छह साल से ऊपर के बच्चों को अब गोद दिए जाने की प्रक्रिया को आसान किया जा रहा है। इसके अधिकार अब कलेक्टर को दिए जा रहे हैं। अभी छह साल या इससे कम उम्र के तक के बच्चे तो आसानी से गोद चले जाते हैं। लेकिन छह साल से ज्यादा उम्र के बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया जटिल होने के चलते कई दंपती आनाकानी करते हैं। इसे देखते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मिशन शक्ति और मिशन वात्सल्य के तहत इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम (आईसीपीएस) में कई तरह के परिवर्तन करने का निर्णय लिया है।
इसको लेकर तीन राज्यों मप्र, राजस्थान और गुजरात की बैठक जयपुर में हुई। जिसमें तीनों राज्यों के बाल आयोग के अध्यक्ष व सदस्य, महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने भाग लिया। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2015 में नए संशोधन के बाद अब इस संबंध में नियम बन रहे हैं। नए नियम में कलेक्टर या एडीएम गोद देने के आदेश जारी कर सकेंगे। अभी तक इन बच्चों को केंद्रीय दत्तक ग्रहण प्राधिकरण (कारा) के माध्यम से गोद दिया जाता था। बच्चों के लिए चल रहे सरकारी व प्राइवेट शेल्टर होम में मनोवैज्ञानिक काउंसलर रखना अनिवार्य हाेगा। अभी तक किसी भी शेल्टर होम में काउंसलर नहीं है।
समिति का सदस्य बनने के लिए ग्रेजुएट होना जरूरी
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग को लगातार शिकायत मिल रही थी कि बाल कल्याण समिति में कई सदस्य ऐसे है जिनकी अपनी संस्था या शेल्टर होम चल रहे हैं। वे समिति के सदस्य बनकर अपनी संस्था को लाभ देते हैं। ऐसे लोगों को समिति का सदस्य नियुक्त नहीं किया जाएगा। वहीं, राजनीतिक दल से संबंध का सहारा लेकर कम पढ़े-लिखे लोग भी समिति के सदस्य बन जाते हैं।
अब तक इसलिए कठिन था
अब तक केवल कारा के माध्यम से ही बच्चे गोद जा सकते थे। इसके लिए ऑनलाइन आवेदन करना पड़ता था, जिससे बच्चे संबंधित परिवार को मिलने के बजाय दूसरे परिवार को मिल जाते थे। इसमें 2 साल का समय लगता था। अब एक महीने में ही कलेक्टर आदेश कर सकते हैं।
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मिशन शक्ति और मिशन वात्सल्य के तहत इंटीग्रेटेड चाइल्ड प्रोटेक्शन स्कीम में कई तरह के परिवर्तन होंगे। एडाप्शन, बाल कल्याण समिति सहित कई नियमों में भी बदलाव किया जा रहा है। इसके संबंध में केंद्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग जल्दी ही नियम जारी कर रहा है।
-ब्रजेश चौहान, सदस्य मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग
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