श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के लड्डुओं की ख्याति बढ़ती जा रही है। चार साल में देश-विदेश से आए श्रद्धालु अपने साथ 6.65 करोड़ रुपए से ज्यादा के लड्डू बतौर प्रसादी ले गए हैं। उन्होंने दान देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। कोरोना के बाद के दो साल में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग को दान में 121.45 करोड़ रुपए मिले है। इसके पहले यह आंकड़ा 65.71 कराेड़ रुपए था। वर्ष 2016-17, 2017-18, 2020-21 की गणना 1 सितंबर से 30 अगस्त तक की गई है, जबकि 2021 से 2022 की गणना 1 सितंबर से 15 सितंबर तक की है।
लॉकडाउन के बाद दर्शन को आए श्रद्धालुओंं ने दान का रिकॉर्ड बना दिया। श्रद्धालुओं ने 1 सितंबर 2021 से 2022 तक एक वर्ष के दौरान महाकाल में 81 करोड़ से अधिक दान दिया है। इतनी बड़ी राशि दान आने का यह अब तक का सबसे बड़ा रिकॉर्ड माना जा रहा है। इस दान राशि में दानपेटी, विभिन्न दान रसीद, लड्डू प्रसाद के साथ ही मंदिर की धर्मशाला से प्राप्त आय शामिल है। वर्तमान में महाकाल विस्तार योजना के तहत 752 करोड़ रुपए के काम हो रहे हैं।
इसी तरह दानदाता आगे आते रहे तो 9 साल में प्रोजेक्ट लागत दान से मिल जाएगी। कोरोना की पाबंदी खत्म हुई तो पर्व, त्योहारों के साथ ही सामान्य दिनों में ही दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ने लगी। श्रद्धालुओं की श्रद्धा ने महाकालेश्वर के खजाने को पिछले वर्षों की तुलना में दोगुना से ज्यादा भर दिया है। मंदिर में 1 सितंबर 21 से 15 सितंबर 2022 के दौरान एक वर्ष में यह दान राशि मंदिर के विभिन्न स्राेतों से प्राप्त हुई है। मंदिर के खजाने में जमा हुई बड़ी आय जो अब तक का एक बड़ा रिकॉर्ड माना जा रहा है।
सोना-चांदी का दान
- सोने का कुल सकल वजन 794.94 ग्राम। सोने का उचित वजन 633.067 ग्राम, मूल्य 34,91,943 रुपए
- चांदी का कुल सकल वजन 175485.63 ग्राम। चांदी का उचित वजन 144616.798 ग्राम, मूल्य 88,68,716 रुपए
धर्मशाला से पहली बार इस साल मिले 45 लाख से अधिक रुपए
महाकालेश्वर दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर की ओर से धर्मशाला की व्यवस्था भी करवाई जाती है। पूर्व में दो धर्मशाला थी, लेकिन महाकाल विस्तार योजना के तहत केवल एक ही धर्मशाला शेष है। इसके बावजूद इससे होने वाली आय में बढ़ोतरी हुई है। मंदिर समिति के अनुसार 2017 में धर्मशाला से 42.62 लाख, 2018 में 30.12 लाख, 2021 में 28.91 लाख और 2022 में 45.25 लाख रुपए आय हुई है।
नई व्यवस्था बनाने से बढ़ी आय
कोरोना के बाद दर्शन चुनौती से कम नहीं था। नई व्यवस्था बनाने से सुलभ दर्शन हुए। इससे पर्व, त्योहार पर श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ी और उन्होंने दान में भी कोई कमी नहीं रखी। दो साल में 121 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि दान स्वरूप मिली है।
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