आज से पितृ शुरू हो गया है। जो कि 25 सितंबर तक रहेगा। इस दौरान तिथियों की घट-बढ़ के चलते 12 तारीख को दूसरा और तीसरा दोनों श्राद्ध किया जाएगा। इस तरह कुल 16 दिनों का पितृ पक्ष रहेगा। इन दिनों में पितरों का तर्पण और विशेष तिथि को श्राद्ध करना जरूरी होता है। इन दिनों में पितरों के नाम से श्राद्ध, पिंडदान और ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है।
अपने पितरों को तृप्त करने और देवताओं, ऋषियों या पितरों को काले तिल मिला हुआ जल चढ़ाने की प्रक्रिया को तर्पण कहते हैं। वहीं, पितरों को तृप्त करने के लिए पिंडदान और ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है। इन तीनों को श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध पवित्र नदियों के किनारे या गया तीर्थ में करने का विधान है। न कर पाएं तो घर में एकांत में या किसी गौशाला में जाकर भी किया जा सकता है।
ऐसे करें श्राद्ध
1. घर पर ही श्राद्ध करने के लिए श्राद्ध वाली तिथि पर सूर्योदय से पहले उठकर नहाएं।
2. साफ कपड़े पहनकर पितरों की तृप्ति के लिए श्राद्ध और दान का संकल्प लें। श्राद्ध होने तक कुछ न खाएं।
3. दिन के आठवें मुहूर्त यानी कुतुप काल में श्राद्ध करें। जो कि 11.36 से 12.24 तक होता है।
4. दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएं पैर को मोड़कर, घुटने को जमीन पर टीका कर बैठ जाएं।
5. तांबे के चौड़े बर्तन में जौ, तिल, चावल गाय का कच्चा दूध, गंगाजल, सफेद फूल और पानी डालें।
6. हाथ में कुशा घास रखें और उस जल को हाथों में भरकर सीधे हाथ के अंगूठे से उसी बर्तन में गिराएं। इस तरह 11 बार करते हुए पितरों का ध्यान करें।
7. पितरों के लिए अग्नि में खीर अर्पण करें। इसके बाद पंचबलि यानी देवता, गाय, कुत्ते, कौए और चींटी के लिए अलग से भोजन निकाल लें।
8. ब्राह्मण भोजन करवाएं और श्रद्धा के अनुसार दक्षिणा और अन्य चीजों का दान करें।
इन बातों का रखें ध्यान
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितर लोक दक्षिण दिशा में होता है। इस वजह से पूरा श्राद्ध कर्म करते समय दक्षिण दिशा की ओर मुंह होना चाहिए। पितृ तिथि के पर सुबह या शाम में श्राद्ध न करें। ग्रंथों में इसकी मनाही है। श्राद्ध कर्म हमेशा दोपहर में करना चाहिए।
तर्पण में दूध, तिल, कुशा, फूल और जल से पितरों को तृप्त किया जाता है। जल के तर्पण से, पितरों की प्यास बुझती है वरना पितृ प्यासे रहते हैं। इसलिए श्राद्ध के दिनों में जरूरी चीजें न भी जुटा पाएं तो कम से कम जल से तो तर्पण जरूर करना चाहिए।
पिता का श्राद्ध बेटा करता है। एक से ज्यादा पुत्र हो तो बड़े बेटे को ही श्राद्ध करना चाहिए। बेटे के न होने पर, पत्नी को श्राद्ध करना चाहिए। पत्नी न हो तो सगा भाई श्राद्ध कर सकता है। ब्राह्मणों को भोजन करवाने और पिंड दान करने से, पितरों को भोजन मिलता है। वस्त्रदान से पितरों तक कपड़े पहुंचाए जाते हैं। पूर्वजों का तर्पण, हर पूर्णिमा और अमावस्या पर करना चाहिए।
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