आज से 505 साल पहले सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानकदेव जी महाराज 48 वर्ष की उम्र में अपनी दूसरी उदासी (जनकल्याण यात्रा) के दौरान इंदौर आए थे। पुरातन ग्रंथ गुरु खालसा में भी उनके वर्ष 1517 में हुए इस आगमन का उल्लेख है। इंदौर में कान्ह नदी के किनारे एक इमली के पेड़ के नीचे आसन लगाकर गुरबाणी शबद का गायन किया था।
बाद में ठीक उसी जगह गुरुद्वारा इमली साहिब बना। पहले श्री गुरुग्रंथ साहिब इमली के पेड़ के साथ, फिर टीन शेड और अब पक्के निर्माण में विराजित हैं। गुरु महाराज बेटमा और ओंकारेश्वर भी गए। श्री गुरु सिंघ सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष दानवीर सिंह छाबड़ा बताते हैं इस उदासी के दौरान श्री गुरुनानक जी करीब 3 माह इंदौर में रुके थे। उनके साथ भाई मर्दाना भी थे। वे रबाब (वाद्ययंत्र) बजाते और गुरुनानक जी ‘धुर की बाणी’ शबद का गायन करते थे।
1942 में रजिस्टर्ड हुआ इमली साहिब गुरुद्वारा
प्रचार प्रमुख देवेंद्र सिंह गांधी बताते हैं इमली साहिब गुरुद्वारा 1942 में रजिस्टर्ड हुआ। पहले सेवा का कार्यभार उदासी मत के पैरोकारी के पास था। बाद में होलकर स्टेट में आई पंजाब की फौज ने यहां की व्यवस्था संभाली।
इसी स्थान पर बैठ गुरुजी ने दिया था सच से जुड़ने का संदेश
- 2 बजे रात को श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश (दर्शन) होता है।
- 9 बजे रात को सुख आसान (पुन: निजी स्थान पर जाना) किया जाता है।
- 1000 श्रद्धालु हर दिन दर्शन करने आते हैं।
- 24 घंटे गुरु का लंगर उपलब्ध रहता है।
- श्री गुरु नानक देव इमली के जिस पेड़ के नीचे बैठे थे, वह स्थान आज जमीन तल से करीब 15 फीट नीचे है। इसके दर्शन के लिए गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे से तल घर में जाना होता है।
(जैसा महासचिव जसवीर सिंह गांधी ने बताया)
1961 में ऑल इंडिया सिख नेशनल कॉन्फ्रेंस इंदौर में हुई थी। इसमें देशभर के सिख गुरु आए थे। उसी का प्रचार करते सिख समाजजन।
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