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रोज़गार के मोर्चे पर हम फेल क्यों?

तस्वीर प्रतीकात्मक। - Dainik Bhaskar

तस्वीर प्रतीकात्मक।
  • विश्व बैंक के पूर्व चीफ़ इकोनॉमिस्ट कौशिक बसू ने हाल ही में दावा किया है कि भारत में 24% युवा बेरोज़गार हैं और यह दर दुनिया में सर्वाधिक है।
  • भारत में बेरोज़गारी की समस्या के कई पहलू हैं। इन्हीं का एक विश्लेषण...

इसमें कोई दो राय नहीं है कि कोविड और लॉकडाउन की वजह से भारत में पिछले दो साल के दौरान रोजगार सृजन की स्थिति काफी खराब रही है। लेकिन सच यह भी है कि देश में रोजगार के हालात कभी भी अच्छे नहीं रहे हैं और महामारी के पहले भी ये लगातार बद से बदतर होते गए हैं। यहां यह भी समझना होगा कि बेरोजगारी के आंकड़ों का संग्रहण करते समय केवल उन्हीं लोगों को रिपोर्ट किया जाता है, जो कहते हैं कि वे नौकरी पाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें कोई काम नहीं मिल पा रहा है। भारत जैसे विकासशील देशों में कई लोग लंबे अरसे तक यूं ही घर बैठे नहीं रह सकते और इसलिए वे कोई भी काम करने को राजी हो जाते हैं। इसी तरह एक स्थिति और होती है जिसे ‘डिस्करेज वर्कर इफेक्ट' कहते हैं। इसमें जब व्यक्ति को यह लगता है कि अब नौकरी के बहुत कम मौके हैं तो वह तलाश करना छोड़ देता है। भारत इन दोनों ही चुनौतियों से रूबरू हो रहा है।

किस तरह की है बेरोज़गारी?
हमारे यहां अधिकांश लोग वे हैं, जिनके पास स्व-रोजगार हैं। इनमें खेती के धंधे में लगे लोगों के अलावा प्लंबिंग, बढ़ई, मिस्त्री जैसे काम करने वाले लोग शामिल हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर लोग दिहाड़ी मजदूरी में भी लगे हुए हैं। एक अनुमान के अनुसार भारत में करीब 90 फीसदी वर्कफोर्स गैर संगठित क्षेत्र में कार्य कर रही है। पिछले तीन दशक में खेती के क्षेत्र में मशीनीकरण के चलते काफी संख्या में लोग कृषि से दूर हुए हैं। लेकिन दुर्भाग्य से ये लोग कृषि से दूर तो हुए, लेकिन इसके बदले में उन्हें कोई बेहतर नौकरी हासिल नहीं हो पाई, क्योंकि गैर कृषि क्षेत्र में भी गुणवत्ता वाला रोजगार सृजित नहीं हो पाया।

किसकी क्या दशा?
महिला: 
नवीनतम आंकड़ों के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 24 फीसदी तो शहरी क्षेत्र में 17 फीसदी महिलाएं वर्कफोर्स का हिस्सा हैं। बीते पांच साल में तो रोजगार में महिलाओं की स्थिति और भी बदतर हुई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार इस अवधि में एक करोड़ से भी अधिक महिलाओं के रोजगार छिन गए।
युवा: शहरी क्षेत्र में युवा महिलाओं में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक 25 फीसदी है, तो युवा पुरुषों में यह दर लगभग 18 फीसदी है। ग्रामीण क्षेत्र में युवा महिलाओं में बेरोजगारी 14 फीसदी से अधिक है तो युवा पुरुषों में लगभग 10 फीसदी। हालांकि विश्व बैंक के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट कौशिक बसू के दावानुसार भारत में असल में 24% युवा बेरोजगार हैं।
शिक्षित: भारत में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि जैसे-जैसे शिक्षा का स्तर बढ़ता जाता है, बेरोजगारी के आंकड़े भी बढ़ते जाते हैं। अगर किसी ने हायर सेकंडरी या उससे ऊपर की पढ़ाई कर ली है तो उसके बेरोजगार होने की आशंका भी बढ़ जाती हैं। आंकड़े यही दर्शाते हैं। पीएलएफएस की रिपोर्ट के अनुसार सेकंडरी या उससे ऊपर की पढ़ाई कर चुके लोगों में बेरोजगारी की दर सबसे अधिक करीब 10 फीसदी है। जो निरक्षर हैं, उनमें एक फीसदी लोग भी बेरोजगार नहीं हैं।

क्या हैं प्रमुख वजह?
तकनीक पर फोकस : केवल भारत ही नहीं, पूरी दुनियाभर में यह स्थिति है कि तकनीकी व प्रौद्योगिकी आधारित नई अर्थव्यवस्था में काम करने योग्य आबादी की तुलना में रोजगार का सृजन काफी कम हो रहा है। तो बेरोजगारी की स्थिति में बढ़ोतरी तो होना लाजिमी है, जिसे सरकारें स्वीकारने से बच रही हैं।
मैन्युफैक्चिरंग सेक्टर : अधिकांश रोजगार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में पैदा होते हैं। लेकिन बीते कुछ वर्षों से इस सेक्टर में विकास की दर काफी कम है। इससे जुड़े लघु एवं मध्यम उद्योग क्षेत्र को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें नया निवेश नहीं आ रहा है और लोगों की क्रय शक्ति कम होने से भी नकारात्मक असर पड़ रहा है।
स्किल का अभाव : शिक्षा के रोजगारपरक नहीं होने की वजह से हर साल लाखों की संख्या में स्नातक तो निकल रहे हैं, लेकिन अधिकांश कोई काम करने लायक नहीं हैं। यहां तक कि कुछ साल पहले आई एक रिपोर्ट के अनुसार आईआईटी सहित हमारे इंजीनियरिंग संस्थानों से निकलने वाले अनेक इंजीनियरों की स्किल का स्तर भी औद्योगिक सेक्टर की जरूरत के अनुसार नहीं है। ऐसे में रोजगार होने के बावजूद योग्य लोग नहीं मिल पाते और बेरोजगारी की समस्या बनी रहती है।

बेरोज़गारी की समस्या को कम करने के 3 समाधान...

1. मैक्रो लेवल पर हमें सबसे पहले गैर बराबरी को दूर करने और विकास के उस पैटर्न को बदलने की जरूरत है, जिस पर देश चला आ रहा है। अगर बड़े तबके के हाथ में खर्च करने लायक पैसा नहीं होगा तो उन क्षेत्रों में मांग का अभाव बना रहेगा जो सबसे ज्यादा रोजगार पैदा करते हैं।

2. केंद्र सरकार में ही करीब 8 लाख पद खाली पड़े हैं। राज्यों में भी लाखों पद रिक्त हैं। इनमें अधिकांश पद शिक्षक, नर्सेस, आशा वर्कर्स से जुड़े हैं। इन पदों को भरने से न केवल आम लोगों को कर्मचारियों के अभाव में हो रही दिक्कतों को दूर किया जा सकेगा, बल्कि कई नौकरियां भी सृजित की जा सकेंगी।

3. स्किल डेवलपमेंट पर सरकार को युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा, ताकि कौशल की कमी की वजह से कोई नौकरी पाने से वंचित न रह जाए। प्लंबिंग, मिस्त्री, बढ़ई, मैकेनिक के कुछ ऐसे नए कोर्स शुरू किए जा सकते हैं, जिनसे इस फील्ड में कार्यरत लोग प्रोफेश्नलिज्म के साथ काम कर सकें।

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