गुरुवार, 11 अगस्त को सावन मास की अंतिम तिथि पूर्णिमा है। जो कि अगले दिन सुबह भी कुछ देर तक रहेगी। लेकिन प्रतिपदा तिथि लगभग पूरे दिन होने से 12 अगस्त को भाद्रपद महीना शुरू हो जाएगा। पूर्णिमा पर पवित्र नदियों में नहाने की परंपरा है। लेकिन बारिश का मौसम होने से गंगा, यमुना, नर्मदा या अन्य किसी भी पवित्र नदी का जल लाकर घर पर ही पानी में मिलाकर नहाएं। ऐसा करने से तीर्थ स्नान का पुण्य मिल जाता है।
दान देने की परंपरा
पुरी और बनारस के विद्वानों का कहना है कि सावन महीने की पूर्णिमा पर जरूरतमंद लोगों को खाना खिलाएं। ये न कर पाएं तो अपनी श्रद्धा के अनुसार पैसे और अनाज का दान करें। इस दिन कपड़े, जूते-चप्पल, नमक, तिल या गुड़ का दान भी दिया जाता है। ऐसा करने से
शिव पूजा का विधान
शिव पुराण के मुताबिक सावन में शिवजी की पूजा करने का विधान है। ये पूर्णिमा सावन का आखिरी दिन होती है। इसलिए इस दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करनी चाहिए। इसके लिए किसी लोटे में पानी, गंगाजल और दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाना चाहिए। इसके बाद बिल्वपत्र, मदार के फूल और धतूरा चढ़ाएं। ये सब करते वक्त ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। इसके बाद शाम को शिव मंदिर में तिल के तेल का दीपक लगाएं।
श्रीकृष्ण की पूजा
दक्षिणावर्ती शंख से भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप बाल गोपाल का अभिषेक करें। इसके लिए शंख में गंगाजल, केसर और हल्दी मिला दूध भरें। फिर भगवान को चढ़ाएं। अभिषेक के बाद तुलसी पत्र और पीले फूल चढ़ाएं। पीली मिठाई का भोग लगाएं। आखिरी में आरती करें और हो सके तो किसी जरुरतमंद या ब्राह्मण को भोजन करवाएं।
गुरुवार और पूर्णिमा के संयोग में क्या करें
1. इस शुभ योग में भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा खासतौर पर करें। विष्णुजी के अवतार भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़ें या सुनें। सत्यनारायणजी को केले का भोग लगाएं।
2. पंचदेव यानी शिवजी, गणेशजी, विष्णुजी, देवी मां और सूर्यदेव की पूजा करें। किसी भी शुभ काम में इन पांचों देवताओं की पूजा जरूर की जाती है।
3. अपने इष्टदेव के मंत्रों का जाप करें। इस दिन सुबह और शाम तुलसी में जल चढ़ाएं। फिर घी का दीपक लगाएं और तुलसी की परिक्रमा करें।
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