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कई वार्डों से जनता ने परिवारवाद की घर वापसी:15 से 20 साल से पार्षद चुनकर आ रहे अग्निहोत्री, शुक्ला, रेडवाल सहित कई परिवार के लोगों को जनता ने नकारा

इंदौर में शहर के ऐसे परिवार जिनका कोई ना कोई सदस्य 15 से 20 साल से लगातार पार्षद चुनता आ रहा है। इस बार वह चुनाव परिणाम आने के बाद पार्षदी से बाहर हो गया है। इन परिणामों से भले ही कांग्रेस, भाजपा सबक न ले, लेकिन कई परिवारों के लिए यह चुनाव अंतिम साबित हुआ। विधानसभा क्षेत्र क्रं. 1 से लेकर 5 तक के कई ऐसे कई पार्षद प्रत्याशी जिन्हें परिवार के कारण टिकिट मिला उन्हें वार्डों की जनता ने परिवारवाद के नाम पर नकारा दिया।

परिवार वाद के नाम पर नकारे गए पार्षद प्रत्याशी

वार्ड-1 : अग्निहोत्री परिवार

वार्ड 1 में सिरपुर से पिछले 15 साल से अग्निहोत्री परिवार से ही पार्षद मिल रहा था। पहले राजा अग्निहोत्री फिर उनके छोटे भाई की पत्नी प्रीति गोलू अग्निहोत्री 2 बार पार्षद रहीं। इस बार भी मैदान में थी, लेकिन भाजपा के मंडल अध्यक्ष और जमीनी कार्यकर्ता से हार गई। खुद गोलू क्षेत्र क्रं. 1 से विधानसभा के दावेदार रहे हैं। बावजूद प्रीति अग्निहोत्री लगभग 1179 वोट से हार गई।

वार्ड 7 - शुक्ला परिवार

जिंसी क्षेत्र में कांग्रेस के कद्दावर नेता पं. कृपाशंकर शुक्ला, जो खुद क्षेत्र से पार्षद रहे और बाद में शहर कांग्रेस अध्यक्ष और आईडीए के चेयरमेन भी रहे। उनके बाद इस वार्ड से उनके बेटे अतुल शुक्ला और भतीजे अनिल शुक्ला भी पार्षद रहे। इसके बाद उनकी बहू सोनिया शुक्ला भी यहां से पार्षद रहीं। इस बार अनिल शुक्ला की बेटी साक्षी शुक्ला यहां से प्रत्याशी थी, लेकिन वह 2419 वोट से हार गई।

वार्ड 11- रेडवाल परिवार

इंदौर के भागीरथपुरा वार्ड 11 मतलब रेडवाल परिवार का गढ़। भाजपा के वरिष्ठ नेता रहे मांगीलाल रेडवाल कभी इस वार्ड से पार्षद रहे तो कभी उनकी पत्नी पार्षद बनी। इस वार्ड से रेडवाल कभी भाजपा से तो कभी निर्दलीय चुनाव लड़कर जीते। लेकिन इस बार भी निर्दलीय चुनाव लड़े लेकिन उलटफेर हुआ और रेडवाल भाजपा के कमल वाघेला से 2870 वोट से हार गए। चर्चा है कि रेडवाल फिर से यहां पार्षद का चुनाव नहीं लड़ेंगे।

वार्ड 22 - शिंदे 5वीं बार पार्षद बनने से रुके

भाजपा दो नंबर क्षेत्र के सबसे ताकतवर पार्षद और कैलाश-रमेश के खास माने जाने वाले चंदू शिंदे भी 4 बार के पार्षद रह चुके हैं। लेकिन लगातार वार्ड बदलने और आपसी राजनीति में 5 बार पार्षद बनने से चूक गए। उन्हें कांग्रेस के राजू भदौरिया ने 2 हजार 48 वोट से हरा दिया। खास बात यह है कि चंदू वार्ड 44 और 33 व दो अन्य वार्डों से पार्षद रह चुके हैं, लेकिन इस बार वार्ड 25 से हार गए।

वार्ड 10 - यादव परिवार से किसी को जीत मिली तो किसी को मिली हार

बाणंगगा में भी परिवार की राजनीति यादव परिवार तक ही सीमित रही। पूर्व विधायक भल्लू यादव भी पार्षद बने तो उसके बाद उनकी बहू 2 बार पार्षद रह चुकी है। वे इस बार फिर जीतकर मैदान में है। वजह काम, सक्रियता और समाज को साधकर चलने की रणनीति। हालांकि उनके ही परिवार से भानजी शिवांगी यादव वार्ड 22 से चुनाव हार गईं। वहीं वार्ड 1 में बंते यादव, केके यादव और केवल यादव भी पार्षद बन चुके हैं। जबकि छोटे यादव 5 चुनाव जीत चुके हैं, लेकिन इस बार वार्ड क्या बदला, समीकरण बदले और भाजपा प्रत्याशी से 1909 वोट से हार गए।

वार्ड 7 - अल्पसंख्यक वार्डों में नहीं हुआ बदलाव

इंदौर में 7 वार्ड पूरी तरह अल्पसंख्यक वार्ड है। खास बात यह है कि समाज का साथ होने से यहां बदलाव कम ही हुए। फिर चाहे खजराना के 2 वार्डों में उस्मान पटेल हो या इकबाल खान। कभी खुद पार्षद बने तो कभी पत्नी को लड़ाया। पार्टियों ने टिकट नहीं दिया तो निर्दलीय लड़े और जीते भी। इसी तरह आजाद नगर में शेख अलीम, चंदन नगर में रफीक खान, जूना रिसाला और इमली बाजार में अनवर कादरी, अनवर दस्तक, बंबई बाजार से अयाज बैग, खातीवाल टैंक से सादिक खान भी अब इस फेहरिस्त में शामिल हो चुके हैं।

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