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पोषण आहार:टेक होम राशन के 150 करोड़, होम फूड के 100 करोड़ रोके; कैग रिपोर्ट पर जवाब देने की तैयारी में सरकार

तीन महीने से मानदेय नहीं दिया, पाउडर भी नहीं मिल रहा, 5 करोड़ बकाया - Dainik Bhaskar

तीन महीने से मानदेय नहीं दिया, पाउडर भी नहीं मिल रहा, 5 करोड़ बकाया

मप्र में पोषण आहार व्यवस्था पर महालेखाकार यानी कैग की रिपोर्ट आने के बाद से सियासी हंगामा मचा हुआ है। इसी हंगामे को थामने और रिपोर्ट पर जवाब देने की तैयारी सरकार ने कर ली है। इस बीच खबर है कि महिला बाल विकास विभाग ने शहरी और ग्रामीण दोनों आंगनवाड़ियों में बंटने वाले पोषण आहार का 250 करोड़ रु. का भुगतान फिलहाल रोक रखा है। हालांकि विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि भुगतान के लिए बजट नहीं  है। बाद में करेंगे।

इसमें 150 करोड़ रु. टेक होम राशन के हैं, जबकि 100 करोड़ रु. हॉट कुक फूड का है। इन्हें सप्लाई करने वाले महिला स्व सहायता समूह और निजी संस्थाएं पेमेंट मांग रहे हैं। बता दें कि दोनों इलाकों की आंगनवाड़ियों में दो तरीकों से पोषण आहार दिया जाता है। शहरों में हॉट कुक फूड बांटा जाता है। ये काम निजी ठेकेदार व कुछ समूह करते हैं। इसका दो महीने का भुगतान अटका है। भुगतान न होने से सप्लाई पर असर पड़ रहा है। जबकि ग्रामीण आंगनवाड़ियों के लिए 7 ऑटोमेटिव प्लांट में पोषण आहार बनता है। इन प्लांट को स्व सहायता समूह चलाते हैं।

पोषण मिशन में 3 साल से नियुक्ति नहीं

केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने राज्य की कड़ी आपत्ति में हेल्प डेस्क की नियुक्ति नहीं होने पर एतराज जताया है। केंद्र की गाइडलाइन के मुताबिक पोषण मिशन के लिए डेस्क पर 1 हजार लोगों की नियुक्ति की जानी है। कांग्रेस सरकार में नियुक्तियों को लेकर गड़बड़ी सामने आने पर शासन ने निरस्त कर दी थी। इसके बाद तीन साल में विभागीय अफसर नियुक्ति नहीं कर पाए है। इसके टेंडर 5 बार निरस्त हो चुके हैं।

कमियां यहां भी... तीन महीने से मानदेय नहीं दिया, पाउडर भी नहीं मिल रहा, 5 करोड़ बकाया

  • आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को तीन माह से मानदेय नहीं मिला है। इन्हें एक किश्त के साढ़े 5 हजार रुपए ही दिए जा रहे हैं, जबकि हर महीने साढ़े चार हजार बाकी हैं।
  • सांची दूध डेयरी से आंगनवाड़ी के बच्चों को दूध पाउडर मिलता था। इस पावडर के लगभग 5 करोड़ रुपए बकाया होने से सप्लाई रोक दी गई।
  • केंद्र सरकार ने पत्र में मोबाइल बिड पर आपत्ति ली है। विभाग ने केवल 17 जिलों को छोड़कर बाकी जिलों में खरीदी पर सफाई दी है। हकीकत में 15 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तहत तीन साल पहले खरीदी हुई थी। आंगनवाड़ी वर्कर्स ने मोबाइल फटने की शिकायत की थी, जिसके बाद विभाग ने कंपनी को ब्लैक लिस्टेड कर दिया था। हकीकत में 5 जिलों में मोबाइल खरीदी के आदेश हुए हैं, जो वर्कर्स को मिले नहीं हैं। ऐसे 16 जिले हैं, जिन्हें मोबाइल जनवरी से जुलाई महीने के बीच मिल पाए हं।

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