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भाषा की लाइनों को धुंधला कर दिया है भारतीय सिनेमा ने

'777 चार्ली' का एक दृश्य जो अगले सप्ताह एकसाथ चार भाषाओं में रिलीज होगी। - Dainik Bhaskar

'777 चार्ली' का एक दृश्य जो अगले सप्ताह एकसाथ चार भाषाओं में रिलीज होगी।

पिछले हफ्ते हॉलीवुड, बॉलीवुड और कुछ स्वतंत्र फिल्मों को मिलाकर आठ फिल्में रिलीज़ हुईं। कोई भी इन सभी की समीक्षा नहीं कर सकता, लेकिन पीआर एजेंसियों और प्रोडक्शन हाउसेस द्वारा ईमेल और व्हाट्स-अप पर मिल रहे संदेशों से तनाव बहुत मारक था। भले ही इसे कोविड के ऑफ्टर साइड इफेक्ट कह लिए जाएं, सिनेमा हॉल और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर कंटेंट की बारिश-सी हो रही है! इन हालात में मुझे नहीं लगता कि कोई योग्य अभिनेता या तकनीशियन ऐसा होगा, जिसके पास काम ना हो। सवाल यह है कि क्या मनोरंजन क्षेत्र में लगे सभी लोगों को उनकी सेवाओं के लिए तुरंत भुगतान किया जा रहा है या फिर हमेशा की तरह लंबा इंतजार करते रहो?

बीते दिनों एक टीवी अभिनेत्री से मेरी मुलाकात हुई तो उन्होंने बताया कि कोविड का सकारात्मक पहलू यह था कि सभी ऑडिशन अब ऑनलाइन होने लगे हैं। कॉस्टिंग एजेंसी अब कलाकारों से संपर्क करती है, उन्हें एक संक्षिप्त जानकारी भेजती है और वे उसी के अनुसार अपने वीडियो शूट करते हैं। वह कहती है, 'इस बात की बहुत कम संभावना होती है कि कोई फिल्म निर्माता आपके ऑडिशन को कभी देख भी पाता होगा, क्योंकि अमूमन कॉस्टिंग डायरेक्टर ही अंतिम फैसला करता है।' वे यह भी बताती हैं कि टीवी के एक डेली शो या एक फिल्म की शूटिंग के लिए एक सामान्य शिफ्ट दिन में 12 घंटे तक काम करने होते हैं और भुगतान 90 दिनों के या उसके बाद होता है। इसका मतलब है कि यदि आपके पास बहुत सारे एपिसोड्स नहीं हैं तो पैसा छह महीने के बाद ही आना शुरू होगा जो एक नवागंतुक के लिए बहुत डरावना है और अनुचित भी। तो इसका विरोध क्यों नहीं होता? इस सवाल के जवाब में उनका कहना था, 'यह आसान नहीं है। नियम तो निर्माता ही बनाते हैं और अभिनेताओं को उसी के अनुरूप काम करना होता है। इसलिए हर कोई चुप रहता है।'

शो बिजनेस के साथ समस्या यह है कि हर कोई एक घेरे में घूम रहा है और कोई तब तक नहीं रुकेगा, जब तक कि संगीत बजना बंद न हो जाए! कंटेंट को लेकर जुनून इसका जीता-जागता उदाहरण है। यह सारा खेल महामारी के दौरान शुरू हुआ था और आज भी चैनल थोक के भाव में उसी गति से कंटेंट उत्पन्न कर रहे हैं। एक बात जो मुझे भ्रमित कर रही है, वह यह है कि ओटीटी चैनल ब्रेक क्यों नहीं ले रहे हैं? आखिर इतना कंटेंट खप कहां रहा है? कामकाजी लोग कार्यालयों में कार्यरत हैं, गृहिणियां भी व्यस्त हैं और निश्चित रूप से युवाओं के पास भी कई काम हैं करने को। मेरे जैसे पत्रकारों के लिए भी यह नहीं हो सकता। आखिर एक आलोचक भी कितनी सामग्री ग्रहण कर सकता है, क्योंकि उसके पास केवल एक जोड़ी आंखें और दिन में 24 घंटे का समय है!

वैसे भी फिल्में देखने का समय भी बढ़ ही गया है। अब तो दक्षिण की सभी फिल्में हिंदी भाषा में भी रिलीज हो रही हैं। एक हफ्ते पहले अदिवी शेष अभिनीत फिल्म मेजर प्रदर्शित हुई, लेकिन हिंदी संस्करण उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा। आने वाले सप्ताह में '777 चार्ली' एकसाथ चार भाषाओं में रिलीज हाेगी। मैं जहां भी जाता हूं, लोग मुझसे पूछते हैं कि दक्षिण की फिल्मों के लिए अचानक इतना क्रेज क्यों बढ़ गया है? खैर, आकर्षण हमेशा से रहा है। पहले दक्षिण का हिंदी सिनेमा के प्रति आकर्षण रहता था। शिवाजी गणेश हमेशा इस बात को लेकर जानने को उत्सुक रहते थे कि दिलीप कुमार कौन-सी फिल्में कर रहे हैं।

70 के दशक में कॉपीराइट का कोई मसला नहीं हुआ करता था और रजनीकांत तमिल फिल्मों में बच्चन की सभी सुपरहिट फिल्मों को दोहराया करते थे। 80 के दशक में दक्षिण के प्रोडक्शन हाउस हिंदी के सुपरस्टार्स के साथ अपनी फिल्में बनाया करते थे। उस दौर के याद कीजिए जब जितेंद्र, रेखा, राजेश खन्ना हमेशा मद्रास मंे शूटिंग किया करते थे। इसी दौरान जयाप्रदा और श्रीदेवी का बॉलीवुड में पदार्पण हुआ था। कुछ सालों की शांति के बाद बाहुबली आई। फिर पुष्पा, आरआरआर और केजीएफ। भले ही हमेशा राजनेता कुछ भी कहते रहे, सच तो यह है कि भारतीय सिनेमा ने भाषा की लाइनों को धुंधला कर दिया है और अब एकजुट होकर सामने आ रही हैं।

'777 चार्ली' का एक दृश्य जो अगले सप्ताह एकसाथ चार भाषाओं में रिलीज होगी।

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