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सिर्फ़ पाने में ही नहीं खोने में भी सुख है, आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं

 

  • हम सभी कुछ छूट जाने, कहीं पहुंच न पाने या किसी से मिल न पाने से दुखी हो जाते हैं। इसे फोमो यानी ‘फीयर ऑफ मिसिंग आउट’ कहते हैं।
  • इसके उलट कुछ खो देने का भी सुख लिया जाए तो वो जोमो कहलाता है यानी ‘जॉय ऑफ मिसिंग आउट।’ आइए जोमो के बारे में विस्तार से जानते हैं।

हम सूचनाओं की भरमार के युग में जी रहे हैं। कई दफ़ा हम इनके ढेर में दब से जाते हैं, जिससे ख़ुद के लिए उपयोगी और ज़रूरी विचार हमारे दिमाग़ में आते ही नहीं। नतीजतन तनाव और अवसाद से घिर जाते हैं। इसके उलट कभी-कभी खोने का सुख लिया जाए तो ज़िंदगी को बेहतर बनाया जा सकता है।
अमेरिकी विचारक रिचर्ड सॉल वुरमैन ने अपनी पुस्तक ‘इंफॉर्मेशन एंग्ज़ायटी’ में लिखा है, ‘बीते 30 सालों में इतनी सूचनाएं उत्पन्न की जा चुकी हैं जितनी बीते 5000 वर्षों में भी नहीं हुईं।’ ग़ौरतलब है कि उनकी किताब आज से 30 साल पहले लिखी गई जब सोशल मीडिया जैसे पल-पल नोटिफिकेशन भेजने वाले प्लेटफॉर्म नहीं थे।
दार्शनिक व मार्केटिंग गुरु रेगिस मैककेना ने कहा है कि हम नए तथ्यों, नए विकास, नए विचारों और नई सूचनाओं की बमबारी के बीच ऐसे फंस गए हैं कि हमें अपने अतीत या वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर ही नहीं मिलता।
कहां से आया ‘जोमो’
जोमो शब्द का प्रयोग सबसे पहले जुलाई 2012 में अमेरिकी ब्लॉगर और तकनीक उद्यमी अनिल डाश द्वारा किया गया था, जो सोशल मीडिया पर सक्रियता कम करने के संदर्भ में था। डाश ने उस साल अपने पुत्र के जन्म के बाद उसके साथ ख़ूब समय बिताया जिससे उन्हें न सिर्फ़ ख़ुशी बल्कि सुकून भी मिला। जब उन्हें पता चला कि सोशल मीडिया से दूर रहने में कितना आनंद है तो उन्होंने फोमो यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट के विपरीत जोमो शब्द दिया।
अनिल कहते हैं कि हम सोशल मीडिया जनित थकान से ग्रस्त हो चुके हैं क्योंकि यहां बेहतर दिखने के लिए हम कई फिज़ूल काम करते हैं। इनको न करने से जिं़दगी में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा लेकिन इनको करने के चलते हम थकान के शिकार हो जाते हैं और बहुत-से ज़रूरी कार्य नहीं कर पाते। सूचनाओं के आदान-प्रदान की आपाधापी में सुकून और ख़ुशी के पलों का ठीक से आनंद भी नहीं ले पाते।
बुरी हैं अधिक सूचनाएं
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने 14 अक्टूबर 1996 में सभी अख़बारों के लिए एक लेख जारी किया था, ‘इंफॉर्मेशन इज़ बैड फॉर यू।’ इस लेख में बताया गया था कि सूचनाओं की अधिकता कारोबार पर बुरा असर डाल रही है और व्यक्तिगत जीवन में मानसिक उद्विग्नता और बीमारियों का सबब भी बन रही है। साथ ही यह रिश्तों और हमारे निजी समय को भी प्रभावित कर रही है।
पुस्तक ‘द जॉय ऑफ मिसिंग आउट’ की लेखिका व मोटिवेशनल स्पीकर क्रिस्टीना क्रुक कहती हैं, ‘इंटरनेट पर हर रोज़ करोड़ों सूचनाएं दर्ज होती हैं। जब भी हम वेब पर जाते हैं, हमेशा कुछ नया मिल जाता है। इसमें उलझने पर हमारी ऊर्जा का क्षय होता है।’
इन तथ्यों के मद्देनज़र एक बात तो साफ़ है कि सूचनाओं और संदेशों की भरमार ने हमारी जिं़दगी में बेकार की व्यस्तता, चिंता, उलझन और दुविधाएं बढ़ा दी हैं। उत्पादक या सार्थक काम में व्यस्त रहने के बजाय हम फिज़ूल बातों में उलझकर अस्त-व्यस्त रहने लगे हैं।
नज़रअंदाज़ करना बेहतर है
}अच्छा होगा कि ऐसी चीज़ों पर ध्यान न दिया जाए जो हमारे कॅरियर, स्वास्थ्य और संबंधों के लिए ज़रूरी नहीं हैं, ताकि हम सुकून से जी सकें और उपयोगी काम कर सकें।
}कभी गंभीरतापूर्वक विचार करेंगे तो यह समझने में देर नहीं लगेगी कि हमारे पास सोशल मीडिया और टीवी के माध्यम से जितनी सूचनाएं या संदेश आते हैं वे ख़ास काम के नहीं होते। ये सनसनीखेज या किसी सेलिब्रिटी से जुड़े होते हैं। इन्हें चटपटा बनाकर हमारे सामने पेश किया जाता है।

एक प्रयोग इंटरनेट उपवास का
क्रिस्टीना क्रुक ने जि़ंदगी का पूरा आनंद लेने के लिए 31 दिनों तक इंटरनेट उपवास किया। इस दौरान उन्होंने काफ़ी सुकून और आनंद अनुभव किया। अपने परिजनों और मित्रों से नज़दीकी और अपनापन महसूस किया। नई आदत विकसित की, जैसे कविता लिखना। वे कहती हैं कि भीड़ के पीछे भागने से आपको कभी संतुष्टि और आनंद नहीं मिल सकता। हम अपना आत्मविश्वास अपने चुने हुए पथ पर चलकर ही बढ़ा सकते हैं, सोशल मीडिया की दिखावटी दुनिया से प्रभावित होकर नहीं।
लेखक ग्रेग मैक कियोन कहते हैं, आपको अपनी जि़ंदगी में एडिटिंग यानी काट-छांट या साफ़-सफ़ाई ठीक उसी प्रकार करते रहना चाहिए जैसे आप अपनी अलमारी की करते हैं।
लेखिका लिएन स्टीवंस ने लिखा है, फोमो में हम चीज़ों को मिस करने के डर से कई बार गै़रज़रूरी चीज़ों को भी हां करते जाते हैं। जोमो इसका विपरीत है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं कि चुपचाप बैठकर जि़ंदगी को यूं ही बीत जाने दें। जोमो उन चीज़ों को मिस करने या उनसे दूर रहने के संबंध में है जो हमारी जि़ंदगी में ख़ुशियां हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं। इन्हें मिस करने के पीछे हमारा मक़सद यही होता है कि हम वास्तविक जि़ंदगी के लिए समय, ऊर्जा और संसाधनों का सही दिशा में प्रयोग कर सकें।

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