रविवार को ज्योतिर्मठ बद्रीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया। उन्हें सोमवार शाम 5 बजे मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर में परमहंसी गंगा आश्रम में भू-समाधि दी जाएगी। भू-समाधि यानी पृथ्वी के अंदर विलीन किया जाएगा।
हिन्दू धर्म में आम लोगों का अंतिम संस्कार जलाकर किया जाता है, लेकिन साधु-संतों के लिए अंतिम संस्कार का अलग नियम है। संन्यासियों को समाधि दी जाती है।
साधु-संतों के अंतिम संस्कार की परंपरा अलग क्यों है, ये जानने के लिए हमने स्वास्तिक धाम के पीठाधीश्वर डॉ. अवधेशपुरी महाराज (पूर्व महामंत्री, उज्जैन अखाड़ा परिषद) से बात की।
डॉ. अवधेशपुरी का कहना है, 'आम लोगों को मृत्यु के बाद जलाया जाता है, लेकिन साधु-संतों को समाधि दी जाती है, क्योंकि उनका पूरा जीवन परोपकार के लिए है। यहां तक कि मृत्यु के बाद भी संत अपने शरीर से परोपकार करते हैं। जलाकर अंतिम क्रिया करने पर शरीर से किसी को लाभ नहीं होता, बल्कि पर्यावरण को हानि होती है, इसलिए साधु-संतों का अंतिम संस्कार जमीन या जल में समाधि देकर किया जाता है।
इन दोनों तरीकों में छोटे-छोटे करोड़ों जीवों को शरीर से आहार मिल जाता है। साधु-संतों के लिए अग्नि का सीधे स्पर्श करने की मनाही रहती है। इसलिए मृत्यु के बाद पृथ्वी तत्व में या जल तत्व में विलीन करने की परंपरा है। समाधि की वजह से शिष्यों को अपने गुरु का सान्निध्य हमेशा मिलता रहता है।'
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