- सावन मास अंग्रेज़ी कैलेंडर के अनुसार जुलाई-अगस्त में पड़ता है तथा हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र से आरंभ होने वाले वर्ष में इस माह का क्रम पांचवां है।
शिवपुराण में सावन मास के महत्व को लेकर विशद उल्लेख हैं। सावन मास भगवान शंकर का मास है। इसे श्रावण भी कहते हैं क्योंकि इस मास की पूर्णमासी श्रवण नक्षत्र से युक्त होती है। इस माह का मुख्य नक्षत्र श्रवण है जिसके कारण भी इसे श्रावण कहा जाता है।
एक मान्यता यह भी है कि श्रुति का अर्थ वेद होता है। प्राचीन काल में वेद नित्य श्रवण किए जाते थे लेकिन शनै:-शनै: उनका सुनना कम हो गया तब यह निर्णय लिया गया कि इन्हें केवल वर्षाकाल में सुना जाए इसलिए इस काल में पड़ने वाले मास का नाम श्रावण हुआ।
इस मास को नभस के नाम से भी संबोधित किया जाता है जो बादल का पर्याय है। इसीलिए वर्षा ऋतु श्रावण की ऋतु मानी जाती है। कहा जाता है कि इसके माहात्म्य के श्रवण मात्र से सिद्धि प्राप्त होती है इसलिए भी यह श्रावण कहलाता है।
श्रावण का एक अर्थ प्रसन्न करना भी होता है। सावन एक प्रकार का गीत भी होता है तथा पहाड़ों में पाए जाने वाले एक पेड़ को भी सावन कहते हैं।
यह मास भोले को ही समर्पित है। इसलिए इसे शिवमास भी कहा जाता है। सावन मास की शिवरात्रि पर शिव का जलाभिषेक करना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इस दिन भगवान शिव का पूजन करने पर मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। शिव पुराण के अनुसार शिव स्वयं ही जल भी हैं।
इस माह की सबसे महत्वपूर्ण घटना समुद्र मंथन की मानी जाती है। इसी माह में सावन में समुद्र मंथन में हलाहल निकला था जिसे भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण किया और नीलकंठ नाम उन्हें लोक ने दे दिया। उन पर विष का प्रभाव कम हो इसीलिए सावन या श्रावण मास में उन्हें जल चढ़ाया जाता है। पूरे देश में जो कांवड़ यात्राएं होती हैं वे भोले पर हुए विष प्रभाव को कम करने के लिए की जाती हैं। इसका अंतर्निहित संदेश है लोक विषमुक्त हो।
शिव इस माह में सृष्टि के कर्ता भी हैं क्योंकि सावन में भगवान विष्णु चार माह के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं और सृष्टि के संचालन का भार शिव को सौंप देते हैं। इसलिए चौमासे में शिव ही सर्वेसर्वा देवता हैं। वे सावन माह के प्रधान देवता हैं। इस अवधि में शिव के शिवत्व की आराधना, अर्चना का आशय लोक की आराधना का है इसलिए कि अपने लोक के संरक्षक शिव अपने आप में लोक ही हैं। मान्यता है कि शिव सावन में ससुराल जाते हैं और यही समय होता है जब उनकी कृपा भूलोकवासी पा सकते हैं।
एक अन्य पौराणिक संदर्भ के अनुसार मार्कंडेय ऋषि ने सावन माह में घोर तप किया जिसके परिणामस्वरूप शिव की कृपा उन्हें लंबी आयु के लिए प्राप्त हुई। उन्हें इतनी प्रबल मंत्रशक्ति मिली कि यमराज भी नतमस्तक हो गए।
सावन मास ही वह मास है जब पार्वती की तपस्या फलीभूत हुई थी। सावन मास व्रतों और उत्सवों का पर्व है।
श्रावण मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ हो जाता है। श्रावण मास में सावन सोमवार के व्रत रखे जाते हैं। वैसे सोमवार का बहुत महत्व है। सावन माह में पड़ने वाले चारों सोमवारों पर उपवास किए जाते हैं तथा इसे शिव की आराधना माना जाता है। सावन की शिवरात्रि का भी अत्यधिक महत्व है। इस शिवरात्रि पर जो सावन मास की त्रयोदशी तिथि पड़ती है उस पर माता पार्वती और शिव दोनों की पूजा व आराधना की जाती है। कांवड़ यात्री इसी दिन बोल बम का उद्घोष कर शिव मंदिरों में जलाभिषेक करते हैं।
इसी मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया पर हरित तालिका तीजोत्सव मनाया जाता है जिसे हरियाली तीज कहते हैं। यह उत्सव सावन का प्राण पर्व है। इस पर्व पर धरती के तन और किशोरियों के मन पर हरियाली छाई रहती है। इस दिन माता पार्वती की पूजा होती है तथा क्वांरी कन्याएं और सुहागिनें शृंगार कर झूला झूलती हैं। अनेक स्थानों पर मेले सजते हैं।
सावन में ही शक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी मनाकर नाग देवता की पूजा की जाती है। इसी माह में पुत्रदा एकादशी के दिन विष्णु पूजा कर संतान की लंबी आयु की प्रार्थना की जाती है। सावन में ही ओणम पर्व मनाया जाता है तथा मान्यता है कि इस दिन पाताल लोक से राजा अपनी प्रजा से मिलने धरती पर आते हैं तथा सावन मास की पूर्णिमा पर भाई-बहनों का अप्रतिम पर्व रक्षा बंधन मनाया जाता है।
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