- राजधानी के संग्रहालयों में रखी है भोपाल और आसपास मिलीं, 8वीं से लेकर 10वीं शताब्दी की विघ्नहर्ता गणेश की प्रतिमाएं
भगवान गणेश वास्तव में प्रकृति की शक्तियों का विराट रूप हैं। मुद्गल और गणेश पुराण में विघ्नहर्ता गणेश जी के 32 मंगलकारी रूप बताए गए हैं। इनमें वे बाल रूप में हैं तो किशोरों वाली ऊर्जा भी उनमें मौजूद है। वे योगी भी हैं और नर्तक भी।
ऐसे ही स्वरूपों को अगर आप देखने के इच्छुक है तो आपको राजधानी के संग्रहालयों तक आना होगा। यहां आपको विभिन्न स्वरूप में गणेश प्रतिमाएं देखने को मिलेंगी। इनमें से अधिकांश प्रतिमाएं 8वीं से 10 वीं शताब्दी की हैं। यह सब भोपाल और आसपास ही मिली हैं।
आशापुरी संग्रहालय... यहां सबसे बड़ा मंदिर
आशापुरी गांव (रायसेन जिले) में भूतनाथ की पहाड़ी पर परमार कालीन (राजा भोज के शासन) भगवान गणेश की 6 फीट की प्रतिमा नृत्य की मुद्रा में मिली है। इसे गणेश का पूर्णावतार मानते हैं। आशापुरी संग्रहालय के प्रभारी आशुतोष उपरीत ने बताया कि यहां 24 मंदिरों के ग्रुप में यह सबसे बड़ा मंदिर मिला है। चार भुजाधारी गणेश कुंतल मुकुट पहने, मृदंग और बांसुरी की धुन पर नृत्य कर रहे हैं।
राज्य संग्रहालय... 10वीं शताब्दी की मूर्ति
राज्य संग्रहालय की मास्टर गैलरी में शक्ति गणेश की प्रतिमा है। संग्रहालय के पुरातत्वविद इंद्रपाल यादव ने बताया कि हमेशा भगवान गणेश रिद्धि व सिद्धी के साथ दिखाई देते हैं। यहां 10वीं शताब्दी की एक ऐसी प्रतिमा है, जिसे शक्ति गणेश कहा गया है। इसमें भगवान गणेश अपनी पत्नियों के साथ नहीं, बल्कि अपनी आंतरिक आदि शक्ति के साथ दिखाई दे रहे हैं। यह प्रतिमा कुन्ना मंदसौर से मिली है।
कार्तिकेय से मल्लयुद्ध करके प्रथम पूज्य बने
राज्य संग्रहालय के प्रभारी मनोहर उइके ने बताया कि मास्टर गैलरी में रखी भगवान गणेश व भाई कार्तिकेय की इस प्रतिमा में मल्ल युद्ध दिखाया गया है। इसे जीतकर ही भगवान गणेश बुद्धि और प्रथम पूज्य देवता बन गए हैं। यह प्रतिमा आठवीं शताब्दी की है।
मां पार्वती कर रहीं उपासना
बिड़ला राज्य संग्रहालय में 10वीं शताब्दी की प्रतिमा में मां पार्वती शिव व गणेश की उपासना कर रही हैं। कंसल्टेंट बीके लोखंडे ने बताया कि इसमें यह बताया गया है कि भगवान शंकर व पार्वती की शादी से पहले भी भगवान गणेश पूजे जाते थे।
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