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पितरों के पुनर्जन्म का पितृ-ऋण से कैसे है नाता?

श्राद्ध अनुष्ठान। इसमें मसले हुए चावल के गोले अर्पित किए जाते हैं। - Dainik Bhaskar

श्राद्ध अनुष्ठान। इसमें मसले हुए चावल के गोले अर्पित किए जाते हैं।

कई दिनों से डरावने दृश्यों ने ऋषि जरत्कारू को परेशान कर रखा था। दृश्यों में कुछ बूढ़े पुरुष एक अंधेरे, अथाह गड्ढे के पार फैली कगार से उल्टे लटके हुए थे। 'बचाओ हमें,' वे चिल्लाए। 'कौन हो तुम?' ऋषि ने पूछा। बूढ़ों ने उत्तर दिया, 'हम पितृ हैं, तुम्हारे पूर्वज। हमें बचाओ। अपने आप को बचाओ।' 'कैसे?' जरत्कारू ने हैरान होकर सवाल किया। पूर्वज बोले, 'विवाह करके बच्चों को जन्म देकर। यदि आप ऐसा नहीं करोगे तो हम हमेशा के लिए पितृ-लोक (अर्थात पूर्वजों की भूमि) में उल्टे लटके फंसे रहेंगे और आप हमेशा के लिए पुत नामक नरक में फंसे रहोगे।'

यह कहानी पुराणों में दोहराई गई है, जहां ऋषि अगस्त्य को भी ऐसे दृश्य दिखाई दिए। दृश्य देखने के बाद दोनों ऋषियों ने विवाह कर बच्चों को जन्म दिया। नर संतान को पुत्र और मादा संतान को पुत्री कहा गया। यह इसलिए कि उनके जन्म से उनके माता-पिता 'पुत' नामक नरक से मुक्त हुए। पुत वो जगह है, जहां बच्चों को जन्म देने से इनकार करने वाले पुरुष और महिलाएं जाते हैं।

पारंपरिक हिंदू मानते हैं कि प्रत्येक जीवित व्यक्ति अपने पूर्वजों, अर्थात पितरों, के प्रति प्रजनन करने के लिए बाध्यकारी है। इसे पितृ-ऋण कहते हैं। यह ऋण बच्चों को जन्म देकर मृतकों को भू-लोक में पुनर्जन्म लेने के लिए सक्षम बनाकर चुकाया जाता है। हिंदुओं द्वारा किए गए श्राद्ध के अनुष्ठान में मसले हुए चावल के गोले ‘दांत रहित’ पितरों को इस आश्वासन के साथ चढ़ाए जाते हैं कि पितृ-ऋण चुकाया जाएगा।

लेकिन निःसंतान दंपतियों के लिए हमेशा उपाय होता था। वे बच्चा गोद ले सकते थे। वे अपने आप के लिए श्राद्ध कर सकते थे, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके कारण निर्मित पितृ-ऋण चुकाया जा सके। भगवान की प्रार्थना या किसी विशेष तीर्थ की यात्रा या दान के कृत्यों से, कर्मों का चक्र तोड़कर दंपती सभी ऋणों से मुक्ति पा सकते थे।

हिंदू मानते हैं कि अमर आत्मा तीन नश्वर शरीरों के भीतर स्थित है। पहला शरीर मांस से बना है, जिसे हम छू और महसूस कर सकते हैं। दूसरा शरीर तंत्रिकाओं की ऊर्जा से बना है जो मांस को जीव देती है। तीसरा शरीर आत्मा से बना है। यह शरीर अदृश्य है और उसमें कर्म के ऋण व पुण्य जमा हैं। जब तक आत्मा शरीर पिछले जन्मों में संचित ऋण और पुण्यों से मुक्त नहीं होता, तब तक आत्मा जीवितों की भूमि में लौटने और पिछले कर्मों के कारण निर्मित हुईं परिस्थितियों का अनुभव करने के लिए बाध्य है।

किसी व्यक्ति की मृत्यु पर उसका पहला और दूसरा शरीर मरता है, लेकिन तीसरा शरीर नहीं मरता। विभिन्न अंतिम संस्कारों के माध्यम से आत्मा शरीर को भू-लोक से वैतरणी नदी के पार 'पितृ-लोक' तक यात्रा करने के लिए प्रोत्साहन और सहायता दी जाती है। जहां पितृ-लोक तक की यात्रा श्मशान भूमि के माध्यम से होती है, भू-लोक तक की यात्रा मां के गर्भ के माध्यम से होती है। वैतरणी नदी पार करते समय या मां के गर्भ से यात्रा करते समय आत्मा शरीर पिछले जन्मों की सभी यादें भूल जाता है।

कुछ आत्माएं भू-लोक से मृत्यु-लोक की यात्रा नहीं कर पाती हैं। इसलिए वे पितृ नहीं बनती; वे भू-लोक में पिशाच या भूत बनकर रहती हैं। पिशाच को वेताल भी कहा जाता है। पिशाच और वेताल दोनों को उल्टा लटके हुए दिखाया जाता है, आमतौर पर श्मशान भूमि में एक बरगद के पेड़ से। यह संभवतः इसलिए है कि उनका मानव शरीर नहीं है और इसलिए उन पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव नहीं होता।

चूंकि वे उल्टे लटके होते हैं, इसलिए विश्व को देखने का उनका दृष्टिकोण भी अस्त-व्यस्त होता है। वे भू-लोक में होने वाली हर बात पर सवाल उठाकर जीवितों को पीड़ा पहुंचाते हैं। इसलिए उन्हें लोगों का अंतःकरण माना जाता है और दुःस्वप्नों का स्रोत भी। फलस्वरूप उन्हें शांत करना या उनसे बचना आवश्यक है। कई लोग मानते हैं कि यदि कोई व्यक्ति या घर पिशाचों से पीड़ित है, तो वहां अंतिम संस्कार किए जाने चाहिए। यह इसलिए कि संभवतः किसी ने भी पिशाचों के लिए ये संस्कार नहीं किए हो, जिस कारण वे वैतरणी के इस पार ही फंसकर क्रोधित पिशाचों में बदल गए।

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