करीब दो साल बाद प्रदेश में लोगों ने जमकर दीपावली मनाई, और खूब आतिशबाजी की। जिसके चलते सोमवार रात हवा में काफी प्रदूषण बढ़ गया। भोपाल, इंदौर, जबलपुर और ग्वालियर में रात करीब 1 से 2 बजे के बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 500 तक पहुंच गया। वहीं, प्रदेशभर के ज्यादातर जिलों में यह 200 के पार रिकॉर्ड हुआ।
प्रदेश में ग्वालियर सबसे ज्यादा प्रदूषित रहा। वहीं, भोपाल का नंबर दूसरा रहा। इंदौर से ज्यादा तो देवास में हवा प्रदूषित रही। जबलपुर और रतलाम में भी हवा में जहर घुला। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के 'समीर' ऐप से मिली जानकारी के अनुसार शहरों के कई इलाकों में हवा का स्तर सांस लेने लायक नहीं था। भोपाल और जबलपुर के तापमान में करीब 2 से 3 डिग्री की गिरावट रही। प्रदूषण ठंड के साथ बढ़ा।
सुबह 10 बजे के बाद भी 200 पार
प्रदेश में रात 10 बजे के बाद प्रदूषण का स्तर बढ़ना शुरू हुआ। रात 1 बजे से 2 बजे के बीच यह कई शहरों में 500 तक पहुंच गया। सुबह 4 बजे तक हवा में प्रदूषण का स्तर खतरे के पार रहा। उसके बाद इसमें कुछ कमी आई, लेकिन सुबह 10 बजे तक भी भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर, देवास, इंदौर और मंडीदीप में AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) का स्तर 200 के नीचे नहीं आ पाया था।
न्यूनतम तापमान भी एक बड़ा कारण
बीती रात कई शहरों में न्यूनतम तापमान 2 से 3 डिग्री सेल्सियस नीचे चला गया। भोपाल में यह 3 डिग्री गिरकर 14 डिग्री पर आ गया। ग्वालियर में करीब डेढ़ डिग्री गिरकर 15 और इंदौर में रात का पारा 16 डिग्री रहा। जबलपुर में करीब ढाई गिरकर 15 डिग्री रिकॉर्ड किया गया। प्रदूषण ठंड के साथ बढ़ता है, क्योंकि इस दौरान हवा भारी होने से प्रदूषण जमीन के करीब ज्यादा बढ़ जाता है।
क्या है एयर क्वालिटी इंडेक्स
एयर क्वालिटी इंडेक्स हवा की गुणवत्ता को बताता है। इससे पता चलता है कि हवा में किन गैसों की कितनी मात्रा घुली हुई है। हवा की गुणवत्ता के आधार पर इस इंडेक्स में 6 कैटेगरी बनाई गई हैं। यह है अच्छी, संतोषजनक, थोड़ा प्रदूषित, खराब, बहुत खराब और गंभीर। वहां की गुणवत्ता के अनुसार इसे अच्छी से खराब और फिर गंभीर की श्रेणी में रखा जाता है। इसी के आधार पर प्रशासन इसे सुधारने के लिए प्रयास करती है।
यह होता है पीएम 10
पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे भी छोटा होता है। धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण मिले रहते हैं। पीएम 10 और पीएम 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन और कूड़ा व पराली जलाने से ज्यादा बढ़ता है। पीएम 10 का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए।
यह होता है पीएम 2.5
पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है। इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे भी छोटा रहता है। पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है। विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है। पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है। इससे ज्यादा होने पर लोगों को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।
प्रदूषण से होती है ये तकलीफें
पीएम 2.5 बहुत छोटे होने के कारण सांस लेने पर यह हमारे फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंच जाते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्गों पड़ता है। इसके कारण आंखों में जलन, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है। खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है। इसके लगातार खराब बने रहने के कारण कैंसर और फेफड़ों संबंधी बीमारी होने लगती है।
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