महाराजा शिवाजी राव होलकर का राज्याभिषेक 1886 में राजबाड़ा में हुआ था। इस कार्यक्रम में बाल गंगाधर तिलक भी शामिल हुए थे। उस वक्त मराठा रियासतों पर उनका गहरा प्रभाव था। उन्हें बुलाने की खास वजह थी कि गणेशोत्सव, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक एवं क्रीड़ा गतिविधियों को आजादी के आंदोलन से जोड़कर क्रांति की अलख जगाई जाए।
इसी तारतम्य में आगे जाकर 30 जुलाई 1908 को शुरू हुए गणेशोत्सव की सुबह ईस्टर्न इंडिया कंपनी तोपखाना के प्रांगण से एक जुलूस निकाला गया। इसमें झंडे, बैनर, हाथी, घोड़े, बोलिया सरकार की तरफ से दिए गए थे। जुलूस में तिलक की जय, वंदे मातरम एवं शिवाजी की जय के नारे लग रहे थे। इस जुलूस में 400 से ज्यादा स्कूली छात्र और क्रांतिकारी विचारों के लोग शामिल हुए थे।
शराब पीना पाप है, देश भक्त बनो
चित्र 1917 में खजूरी बाजार के नजदीक का है। इसमें छात्रों द्वारा जुलूस निकाला गया था। हाथों में बाल गंगाधर तिलक का फोटो है, जिस पर लिखा है ‘शराब पीना पाप है, देश भक्त बनो’। 19वीं शताब्दी के अंत तक बाल गंगाधर तिलक का केसरी समाचार पत्र इंदौर में काफी पढ़ा जाता था।
अंग्रेजों को देते थे चकमा
गणेशोत्सव की आड़ में क्रांतिकारी देश की आजादी की अलख जगाए हुए थे। अंग्रेज किसी भी तरह के जुलूस, आयोजनों एवं आंदोलनों पर नजर रखते थे। इसलिए अंग्रेजों को चकमा देने के लिए क्रांतिकारी अपना पूरा कार्यक्रम बदल देते थे। महाराजा शिवाजी राव होलकर और बोलिया सरकार गोपनीय तौर इन आंदोलनों के लिए सहायता प्रदान करते थे। 1918 के आसपास इंदौर की सूती मिलों द्वारा भी गणेश उत्सव मनाया जाने लगा। मिल मजदूर चंदा कर गणेशोत्सव की झांकी बनाने लगे। यह सब आंदोलन का ही हिस्सा था।
(जैसा इतिहासकार जफर अंसारी ने शमी कुरैशी को बताया।)
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