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इंदौर में आमलीला:मैंगो जत्रा में देवगढ़ और रत्नागिरी के किसान लाए हापुस आम

 

इंदौर शहर में शुक्रवार से मैंगो जत्रा की शुरुआत हुई। मराठी सोशल ग्रुप की तरफ से हर साल लगाए जाने वाले मिठास के इस जलसे में देवगढ़ और रत्नागिरि के किसान रसीले हापुस आम लाए हैं। ढक्कनवाला कुआं क्षेत्र स्थित ग्रामीण हाट बाजार में लगे इस तीन दिनी मेले में आम खरीदे और चखे भी जा सकते हैं। पहले ही दिन हजारों लोगों ने यह स्वर्ग बूटी खरीदी। मैंगो जत्रा रविवार तक सुबह 9 से रात 9 बजे तक खुला रहेगा।
समुद्री क्षेत्र की नमक युक्त आबोहवा बढ़ाती है स्वाद और रंगत
देश में आम की तकरीबन 280 किस्में पैदा की जाती हैं। भारत में पुर्तगाली उपनिवेश स्थापित करने वाले जनरल अल्फांसो डी अल्बुकर्क के नाम पर इसका नाम रखा गया है। अंग्रेजी में अल्फांसो, मराठी में हापुस, गुजराती में हाफूस और जौनपुरी में इसे स्वर्ग बूटी भी कहा जाता है। वैसे हम मालवा निमाड़ के लोग खट्‌टी-मीठी साग के मुरीद हैं, लेकिन हापुस अपनी स्वाद, सुगंध और रंगत के लिए मशहूर हैं। हापुस में भी सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं महाराष्ट्र में सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ़ के हापुस आम। ये समुद्री क्षेत्र है। यहां के तापमान, नमकयुक्त हवा और मिट्टी की तासीर का असर फल-सब्जियों पर कुछ ऐसा होता है कि स्वाद और रंगत दोनों सुर्ख हो जाते हैं।

ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए हैं सारे आम
कोंकण क्षेत्र का दिव्य स्वाद लेकर इंदौर आए हैं महाराष्ट्र के 25 किसान। जत्रा के बारे में आयोजक राजेश शाह और सुधीर दांडेकर ने बताया कि दो साल कोविड की वजह से हम मैंगो जत्रा लगा नहीं सके। यह 11वां सीजन है और इस बार लोग पूरी कसर निकाल रहे हैं। ये सारे आम ऑर्गेनिक तरीके से उगाए गए हैं। गोबर की खाद, नीम के कीटनाशक सहित सारी गुड एग्रीकल्चर प्रोसेस से इनका उत्पादन किया गया है। इसमें समय लगता है लेकिन आम बड़ा और बेहतर मिलता है।

क्यों खास हैं देवगढ़ के हापुस
10 साल से जत्रा में स्टॉल लगा रहे रामचंद्र करंदीकर ने बताया, कोकण के हापुस की गुठलियों से कर्नाटक में भी हापुस पैदा किया जा रहा है। बिक भी रहा है। बुरा नहीं है वहां का फल, लेकिन समुद्री जलवायु के अभाव में रंग, गंध और स्वाद कोकण जैसा नहीं मिल पाता। कर्नाटक के जिस बेल्ट में इनका प्रोडक्शन होता है, वहां दूर-दूर तक समुद्र नहीं है। दोनों के बीच फर्क ये है कि साउथ के अल्फांसो में रेशे ज्यादा होते हैं। कोकण का आम स्मूद होता है। साउथ हापुस का छिलका मोटा होता है। कोंकणी हापुस के निचले हिस्से में थोड़ी नुकीली टिप नहीं होती बल्कि साउथ हापुस में होती है। कलर और फ्लेवर का फर्क तो अपनी जगह है ही। देवगढ़ और रत्नागिरि के फल में भी थोड़ा फर्क है। देवगढ़ का हापुस ज्यादा मीठा होता है, लेकिन फ्लेवर रत्नागिरि का श्रेष्ठ लगता है। देवगढ़ी हापुस में रेशे नहीं होते। चम्मच से खा लें, ऐसा होते है देवगढ़ हापुस।

बिटकी और बेबी अल्फांसो भी चखिए मैंगो जत्रा में
रत्नागिरी और देवगढ़ के हापुस के साथ बिटकी आम भी यहां देखने को मिलेंगे। कृषकों ने बताया, दो आम एक डंडी पर साथ आते हैं। एक बड़ा हो जाता है, एक छोटा रह जाता है। लेकिन स्वाद इनका भी अदभुत होता है। देखने में साग जैसे ही लगते हैं बिटकी आम। इन्हें बेबी अल्फांसो भी कहते हैं। यहां आम से बने अचार, पापड़ शरबत, आम रस का मावा, कोकम शरबत, फणस चिप्स वगैरह भी लाए गए हैं।

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