बुधवार, 13 जुलाई को आषाढ़ मास की पूर्णिमा है। इसे गुरु पूर्णिमा कहा जाता है, ये गुरु की आराधना का पर्व है। इस दिन गुरु की पूजा करनी चाहिए, उन्हें उपहार देना चाहिए। गुरु की बातों को जीवन में उतार लिया जाए तो हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं। गुरु की शिक्षा किस तरह से हमारी मदद कर सकती हैं, ये यहां बताई जा रही कहानी से समझ सकते हैं...
पुराने समय में एक संत थे, उनका नाम था नारायण देवाचार्य। वे अपने गुरु की बातों पर बहुत भरोसा रखते थे और इसलिए अपने उपदेशों में हमेशा कहते थे कि हमारे लिए गुरु का होना बहुत जरूरी है। अगर गुरु की बात जीवन में उतार ली जाए तो मन कभी अशांत नहीं होता है।
एक बार देवाचार्य जी यात्रा पर थे। वे किसी वन से गुजर रहे थे, उनके साथ कुछ शिष्य भी थे। रास्ते में उनके सामने एक शेर आ गया। देवाचार्य जी के साथ के लोग तो अपनी जान बचाकर वहां से भागने लगे, लेकिन देवाचार्य जी वहां से नहीं भागे, वे निडर होकर वहीं खड़े रहे।
संत देवाचार्य ने देखा कि शेर के पैर में तीर लगा हुआ है। जैसे ही शेर संत के पास आया तो वह वहीं रुक गया। संत ने शेर के सिर पर हाथ फेरा और उसके पैर से तीर निकालकर वहीं फेंक दिया। इसके बाद शेर उन्हें नुकसान पहुंचाए बिना वहां से चला गया।
दूर खड़े लोग ये घटना देख रहे थे। शेर के जाने के बाद सभी लोग देवाचार्य जी के पास आए और पूछने लगे कि शेर ने आपको नुकसान क्यों नहीं पहुंचाया?
देवाचार्य ने कहा कि जब हम भगवान पर पूरा भरोसा रखते हैं और गुरु के दिए मंत्र का ध्यान करते हैं तो हमारे आसपास सकारात्मक ओरा बन जाता है। इस ओरे के प्रभाव में आते ही लोग शांत हो जाते हैं।
संत जी ने सभी को संदेश दिया कि हमें गुरु की बातों को जीवन में उतारना चाहिए और गुरु के बताए हुए नियमों का पालन करना चाहिए। अनुशासन में रहना चाहिए। इस बात का ध्यान रखेंगे तो हमारा मन शांत होगा, हमारे आसपास सकारात्मक ऊर्जा रहेगी। हमारे आसपास जो लोग आएंगे, वे हमसे प्रभावित होंगे और हमारे साथ प्रेम पूर्ण व्यवहार करेंगे।
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