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डॉ. रीना रवि मालपानी द्वारा 14 जुलाई से प्रारम्भ हो रहे सावन माह पर लिखित लेख “सावन विशेष : लिंग रूप की महिमा”

 

भूत-भावन, महेश्वर, कैलाशी, अविनाशी भोलेनाथ सदैव अपने लिंग रूप में भक्तों की मनोकामना पूर्ति के लिए विद्यमान रहते है और वह लिंग रूप भी अपने पूरे परिवार और भक्त नंदी के साथ सुशोभित होता है। शिव परिवार की सबसे अच्छी विशेषता है कि वहाँ कोई छल-कपट और राग-द्वेष नहीं है। बैल, सिंह, मोर, सर्प और चूहा सभी प्रेम पूर्वक निवास करते है। पूरा परिवार हर गृहस्थ की मनोकामना पूरा करने में सक्षम है। इस लिंग रूप की सभी देवता भी स्तुति करते है। इस लिंग रूप का हर भक्त अपनी मनोकामना के अनुरूप नामकरण कर देते है। इसलिए भोलेनाथ अनेकों नामों से जाने जाते है। इसी लिंग रूप की स्तुति प्रभु श्रीराम ने रामेश्वर स्वरूप में की थी और शिव को प्रभु श्रीराम का ईश्वर भी बताया।

            शिवजी का लिंग रूप अनेकों श्रंगार से भी सुशोभित होता है और शिव शंभू तो मात्र जल, बिल्वपत्र, धतूरा और भक्त के भाव से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। यह लिंग स्वरूप हर जगह विद्यमान है। आकाश, पाताल और मृत्युलोक सर्वत्र यह लिंग रूप वंदनीय है और अपनी अभीष्ट इच्छा को पूर्ण करने के लिए भक्तो के लिए सर्वत्र उपलब्ध है। यही शिव शंभू ज्योतिर्लिंग स्वरूप में भी भक्तों के लिए प्रत्यक्ष विराजमान है। इस लिंग रूप की आराधना और अर्चना के लिए कोई मुहूर्त और कठोर नियम नहीं है। सृष्टि की सबसे अनुपम जोड़ी शिवशक्ति इसी लिंग रूप में सुशोभित होती है। यह लिंग रूप मंदिरों तथा पीपल और वट वृक्ष के नीचे भी ध्याया जाता है। शिव पूजन में कोई समय सीमा और आडंबर नहीं है। जैसे योगीश्वर शिव सदैव ध्यानमग्न रहते है, यही संदेश वह अपने भक्तों को भी देते है और कहते है बिना किसी आडंबर के सिर्फ और सिर्फ मेरा सुमिरन और पूजन करें। कलयुग में तो नाम संकीर्तन को ही प्रमुख बताया गया है। तो क्यों न हम भूत भावन महेश्वर की लिंग रूप में आराधना कर सावन माह में श्रेष्ठ फल पाने की ओर अग्रसर हो। यह लिंग स्वरूप तो मनुष्य के जन्म-जन्मांतर के पापों का भी क्षय कर देता है। लिंगाष्टकम स्तुति में शिव के इसी रूप की महिमा का वर्णन है। शिव शंभू तो सदैव सरलता की ओर ध्यान आकृष्ट करना चाहते है तो आइये इस सावन माह में शिव के लिंग रूप का आह्वान करें।       


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