोक कलाकारों के समूह ने वहां का प्रसिद्ध नृत्य डाल खाई नृत्य प्रस्तुत किया। यह नृत्य दुर्गा पूजा के अवसर पर दशहरे तक किया जाता है। लाल-काली साड़ी में महिलाएं आईं और पुरुष सफेद धोती पहनकर आए। यह नृत्य भाई की लंबी उम्र के लिए किया जाता है।
सैला : आदिवासी गोंड जनजाति का नृत्य सैला भी किया गया। यह दशहरे से दीपावली तक किया जाता है। इसमें महिला कलाकारों ने सवा हाथ के बांस के डंडे का खूबसूरत प्रयोग कर नृत्य किया।
ढोल कुनीथा : कर्नाटक का ढोल कुनीथा भी 20 लोक कलाकारों द्वारा जोर-जोर से ढोल बजाते हुए प्रस्तुत किया गया।
गुदुम बाजा : धूलिया जनजाति के कलाकारों ने गुदुम बाजा नृय की प्रस्तुति दी। इसमें कौड़ियों के पट्टे हाथ व शरीर में पहनकर गुदुम बजाते हुए नृत्य करते हैं। इसमें पिरामिड की संरचना खास रही।
बरेदी : सागर से आए कलाकारों ने यादव समाज का नृत्य बरेदी किया। इसमें 10 युवकों की टीम ने चकरी घुमाते हुए पीले परिधान में नृत्य किया। नृत्य में उन्होंने कई पिरामिड फॉर्मेशन बनाए।
आज अंतिम दिन
मंगलवार को मालवा उत्सव मेले का अंतिम दिन है और इस दिन पनिहारी, लावणी ,कोली, घूमर, गोंड कर्मा, बरेदी, गुजराती रास, काठियावाड़ी रास, उड़ीसा और कर्नाटक के प्रसिद्ध लोक नृत्य प्रस्तुत किए जाएंगे।
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