नगर निगम के 85 वार्डों के चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद अब स्थिति स्पष्ट हो चुकी है कि एमआईसी भी भाजपा की ही बनेगी। अहम यह कि 85 वार्डों में से इस बार 43 महिला पार्षद हैं। इंदौर के अब तक के मिजाज के हिसाब से वार्ड संचालन की कमान अप्रत्यक्ष रूप से उनके पार्षद पतियों के हाथों में ही रहेगी। महिला पार्षद हर बार की तरह बैठकों, आयोजनों आदि में अधिकृत उपस्थिति लिहाज से शामिल होती रहेंगी लेकिन कोई भी निर्णय लेने और पॉलिसी बनाने या अफसरों के सामने पति ही आएंगे। दरअसल वार्डों की राजनीति और पत्नियों को टिकिट दिलाने में पतियों की ही अहम भूमिका रही है।
इस चुनाव में भी नामांकन भरने से लेकर निर्वाचन सर्टिफिकेट प्राप्त करने तक मीडिया ने भी जब महिला पार्षदों या सरपंचों से बात की तो उनके स्थान पर पति ही कुछ कहने के लिए आगे आए या फिर उनसे पूछकर महिला पार्षद ने अपनी बात कही। इसके पूर्व इन टिकिट को लेकर भी इनके पति स्थानीय स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में रहे। कई महिला पार्षदों के पतियों ने तो टिकिट फाइनल होने के पहले ही जनसंपर्क शुरू कर दिया था।
पत्नियों के नाम पतियों ने की बगावत, सभी हारे
महिला पार्षद पतियों के हाथ में कमान होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस बार भाजपा ने जिन 22 बागियों को निष्कासित किया था, उनमें से 13 तो अपनी पत्नियों को टिकिट दिलाने में प्रयासरत थे। जब इनकी पत्नियों को टिकिट नहीं मिला तो उन्होंने पार्टी से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ाया लेकिन सभी हार गए।
ऐसी रहती है पार्षद पतियों की भूमिका
- महिला पार्षद के मोबाइल नंबर उनके पति संचालित करते हैं ताकि कोई भी शिकायत या पार्टी संबंधी, वरिष्ठ नेताओं के फोन आए तो खुद अटैंड कर सके और दूसरा खुद का राजनीतिक कद बढ़ सके।
- महिला पार्षद के कार्यालय या घर में जहां भी वार्ड वासियों को आना हो वहां अकसर पति ही सुनवाई करते हैं।
- किसी प्रकार का कोई आयोजन हो तो उनमें पतियों की शिरकत अहम रहती है।
- उनकी पहचान ही ‘पार्षद पति’ के रूप में हो जाती है।
- किसी का काम के श्रेय की बात हो या घपला, पार्षद पति का नाम ही पहले आता है।
पार्षद रह चुके पतियों ने पत्नियों को टिकिट दिलाए और जिताया भी
दरअसल नगर निगम चुनाव में हर बार वार्ड के आरक्षण की स्थिति बदलती है। इस बार भी भारी उलटफेर हुए। ऐसे में वे कार्यकर्ता जो पांच साल से पार्षद का चुनाव लड़ने के लिए दावेदारी की तैयारी कर रहे होते हैं, उनका वार्ड महिला वर्ग का होने जाने के कारण पत्नी की टिकिट दिलाते हैं। कई वार्डों में तो ऐसा भी रहा जहां पहले पत्नी पार्षद रही लेकिन फिर आरक्षण बदलने से पति चुनाव के लिए खड़े हुए। इस बार वार्ड पांच के भाजपा पार्षद निरंजनसिंह चौहान है जबकि उनकी पत्नी सपना पूर्व में पार्षद रह चुकी है। वार्ड 38 में इस बार जमीला निर्दलीय के रूप में चुनाव जीती है। पहले उनके पति उस्मान पटेल पार्षद रह चुके हैं। वार्ड 53 में इस बार कांग्रेस की फौजिया पार्षद है जबकि उनके पति शेख अलीम भी पार्षद रह चुके हैं। ऐसे कई वार्ड हैं। इस बार वार्ड 59 की रूपाली पेंढारकर ही ऐसी पार्षद है जो कम उम्र की होकर अविवाहित है। वह बीएचएमएच की पढ़ाई कर रही है।
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