दुनिया की विरली प्राकृतिक संपदाओं के दीदार करने हो तो पूर्वोत्तर भारत के मेघालय की सैर आपको ज़रूर करनी चाहिए। बादलों का घर कहे जाने वाले मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से एक ऐसे ही सफ़र की शुरुआत होती है, जहां सैकड़ों साल पुरानी प्राकृतिक धरोहर हैं, जिन्हें देखने देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर से पर्यटक विरले जंगलों के बीच आते हैं और अचंभित होकर लौटते हैं। झरनों, गुफाओं और जड़ों से बने दुमंज़िले पुल जैसी जगहों की इस यादगार यात्रा में मंज़िल के साथ-साथ पड़ाव भी बेहद खूबसूरत हैं।
मैकडोक पुल
डबल डेकर रूट ब्रिज जाते हुए शिलॉन्ग-चेरापूंजी हाइवे पर सबसे पहला पड़ाव मैकडोक पुल है। सुकूनदेह शांति से पगी इस जगह की ख़ास बात यह है कि यहां सिने अभिनेता सलमान खान की फ़िल्म क़ुर्बान के कुछ दृश्य फ़िल्माए गए थे। सोहरा के राजा के नाम पर इसे दुआन सिंह सियेम पुल के नाम से भी जाना जाता है। पुल के छोर से एक पगडंडी घने जंगल की तरफ़ जाती हैं, जहां कई प्रजातियों के पेड़ लगाए गए हैं। पगडंडी आपको एक व्यू पॉइंट तक लेकर जाती है, जहां से मैकडोक डिम्पेप घाटी के बेहद खूबसूरत नज़ारे दिखाई देते हैं।
तिंगम मासी व्यू पॉइंट
कुछ आगे बढ़ने पर एक पगडंडी आपको पहाड़ी के ऊपर ले जाती है, जहां से ख़ासी पठारों का असीमित विस्तार दिखाई देता है। सामने चेरापूंजी की पहाड़ियां दिखाई देने लगती हैं। यहां की चोटी के समतल विस्तार पर एक खूबसूरत पगडंडी बनाई गई है, जिसके किनारे एक छोटी झील और कुछ बेंच भी हैं। यहां बैठकर आस-पास के दिलख़ुश नज़ारों का लुत्फ़ लेना अविस्मरणीय अनुभव बन जाता है।
वा काबा झरना
यात्रा का अगला पड़ाव सोहरा के इस मशहूर झरने पर आकर थमता है। दो स्तरों पर बने इस विशाल झरने की छटा ख़ासकर बरसात के मौसम में आकर्षक हो जाती है। खड़ी चट्टान से सैकड़ों मीटर नीचे खाई में गिरता हुआ यह झरना सफ़र को रोमांचक बना देता है। सुरक्षा के लिहाज़ से इस झरने के किनारों पर बाढ़ भी लगाई गई है, ताकि पर्यटक क़रीब जाकर सुरक्षा के साथ इसका लुत्फ़ ले सकें।
मौसमाई झरना और गुफाएं
पर्यटकों के बीच यह झरना सेवन सिस्टर वॉटरफ़ॉल के नाम से भी मशहूर है। चूने के पत्थरों की चट्टानों से निकलकर क़रीब हज़ार फ़ीट की ऊंचाई से गिरने वाले इस झरने को भारत के सबसे ऊंचे झरनों में गिना जाता है। झरने की सात हिस्सों में बंटी जलधाराओं को पूर्वोत्तर के सात राज्यों के प्रतीक के तौर पर भी देखा जाता है। पास ही चूने के पत्थर की चट्टानों के बीच बनी ऐतिहासिक गुफाएं भी हैं। ज़मीन के अंदर पानी के रिसाव और भू-कटाव से बनी ये प्राकृतिक गुफाएं पर्यटकों को बहुत पसंद आती हैं।
डबल डेकर रूट ब्रिज
चेरापूंजी या सोहरा के बाद ईस्ट ख़ासी हिल्स के घने जंगलों के बीच नोंग्रियाट नाम के गांव से एक ऐसे पुल तक जाने की यात्रा शुरू होती है, जिसे देखकर अपनी आंखों पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है। घने जंगलों में तीखी ढलान पर क़रीब साढ़े तीन हज़ार सीढ़ियां उतरने और दो से तीन घंटे तक चलने के बाद आप तिर्ना नाम के एक ख़ासी गांव में पहुंचते हैं, जहां आपको डबल डेकर रूट ब्रिज के दीदार होते हैं। उमशियांग नदी के ऊपर बने क़रीब दो सौ साल से भी ज़्यादा पुराने इस दुमंज़िला पुल की अनूठी बात ये है कि यह पुल सिर्फ़ पेड़ों की जड़ों से बना है। क़रीब पचास मीटर लम्बे और डेढ़ मीटर चौड़े इस दो स्तरीय पुल की मज़बूती इस बात से समझी जा सकती है कि इस पर पचास लोग एक साथ खड़े हो सकते हैं। रबड़ के पेड़ों की जड़ों को विस्तार देकर बनाया गया यह पुल प्रकृति और इंसान के बीच के रिश्ते की मज़बूती का प्रतीक भी है।
कैसे जाएं
मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से चेरापूंजी या सोहरा होते हुए डबल डेकर रूट ब्रिज की यह यात्रा क़रीब 120 किलोमीटर की है, जिसके बाद दो से तीन घंटे का ट्रैक करना होता है। नज़दीकी हवाई अड्डा शिलाॅन्ग से तीस किलोमीटर दूर उम्रोई में है। गुवाहाटी तक आप ट्रेन से भी यात्रा कर सकते हैं, जहां से खूबसूरत हाईवे पर क़रीब दो घंटे का सफ़र तय करके आप शिलाॅन्ग पहुंच सकते हैं। शिलॉन्ग से आगे के लिए आप टैक्सी ले सकते हैं। सोहरा तक सरकारी बसें भी चलती हैं।
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