पंचायती राज यानी गांव की सरकार के चुनावों की सबसे निचली और मजबूत इकाई होते हैं पंच, लेकिन इस बार ये ही चुनाव से तौबा कर रहे हैं। पंचायत चुनाव के लिए नामांकन प्रक्रिया सोमवार को खत्म हो गई। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये मिली कि पंच के 3,63,326 पदों के लिए 95,695 उम्मीदवारों ने ही नामांकन भरा।
ये आंकड़ा बढ़कर ज्यादा से ज्यादा 1 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है, फिर भी करीब 2 लाख 63 हजार 726 पंचों के पद खाली रह जाएंगे। बीते 28 साल यानी 1993-94 में यह पहला मौका है जब इतनी ज्यादा संख्या में पंचों के पद खाली रह जाएंगे।
अभी मंगलवार को जमा हुए नामांकनों की स्क्रूटनी होगी और उसके बाद 10 तारीख को नाम वापसी होना है, जिसमें पंचों के खाली पदों की संख्या और भी बढ़ सकती है। पंच पदों के लिए लोगों की बेरुखी बताती है कि इस बार उनकी चुनावों में कोई रुचि नहीं है। 2014-15 में हुए पंचायतों के चुनाव में पंच के 12 हजार पद खाली रह गए थे।
पहले सिर्फ आवेदन पर भराते थे फाॅर्म
अब तक पंच का चुनाव लड़ने वालों को आवेदन देने पर ही चुनाव की पात्रता थी। अन्य औपचारिकताएं नहीं होती थीं। नई व्यवस्था के तहत यदि उन्होंने सरकारी जमीन पर खलिहान भी बना लिए हैं जो सिर्फ सीजन के हिसाब से होते हैं, ये अब अतिक्रमण की श्रेणी में आ गया है। पंच का चुनाव लड़ने वाले पंचायत में नोड्यूज लेने जा रहे हैं जिसका उन्हें प्रमाण-पत्र नहीं मिल पाया।
चुनाव प्रक्रिया जटिल; इसलिए पंच के लिए कोई नहीं उतरना चाहता
प्रदेश में 52 हजार गांव हैं जिनमें प्रत्येक गांव की इकाई का पंच प्रमुख होता है जिसे 60 लोग चुनते हैं। पंच का चुनाव लड़ने से तौबा करने की बड़ी वजह चुनाव प्रक्रिया का जटिल होना है, जिसमें प्रमुख रूप से शपथ पत्र बनवाने में दो हजार रुपए का खर्चा आ रहा है।
इसके पहले पांच विभागों से नोड्यूज लेना पड़ता है, जिसमें बिजली का बकाया बिल न केवल खुद का जमा करना होता है, बल्कि भाई और रिश्तेदारों का भी। पानी का अनापत्ति प्रमाण पत्र, घर का टैक्स भी क्लियर होना जरूरी है।
रतलाम ब्लाक के पल्दूना में राजेश धाकड़ के परिवार का बिजली बिल जमा था, लेकिन उनकी नानी का बकाया था तो उन्हें 12 हजार रुपए बिजली का बिल जमा करना पड़ा, तब जाकर फार्म भरने की पात्रता हुई। अतिक्रमण के मामले होने से कई लोग फार्म नहीं भर पाए।
हर बैठक में 100 रु. देने का प्रावधान, वो भी नहीं मिल रहे
चुनाव न लड़ने की दूसरी वजह है- पंचों का गांवों की सरकार में महत्व कम होना है। पिछले 20 साल यानी 2003 के बाद ग्राम सभा की बैठकों का आयोजन नहीं हुआ है। हर बैठक में शामिल होने पर पंच को 100 रुपए देने का प्रावधान है। यही स्थिति सरपंच के मामले में है।
उन्हें हर महीने 1700 रुपए प्रति माह मानदेय दिया जा रहा है, जो नहीं मिल पा रहा है। इसी तरह जिला पंचायत सदस्य को 4500 रुपए और जनपद सदस्य को 2500 रुपए दिए जाने का प्रावधान है, यह भुगतान भी लंबे समय से नहीं हो रहा है।
- जिला पंचायत, जनपद पंचायत सदस्य और सरपंच के लिए कुल पदों से 7-7 गुना ज्यादा उम्मीदवारों ने आवेदन किए हैं।
अब आगे क्या
संवैधानिक व्यवस्था के तहत किसी भी जनप्रतिनिधि का पद 6 महीने से ज्यादा खाली नहीं रह सकता। पंच का पद खाली होने पर उसे 6 महीने में भरे जाने का प्रावधान है जो चुनाव के जरिए भरे जाने की व्यवस्था है।
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