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नवजातों की मौतों का सिलसिला कब तक...!:दो नवजातों की जांच रिपोर्ट क्लोज, नहीं चला मां-परिजनों का पता

एरोड्रम क्षेत्र के छोटा बांगड़दा में नगर निगम की कचरा गाडी में नवजात (बच्ची) के फेंके गए 5 माह के अविकसित शव के मामले में पुलिस को 24 घंटे बाद भी सुराग नहीं लगा है। शॉर्ट पीएम रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ है कि इस अविकसित बच्ची का जन्म 12 से 36 घंटे पहले हुआ था। पुलिस ने मंगलवार को साहू नगर व पंचवटी नगर के इलाकों में बच्ची के बारे में पूछताछ की। पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर भी जांच की कोशिश कर रही है। हालांकि इससे पहले पांच माह पहले धार रोज पर भी सड़क किनारे लगी कचरा पेटी में एक साथ दो जुड़वां नवजात मिले थे। इनका अभी तक पता नहीं चला है। पुलिस ने यह जांच रिपोर्ट क्लोज कर दी है।

दरअसल, इस तरह के मामलों में सीधे तौर पर कोई फरियादी नहीं होने से पुलिस गंभीरता नहीं बरती जिसके चलते इसमें लिप्त महिलाएं व पुरुष पुलिस गिरफ्त से दूर हैं।

इस मासूम की आंखें भी नहीं खुली थी कि अटैची में बंद कर कचरा फेटी में फेंक दिया।
इस मासूम की आंखें भी नहीं खुली थी कि अटैची में बंद कर कचरा फेटी में फेंक दिया।

24 मई को धार रोड स्थित डस्टबिन में नगर निगम के सफाईकर्मियों को ये जुड़वां नवजात बच्चे मृत मिले थे। शहर में संभवत: जुड़वां नवजातों के फेंकने का यह पहला मामला था जबकि इसके पहले जितने भी नवजात मिले वह एक की संख्या में थे। खास बात यह कि यह मामला सीधे तौर पर जिंदा नवजातों को लाकर फेंकने (एक तरह से हत्या) का है। फिर भी इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। मामले में पुलिस ने उक्त डस्टबिन स्थल से दूर टिम्बर मार्केट व आसपास के सीसीटीवी फुटेज जुटाए लेकिन कोई ठोस सबूत नहीं मिला। एक फुटेज में दो लोग वहां से गुजरते दिखे। इनमें से एक से पुलिस ने पूछताछ की लेकिन वह तो वहां गुजर रहा था। सही मायने में जांच क्षेत्र सहित प्रसूति से जुड़े अस्पतालों से होनी थी लेकिन पुलिस ने मामले में सामान्य जानकारी ही जुटा पाई।

पांच माह पहले धार रोड पर इस कचरा पेटी में फेंके गए थे जो जुड़वा नवजात।
पांच माह पहले धार रोड पर इस कचरा पेटी में फेंके गए थे जो जुड़वा नवजात।

कहीं और कराई गई डिलीवरी

उस दौरान शहर के दो मुख्य बड़े अस्पताल एमटीएच व पीसी सेठी अस्पताल में 20 से 25 मई के बीच जुड़वां बच्चे पैदा नहीं हुए थे। PCPNDT विभाग में इसकी जानकारी इसलिए नहीं है कि विभाग का काम सभी सोनोग्राफी सेंटरों की मॉनिटरिंग करना है। सेंटरों व जिन भी अस्पतालों में सोनोग्राफी मशीनें लगी हैं वहां रोजाना कितनी सोनोग्राफी हुई, उनका स्टेट्स संबंधित महिला के नाम, पते व मोबाइल नंबर सहित रहता है, लेकिन प्रेंगनेंसी के दौरान बच्चे सिंगल हैं या टिवन्स इसकी जानकारी का प्रावधान नहीं है। इस केस में महिला एवं बाल विकास के अंतर्गत आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं से जरूर इस मामले में दिशा मिल सकती थी लेकिन पुलिस ने इस दिशा में कोई प्रयास नहीं किया। महिला एवं बाल विकास अधिकारी रामनिवास बुधोलिया ने तब बताया था कि किसी ने भी इस संबंध में जानकारी नहीं मांगी है। ऐसे ही शहर में कई प्राइवेट अस्पताल हैं जहां से पुलिस द्वारा इस घटना को लेकर भी सूत्र जुटाए जा सकते थे।

कचरा पेटी में फेंकने के पहले प्लास्टिक के बोरे में दोनों नवजात को डाला गया था।
कचरा पेटी में फेंकने के पहले प्लास्टिक के बोरे में दोनों नवजात को डाला गया था।

इन बिंदुओं पर कयास लेकिन इन्वेस्टिगेशन नहीं

- जुड़वां नवजातों का जन्म शहर से बाहर हुआ हो और यहां लाकर फेंका हो।

- मामला लिव इन रिलेशनशिप का हो।

- लड़की पैदा हुई इसलिए फेंका गया लेकिन यह तर्क भी इसलिए संभव नहीं था क्योंकि दोनों में एक लड़की व एक लड़का थी। एरोड्रम की घटना में नवजात बच्ची है।

- दोनों घटनाओं में सिर्फ महिला नहीं बल्कि दो-तीन से ज्यादा लोग लिप्त होने की आशंका है। इसके बावजूद पुलिस खाली हाथ है।

- पुलिस की लापरवाही या लेतलाली का मामलाा इसलिए भी है कि पुलिस ऐसे मामलों में मर्ग कायम कर जांच बंद कर देती हैं। बीते सालों में सैकड़ों ऐसे मामले हुए लेकिन पुलिस ने ठोस जांच ही नहीं की।

- पुलिस की जांच सरकारी के अलावा निजी अस्पतालों, अन्य क्षेत्रों के सीसीटीवी कैमरों, महिला व बाल विकास से समन्वय सहित अन्य प्रमुख बिंदुओं पर होनी थी लेकिन नहीं हुई। इसके चलते आरोपी गिरफ्त से दूर हैं।

कचरा पेटी-गाडियां को बनाया नवजातों को फेंकने का ठिकाना

इन दोनों घटनाओं में समानताएं ये हैं कि नवजातों को फेंकने के लिए कचरा पेटी या कचरा गाडी का उपयोग किया गया ताकि किसी को शक न हो। दोनों ही नवजातों को डिलीवरी के तुरंत बाद फेंका गया। यहां तक कि उनकी नाल भी नहीं कटी थी। एरोड्रम के छोटा बांगडदा के सोमवार को नवजात के अटैक में बंद कर फेंकने का मामला तो और भी चौंकाने वाला है। दरअसल निगम की कचरा पेटी रोज जिन कॉलोनियों-मोहल्लों में जाती है तो वहां जब रहवासी गाडी में कचरा डालते हैं तो सूखा व गीला कचरा अलग-अलग पेटियों में डाला जाता है। इसके बावजूद बड़े शातिराना तरीके से अटैची को कचरा गाडी में डाला फेंका गया। ऐसे में अब पुलिस की जांच सीसीटीवी फुटेज के साथ दो कॉलोनियों पर केंद्रित हो गई हैं जहां से निगम की गाडियों ने कचरा इकट्‌ठा किया। इसके तहत इन क्षेत्रों में पिछले दिनों गर्भवती रही महिलाओं की जानकारी जुटाई जा रही है।

दो दशकों में केवल एक केस में आरोपी प्रेमी युगल पकड़े, वे भी हो गए बरी

बीते सालों में जब शहर में जगह-जगह कचरों का ढेर लगता था तब नवजातों को ऐसे स्थानों, नालों आदि में फेंका जाता था। फिर पीसीपीएण्डडीटी एक्ट लागू होने के बाद सभी सोनोग्राफी व अस्पतालों पर शिकंजा कसा गया। ट्रैकर सिस्टम बंद हो गया तो ऐसी घटनाएं कम हुई लेकिन खत्म नहीं हुई। संभव है कि इस तरह के केसों में डिलीवरी प्राइवेट अस्पतालों या कहीं और कराई गई हो। 2006 में तत्कालीन एडिशनल एसपी अमित सांघी ने रावजी बाजार में हुए एक ऐसे मामले में टीम गठित की थी। जांच में पाया गया कि नवजात को जन्म देने वाली मां रावजी बाजार में ही रहती है। उसकी डिलीवरी एमवाय अस्पताल में कराई गई थी जहां उक्त युवती ने अपना और प्रेमी का नाम पति-पत्नी के रूप में गलत दर्ज कराया था। नवजात को फेंकने के मामले में युवती की मां भी लिप्त थी। पुलिस ने तीनों के खिलाफ केस दर्ज कर गिरफ्तार किया गया। विडम्बना यह कि कोर्ट में पुलिस द्वारा ठोस सबूत पेश नहीं करने के कारण आरोपियों के खिलाफ दोष सिद्ध नहीं हुए और कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। दरअसल, इस तरह के मामलों में पुलिस मर्ग कायम कर फाइल क्लोज कर देती है जबकि मामला नवजातों की हत्याओं का होता है। हाई कोर्ट एडवोकेट पंकज वाधवानी के मुताबिक यह कृत्य काफी गंभीर व मानव वध की श्रेणी में आता है। पुलिस को जांच की दिशा सिर्फ सीसीटीवी फुटेज ही नहीं अन्य बिंदुओं पर केंद्रित कर आरोपियों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करना चाहिए अन्यथा ऐसे अपराध और बढ़ेंगे।

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