आहा ! अरसा बाद कोई शाम ऐसी बीती... इतनी हल्की-फुलकी...। हंसते, मुस्कराते, ठहाके लगाते ढाई घंटा यूं बीता जैसे सर्दियों की सांझ का उजाला ओझल होता है... राकेश बेदी, डेलनाज़ और किश्वर मर्चेंट जैसे नामी कलाकार रूबरू थे। मंच था रस भारती का और उस पर मुंबई से आए इन समृद्ध कलाकारों ने परोसा शुद्ध-सात्विक हास्य। सचमुच... सोशल प्लेटफॉर्म्स पर फूहड़, हल्की भाषा वाले भद्दे चुटकुलों की बाढ़ से दूर शुद्ध हास्य रस मिला जो आज के दौर में दुर्लभ सा हो चुका है, लेकिन रविवार को डीएवीवी ऑडिटोरियम में खेले गए इस नाटक रॉन्ग नंबर ने सिद्ध कर दिया विनोद और आनंद का रसायन तैयार करने के लिए एडल्ट जोक्स का तेज़ाब कतई ज़रूरी नहीं है।
... तो यह कहानी है तीन शादीशुदा कपल्स की। पहली जोड़ी है सीईओ यशवंत सिंह और सोशल वर्कर कामिनी की। दूसरा कपल है सीईओ के एम्प्लॉई अविनाश और रंजना का... माफ कीजिए राजकोट की रंजना का और तीसरी जोड़ी है नटवरलाल चौरसिया और पूनम की। हो ता यूं कि यशवंत सिंह की पत्नी कामिनी और अविनाश का अफेयर हो जाता है। वह रातों को देर से घर लौटता है। उसके लिए दिन भर लैंडलाइन पर कॉल आते हैं। वह बात बात में बहाने बनाता है और उसकी पत्नी राजकोट की रंजना.. उसकी हरकतों के पीछे की वजह भांपने लगती है। जब देरी से आने की वजह रंजना पूछती है तो अविनाश कह देता है कि वह कंपनी के अकाउंटेंट नटवरलाल के साथ शराब पी रहा था। इधर कामिनी भी अपने भुलक्कड़ पति से कह देती है कि वह नटवरलाल की बीवी पूनम के साथ थी। नटवर का कहीं अफेयर है और इसलिए पूनम दुखी थी। अब होता यूं है कि ये सारे किरदार जो अब तक दूर-दूर थे, इत्तेफार्क से एक जगह मिल जाते हैं। रंजना तो माजरा समझ जाती है, लेकिन यशवंत सिंह अंत तक नहीं समझ पाते कि कामिनी उन्हें बेवकूफ बना रही है। इस सबके बीच में एक कन्फ्यूजन यह बन जाता है कि अविनाश का अफेयर नटवर की बीवी पूनम से है और इन्हीं परिस्थितियों में पैदा होता है हास्य का बेजोड़ रसायन।
अभिनय : अदभुत रहीं डेलनाज़, दर्शक उनके दृश्यों का इंतजार करते रहे
राकेश बेदी सीनियर एक्टर हैं और यहां भी खूब जंचे, लेकिन डेलनाज़ के लोगों के दिल जीत लिए। कमाल की टाइमिंग। लाजवाब आंगिक और वाचिक अभिनय। गुजराती टोन। आहा.. डेलनाज़ अदभुत रहीं। इस नाटक की जान है उनका किरदार और उनकी अदायगी। राकेश बेदी हमेशा की तरह बहुत सहज अौर यशवंत सिंह के किरदार में पूरी तरह ढले हुए। कामिनी बनी किश्वर और अविनश के किरदार में राहुल भूचर ने भी ग़ज़ब किया। टाइमिंग ऐसी गजब की रही कि नाटक की पकड़ कहीं भी ढीली नहीं पड़ी। एक भी एक्टर ने एक भी जगह फम्बल नहीं किया। हर लफ्ज़ हर संवाद साफ सुनाई दिया और यहां नजर आती है इन कलाकारों ीे मेहनत। इंदौर के रंगकर्मियों को इन्हें देखना चाहिए। सीखना चाहिए कि कैसे टीवी के बड़े व्यस्त सितारे होकर भी ये सभी रंगकर्म को कैसे जी रहे हैं।
निर्देशन : पहले दृश्य से ही ग्रिप बना ली नाटक ने
रमन कुमार ने कमाल की ब्लॉकिंग की है। नाटक पहले एक मिनट में ही दर्शकों पर ऐसी ग्रिप बना लेता है कि वे कुर्सी से चिपक जाते हैं। हास्य नाटक बड़े ट्रिकी और रिस्की होते हैं। जोक पर दाद न मिले तो आत्मविश्वास हिल जाता है और फिर पूरा नाटक डल होने लगता है लेकिन यहां हर सीन पर ठहाके लग रहे थे। रमन फिल्में और पॉपुलर सीरियल के डायरेक्टर रहे हैं। मराठी नाटक का यह हिंदी एडैप्टेशन रचा उन्होंने और क्या खूब रचा। शो ऐसा हिट रहा कि दर्शकों ने कलाकारों को स्टैंडिंग ओवेशन दिया। व्यवसायी विनोद अग्रवाल और रस भारती के सचिव राकेश मित्तल ने सभी को अभिवादन दिया।
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