भारतीय वास्तुकला का नायाब उदाहरण धार जिले के मांडू में बने दाे महलाें और एक मकबरे में देखने काे मिलता है। यहां बिना किसी वाद्य यंत्र के गाने के साथ साज सुनाई देता है। यहां पत्थराें काे ऐसे लगाया गया है कि अपनी ही आवाज गूंजती है, जैसे काेई गाने के साथ साज दे रहा हाे। यहां 11वीं शताब्दी में बने बाज बहादुर महल, दरिया का महल और होशंगशाह के मकबरे की यह खासियत है। यही वजह है कि संगीत प्रेमियों के लिए मांडू खासताैर से आकर्षित करता है।
स्थानीय लेखक और गाइड विश्वनाथ तिवारी बताते हैं कि रानी रूपमति राग भूप, कल्याण और राग मल्हार गाती थीं। वहीं, बाज बहादुर खम ख्याल गाते थे। रानी रूपमति और बाज बहादुर की प्रेम कहानी में संगीत का अहम रोल था। मांडू के महलों में बने दरबार और संगीत दीर्घाएं यहां की समृद्धि की कहानी खुद बयां करती हैं। ऐतिहासिक ग्रंथों और पांडुलिपियों में इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं। इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि संगीत की अनगिनत नवीन विधाएं और प्राचीन वाद्य यंत्रों को यहीं इजाद किया गया था। इन महलों और मकबरे में यदि कोई सुर के साथ गाना गाए ताे आवाज साज की तरह रिफ्लेक्ट होती है। गाइड योगेंद्र परिहार बताते हैं कि यहां की दीवारें और कमरे संगीत के हिसाब से बनवाए गए हैं। इन महलों में कई ख्यातनाम संगीतकार, संगीत सम्राट तानसेन भी अपने संगीत का जलवा बिखेर चुके हैं। सन 1555 से 1562 तक बाज बहादुर का शासन मांडू में रहा, तब से संगीत यहां समृद्ध हुआ।
यहां लगे पत्थराें से 9 से 13 सेकंड तक आवाज गूंजती है
इन प्राचीन स्मारकों में राजस्थान से लाया गया रेड स्टोन, सैंड स्टोन और बेसाल्ट पत्थर का उपयाेग किया गया है। इन्हें इस तरह से लगाया गया है कि जब काेई गाता है ताे उसकी आवाज 9 से 13 सेकंड तक दीवाराें से टकराकर गूंजती है। इससे लगता है, जैसे काेई गाने के साथ साज दे रहा हाे। 1956 में एसएन त्रिपाठी ने रानी रूपमती और बाज बहादुर की प्रेमगाथा पर रानी रूपमती नाम से फिल्म बनाई। इसका गीत- आ लौट के आजा मेरे मीत, तुझे मेरे गीत बुलाते हैं, को बाज बहादुर महल और होशंगशाह के मकबरे में फिल्माया गया था।
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