रालामंडल अभयारण्य इस बार बारिश की एक-एक बूंद को सहेज रहा है। पहाड़ी पर पानी रोकने के लिए जनवरी से मार्च के बीच 50 लोगों की मदद से 250 चेकडैम बनाए गए। इसमें 7 लाख रुपए खर्च हुए। बारिश शुरू हुई तो इन्हीं चेकडैम में पानी जमा होने लगा, जो जमीन में समाने लगा। बचा हुआ पानी चेकडैम के रास्ते नालियों से होते हुए पहाड़ी की तराई में बने तालाब में जमा होने लगा।
तकरीबन 4 हेक्टेयर बंजर जमीन, जिस पर गाजर घास, कचरा फैला हुआ था, उसे साफ किया गया। अब यह जमीन तालाब में बदल चुकी है। अभयारण्य में पीछे की तरफ बावड़ी भी थी, जो लगभग बर्बाद हो चुकी थी। इस बावड़ी की भी साफ-सफाई हुई। इसे भरने वाली चैनल काे साफ किया तो यह भी बारिश के पानी से लबालब हो गई।
बारिश की शुरुआत में ही तालाब फुल हो गया
रालामंडल अधीक्षक दिनेश वास्कले और रेंजर योगेश यादव के मुताबिक तालाब में भरपूर पानी जमा हो गया है। जंगली जानवरों को बारिश खत्म होने के बाद पानी के लिए भटकना नहीं होगा। खासकर गर्मी के दिनों में नहाने से लेकर पीने तक के लिए पानी यहां मिल सकेगा। बारिश की शुरुआत में ही यह पूरा भरा गया है। अभी बारिश के तीन महीने बचे हैं। तालाब में रिसाव के बाद पानी ठहरने लगेगा, जो अप्रैल, मई तक रहेगा।
बावड़ी का पानी भी खींच सकेंगे
होलकर कालीन बावड़ी भी पूरी क्षमता से भरा जाएगी। अभी यह आधी से अधिक भरी हुई है। तालाब में जलस्तर कम हुआ तो मोटर लगाकर बावड़ी का पानी इसमें छोड़ सकते हैं। गर्मी में पानी का बंदोबस्त ट्यूबवेल या टैंकर से करना पड़ता था। अगली गर्मी में वैकल्पिक व्यवस्था कम ही करना पड़ेगी।
बढ़ रहा जंगली जानवरों का कुनबा
रालामंडल अभयारण्य में जंगली जानवरों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है। 4 तेदुए, 20 लकड़बग्धे, 30 जंगली सूअर, 24 कबरबिज्जू, 42 सेही, 80 नीलगाय, 80 चीतल, 50 ब्लैकबग, 2 चिकारा, 5, भेड़की मौजूद हैं। इसके अलावा 250 से ज्यादा मोर, 85 प्रजातियों की चिड़िया भी हैं।
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