- रूसी हथियारों पर निर्भरता कम करने की रणनीति
पश्चिमी देश भारत के साथ अपनी प्रतिरक्षा नीति में बदलाव कर रहे हैं। दरअसल, वे भारत द्वारा यूक्रेन पर रूसी हमले की भर्त्सना ना करने से विचलित हैं। ये देश चाहते हैं कि चीन से टकराव में उसे साथ लिया जाए। भारत विश्व में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक है। वह लंबे समय से हथियारों के लिए रूस पर निर्भर है। पश्चिमी देश हथियारों की कीमत के मामले में रूस का मुकाबला नहीं कर सकते हैं। वे अपनी अति आधुनिक टेक्नोलॉजी शेयर करने के इच्छुक भी नहीं हैं। इसलिए वे हथियारों के संयुक्त उत्पादन की रणनीति पर चल रहे हैं।
दूसरी ओर 2020 में सीमा पर खूनी टकराव के बाद भारत चीन के मामले में सचेत है। यूक्रेन से युद्ध शुरू होने के बाद वह हथियार सप्लायर के बतौर रूस की विश्वसनीयता और कुछ हथियारों की क्वालिटी के संबंध में चिंतित है। इधर, पश्चिमी नेता हथियारों के मामले में भारत की मदद करने का इरादा जताते हैं। वाशिंगटन में एक बैठक में अमेरिकी अधिकारियों ने टोही विमान, हवाई ड्रोन से निपटने के सिस्टम बनाने सहित आधुनिक हथियारों के निर्माण में भारत को सहायता देने पर चर्चा की थी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और यूरोपीय यूनियन की प्रेसीडेंट उर्सूला वॉन डर लेयेन ने संयुक्त हथियार उपक्रम का प्रस्ताव रखा था।
भारत में सरकारी और प्राइवेट सेक्टर में सैनिक विमान जैसी उच्चस्तरीय विशिष्ट डिफेंस टेक्नोलॉजी से संबंधित उत्पादन करने की क्षमता का अभाव है। हालांकि, कुछ बदलाव तो हो रहा है। पिछले साल अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने भारतीय कंपनी टाटा के साथ एफ-16 लड़ाकू विमानों के पंख बनाने को मंजूरी दी है। पंखों के 70% हिस्से स्थानीय तौर पर लिए जाएंगे। कंपनी को अगर 114 लड़ाकू विमानों का ऑर्डर मिल जाता है तो वह एफ-21 विमान बनाएगी।
रूसी हथियारों का आयात 20 प्रतिशत घटा
भारत ने जोर दिया है कि उसे अपने हथियार सप्लायर चुनने का अधिकार है लेकिन वह रूस से अलग हटकर दूसरे स्रोतों की ओर बढ़ रहा है। खासतौर से वह फ्रांस और इजरायल से अधिक हथियार खरीद रहा है। 2016 से 2021 के बीच भारत में रूसी हथियारों का आयात 70% से घटकर हो गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का कहना है कि भारत को अमेरिकी सहयोग का सबसे अच्छा तरीका है कि उसे एशिया में सैनिक साज-सामान के निर्माण का केंद्र बनाया जाए।
0 टिप्पणियाँ