- माइंडफुलनेस का सरल अर्थ है, वर्तमान में किए जा रहे काम पर ही पूरा ध्यान, फिर चाहे आप खाना खा रहे हों या फिर बच्चे को पढ़ा रहे हों। इस सजगता और ध्यान की स्थिति में कार्य का पूरा आनंद आता है, उसकी गुणवत्ता बढ़ती है और शरीर व मन में अतिरिक्त तनाव नहीं होता।
जीवन जीने के दो ढंग है। संसार से लिप्तता या निर्लिप्तता। संसार से इसी लिप्तता को शंकर ‘माया’ कहते है तो बुद्ध ‘दु:ख’। चेतना के शिखर को छूने वाले सभी बुद्धपुरुषों, अवतारों ने संसार से निर्लिप्तता के लिए जो जीवनदृष्टि बतलाई है वह है संसार को जागकर देखना। पूरे विश्व में आज किसी विचार या शब्द को लेकर पूर्ण सहमति है तो वह है- माइंडफुलनेस। आध्यात्मिक जगत में इसे व इससे जुड़े अभ्यासों को ‘जागरूकता ध्यान’, ‘होश की साधना’, ‘साक्षी की साधना’, ‘वर्तमान में रहना’ के नाम से जाना जाता है। यही अभ्यास वैज्ञानिक रूप से जांच व परीक्षण के बाद माइंडफुलनेस के नाम से दुनियाभर में प्रचलित हो चुका है। इसका अभ्यास कभी भी, कहीं भी किया जा सकता है- चलते हुए, बैठे हुए, खाना खाते हुए, चाय पीते हुए, बातचीत करते हुए, नहाते हुए भी।
अभी तो इसका ठीक उल्टा है
हमारे दिमाग़ में लगातार विचार चलते रहते हैं– इन्हीं विचारों की दुनिया में हम जीते हैं। हम या तो भूतकाल में जीते हैं या भविष्य में। भूतकाल की पीड़ा व भविष्य की चिंता, इन दो प्रकार के विचारों व उनकी शृंखला के भंवरजाल में धंसते जाते हैं। मनुष्य का मस्तिष्क ज़्यादातर समय में ऑटो-पायलट मोड पर रहता है। इसका अर्थ है कि हम बिना सोचे-विचारे एक स्थायी विचार शृंखला व मज़बूत आदत-व्यवहार से ही सभी दैनिक कर्म करते हैं। मोबाइल फोन इस्तेमाल के तरीक़े से लेकर किसी के व्यवहार के प्रति अपनी प्रतिक्रिया देना, दिवास्वप्न में रहना, बार-बार नकारात्मक विचारों के जाल में उलझना, सबकुछ स्वचालित होता जाता है। इसे माइंडलेसनेस कहा जाता है जिसमें सबसे ज़्यादा मानसिक व शारीरिक ऊर्जा नष्ट होती है और अर्थपूर्ण निर्णय व कार्य नहीं हो पाते हैं।
माइंडफुलनेस की ज़रूरत?
माइंडलेसनेस स्थिति से बाहर आने के लिए व ऑटो-पायलट मोड के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए पूरी दुनिया के मनोवैज्ञानिकों ने एक स्वर से माइंडफुलनेस ध्यान को कारगर बताया है और अब इसका उपयोग एक थैरेपी के रूप में मानसिक व शारीरिक समस्याओं के समाधान के लिए किया जा रहा है। एमबीएसआर नामक माइंडफुलनेस आधारित तनाव कम करने की तकनीक के खोजकर्ता जिम कोबेट जिन कहते हैं कि माइंडफुलनेस का अर्थ है जागरूक होना और जागरूकता है उसे जानना जिसे हम वर्तमान क्षण में कर रहे हैं।
दरअसल, हमारे मस्तिष्क में जो भी विचार चल रहे होते हैं, वह उन्हीं को सच मानता है। जैसे कि अगर आप कोई यात्रा वृत्तांत पढ़ रहे हैं तो मस्तिष्क ऐसा एहसास पैदा करता है कि हम वास्तव में यात्रा कर रहे हैं। यानी हमारा मस्तिष्क वास्तव में जो घटित हो रहा है और जो विचार जगत में हो रहा है उसमें भेद नहीं कर पाता है। स्नायुवैज्ञानिकों ने इसे सिद्ध करने के लिए एक प्रयोग किया। इसके तहत एक व्यक्ति को मैदान में दौड़ने की कल्पना करने को कहा गया और उसके मस्तिष्क को साथ में जांचा गया। देखा गया कि दौड़ने की कल्पना से ही उसके दिमाग़ में वही प्रतिक्रिया हुई जो उसके वास्तव में दौड़ने से होती। ऐसे में शरीर में एक तनाव पैदा हुआ।
आज जीवन के प्रत्येक पहलू में यह देखने को मिल रहा है। हम जब भी खाना खाते हैं तो हम किसी विचार में या भाव में, मोबाइल में, टेलीविज़न में व्यस्त होते हैं। ऐसे में भोजन के साथ हम उपस्थित नहीं होते हैं। तो भोजन के लिए हमारा मन व मस्तिष्क तैयार नहीं होता है ऐसे में भोजन को पचाने के लिए जो पाचक रस चाहिए वो उस समय स्रावित नहीं होते हैं। पाचक रसों की शुरुआत मुंह में लार से होती है। लार तभी बनती है जब हम भोजन की तरफ़ पूरी तरह से जागरूक होते हैं। मानसिक व्यस्तता के चलते अधिक भोजन भी कर लिया जाता है। कई बार तो हिंसात्मक दृश्यों को देखते हुए भी भोजन कर लिया जाता है। ऐसे में वह भोजन विषाक्त हो जाता है। इसी का परिणाम है पाचन संबंधी बीमारियां जो कि समस्त बीमारियों की जनक हैं।
करके देखें दो प्रयोग
शरीर की मूलभूत आवश्यकताएं हैं– श्वास व भोजन। यदि यही ठीक से न ग्रहण किए जाएं तो व्यक्ति बीमार हो जाता है। सभी समस्याओं का यही कारण है फिर चाहे वह हृदय संबंधी हो, तनाव संबंधी या पाचन संबंधी।
पहला : सजग सांस
वियतनाम के मशहूर बौद्ध विचारक तिक न्हात हन्ह कहते हैं कि बिना किसी प्रकार के परिवर्तन किए अपनी आती-जाती सांसों को देखना माइंडफुलनेस ब्रीदिंग है। चूंकि हम सभी तनाव में रहते हैं– तनाव में हम सभी की सांस उथली चलती है। अब जागरूकता के साथ अपनी आती-जाती सांसों को देखें, आती सांस को अपनी नाक में महसूस करें– उसे छाती से जाते हुए, अंतिम तक देखें फिर लौटते हुए देखें। हवा की गर्माहट व ठंडक को महसूस करें। आप पाएंगे कि आपका मन व शरीर अब रिलैक्स होने लगा, विचारों की गति कम होने लगी। इस अभ्यास से तनाव के स्तर में तेज़ी से कमी आती है। इस अभ्यास को कभी भी कहीं भी किया जा सकता है।
दूसरा : सिर्फ़ खाना
खाने संबंधी प्रयोग की शुरुआत किसी एक चीज़ से कीजिए। उस समय फोन इत्यादि से दूर रहें।
– कोई भी एक फल जैसे सेब या संतरा लें। – अब बैठ जाएं और अपने आसपास के वातावरण को जागरूक होकर महसूस करें। – सबसे पहले ख़ुद को रिलैक्स करने के लिए एक मिनट के लिए सांसों पर ध्यान लगाएं। – उस फल को अपने हाथों में लें और उसके वज़न, आकार, तापमान को महसूस करें। – आंखों को धीरे से बंद करें और उस फल को अपनी नाक के पास लाएं, उसकी खुशबू लें। – उसके बाद उसे छीलें। छीलते समय रस की जो बूंदें आप अपने हाथों पर गिरते देख रहे हैं उनकी ठंडक को महसूस करें। – अब छीले हुए फल को धीरे-धीरे अपने मुंह की तरफ लाएं तब उसे खाने व काटने की जल्दबाज़ी न करें, उसे पहले अपने मुंह में घुमाएं। – जब दांतों से काटें तो इस प्रक्रिया को पूरी तरह से महसूस करें। – एक-एक कौर को प्रेम व धन्यवाद भाव से धीरे-धीरे चबाएं। – इसी तरह से अपने भोजन को भी जागरूक होकर ग्रहण करने का अभ्यास करें।
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