- आकर्षण व आस्था का केंद्र नागयुग्म की प्रतिमा
- नाग-नागिन का मानवाकार उर्ध्व भाग अंजलि मुद्रा में तथा सर्पाकार कटि प्रदेश (कमर) परस्पर कुंडली में गुथे हुए
सुनार नदी के तट स्थित सूर्य मंदिर में सूर्य भगवान की नौवीं सदी की पाषाण प्रतिमा के अलावा मंदिर की बाहरी दीवारों पर चारों ओर व परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं है। ये प्रतिमाएं भी नौवीं और दसवीं सदी की मानी जाती हैं। इन्हीं प्रतिमाओं में एक मंदिर की पिछली दीवार पर जड़ी है नागयुग्म प्रतिमा। यह प्रतिमा आकर्षण और आस्था का केंद्र है। श्रद्धालु विभिन्न पर्वों पर इनका पूजन करते हैं। नागपंचमी पर इसका विशेष पूजन होता है।
मानवमुखी नागयुग्म प्रतिमा में कमर के नीचे का भाग सर्प आकार का है तो उपर का भाग मानव का। सूर्य मंदिर की पिछली दीवार पर जड़ी यह नागयुग्म मूर्तिकला की दृष्टि से तो श्रेष्ठ है ही, धार्मिक दृष्टि से इसका विशेष महत्व है। प्रतिमा में नाग-नागिन के मस्तिष्क के उपर तीन-तीन सर्प फनों का मुकुट अथवा छत्र है। वे कुंडल, केयूर, कंकड़ तथा कटि सूत्र पहने हुए हैं।
नाग-नागिन का मानवाकार उर्ध्व भाग अंजलि मुद्रा में तथा सर्पाकार कटि प्रदेश (कमर) परस्पर कुंडली में गुथे हुए हैं। नीचे के भाग में अनुचर वृश्चिक की आकृति अंकित है। इस नाग-नागिन के मुख मंडल पर सौम्यता का भाव दिखता है। इतिहासकार डाॅ. एसएम पचाैरी बताते हैं कि सूर्य मंदिर नौंवी सदी का है जिस कारण यहां की भी प्रतिमाएं समकालीन है। नागयुग्म समेत सभी प्रतिमाएं नौंवी सदी की हैं।
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