- शरीर में तनाव न हो, सांस लयबद्ध हो, हर श्वास के साथ तन-मन को सकारात्मक संदेश मिले और मन प्रतिदिन निर्मल होता रहे- सच्चे अर्थों में यही सम्पूर्ण स्वास्थ्य है।
यदि किसी से पूछा जाए कि स्वास्थ्य कैसा है तो जवाब मिलेगा कि ठीक है। ठीक का मतलब, कोई बीमारी नहीं है। दुर्भाग्य से, शरीर में कोई रोग न होना स्वास्थ्य का पर्यायवाची बन गया है। आधुनिक व्यक्ति बीमारियों और अनगिनत रोगाणुओं से इतना घिरा हुआ है कि वास्तविक स्वास्थ्य को भूल ही गया है। हम बिना किसी औषधि के जीना भूल ही गए हैं।
लोग नया घर ढूंढते हैं तो पहले यह देखते हैं कि आसपास कोई अस्पताल है कि नहीं। लेकिन यह स्वास्थ्य नकारात्मक है। यह केवल रोग का निषेध है। स्वास्थ्य एक बहुत समृद्ध, ऊर्जावान, सकारात्मक घटना है। आयुर्वेद ने स्वास्थ्य का बहुत गहराई से आकलन किया है। यह नाम आयुर्वेद बहुत अर्थपूर्ण है- वेद यानी ज्ञान। आयु का ज्ञान यानी आयुर्वेद। स्व-स्थ का अर्थ है, स्व में स्थित जो स्वयं में यानी अपनी आत्मा में रहता है वह स्वस्थ है। इससे बीमारी का कोई सम्बंध नहीं है। बीमारी तो मेहमान है जिसे हमने अपने ग़लत आहार-व्यवहार से बुला लिया है।
स्वास्थ्य शरीर का स्वभाव है, निसर्गदत्त स्थिति है। मनुष्य एक त्रिवेणी संगम है; शरीर, मन और आत्मा, तीन तलों पर एक साथ जीता है। इसलिए स्वास्थ्य के सभी पहलू जब तक एक सुर में, एक लय में काम नहीं करते तब तक कोई स्वस्थ नहीं हो सकता। मान लीजिए शरीर एक आॅर्केस्ट्रा है, हर अंग इसमें एक वाद्य है। सभी वाद्य एक सुर में मिलाना बहुत आवश्यक है तभी सुमधुर संगीत बजेगा।
ख़ुद एक कर्म बन जाएं
आपका शरीर तनावरहित तभी हो सकता है जब आप क्षण-प्रति-क्षण अस्तित्व में जी रहे हों। यदि आप खा रहे हैं तो आप इस कृत्य में इतने डूब जाएं कि क्षण अनंत हो गया है; तो न कोई अतीत है और न कोई भविष्य। खाने की प्रक्रिया ही सबकुछ है। आप एक कर्म बन गए हैं। तब फिर आपका शरीर पूर्ण महसूस करेगा। यदि आप दौड़ रहे हैं, और दौड़ना आपके अस्तित्व की समग्रता बन गया है; यदि आप वे संवेदनाएं हैं जो आपके पास आ रही हैं, अगर इस दौड़ में कोई भविष्य नहीं है, कोई लक्ष्य नहीं है, दौड़ना ही लक्ष्य है - तो आप एक सकारात्मक स्वास्थ्य को जानते हैं। तब आपका शरीर तनावमुक्त होता है।
आंतरिक स्वास्थ्य के लिए...
मन को स्वस्थ करना हमारे हाथ में है, किसी डॉक्टर के नहीं, और न किसी दवाई के हाथ में। ओशो ने कुछ उपाय बताए हैं जो आपको आतंरिक स्वास्थ्य से ओतप्रोत कर देंगे। लेकिन इनका अभ्यास करना होगा, इनको सिर्फ़ पढ़ने से कुछ नहीं होगा।
लयबद्ध हो हर सांस
लयबद्ध श्वास सद्भाव पैदा करता है। जो व्यक्ति अपने जीवनकेंद्रों को विकसित और प्रभावित करना चाहता है, उसके लिए पहली चीज़ लयबद्ध श्वास है। बैठे, खड़े या चलते हुए, उसकी सांस इतनी सामंजस्यपूर्ण, इतनी शांतिपूर्ण, इतनी गहरी होनी चाहिए कि वह दिन-रात एक अलग संगीत, सांस के एक अलग सामंजस्य का अनुभव कर सके। यदि आप सड़क पर चल रहे हैं, कोई काम नहीं कर रहे हैं, तो आप गहरी, मौन, धीमी और सामंजस्यपूर्ण सांस लेंगे और यह आनंददायक होगा। स्वाभाविक रूप से सांस लेने में कुछ ख़र्च नहीं होता है और इसके लिए आपको कोई अतिरिक्त समय नहीं देना पड़ता है। रेलगाड़ी में बैठे-बैठे, सड़क पर चलते गहरी और चैन से सांस लेने की प्रक्रिया जारी रहेगी तो कुछ ही दिनों में यह प्रक्रिया स्वस्फूर्त हो जाएगी।
अपना नाम दोहराना
जब भी आप प्रसन्नता का अनुभव करें तो अपने नाम को बार-बार दोहराएं। अगर नियमित रूप से किया जाए तो आपके नाम की ध्वनि और ख़ुशी की भावना आपस में जुड़ जाती है। तो बाद में जब भी आप अपना नाम दोहराएंगे, अचानक आप पाएंगे कि कोई आनंद स्रोत छू गया है।
प्रकाश से नाता जोड़ना
रोशनी को ख़ुशियाें से जोड़ो। जब भी ख़ुशी का अनुभव हो, रोशनी को देखें; कोई भी प्रकाश चलेगा बस एक मोमबत्ती भी, लेकिन इसे तभी करें जब आप ख़ुश, रिलैक्स्ड महसूस कर रहे हों। जब भी आनंद जैसी कोई चीज़ आपके अस्तित्व में व्याप्त हो तो चंद्रमा को, सितारों को या सुबह के सूरज को या शाम के सूरज को देखें। जब भी आप प्रसन्नता का अनुभव करें तो प्रकाश का ध्यान करें, ताकि प्रकाश और सुख का गहरा संबंध हो। तीन या चार सप्ताह तक अभ्यास करने के बाद जब भी आप प्रकाश देखते हैं तो आप उस आनंद को लाने में सक्षम होंगे।
ख़ुद को सकारात्मक संदेश देना
हर सांस के साथ आप अपने अचेतन को यह सुझाव भेज सकते हैं : मैं स्वस्थ हूं, मैं बेहतर हो रहा हूं। शुरुआत में आपको शब्दों का उपयोग करना पड़ सकता है लेकिन जल्द ही शब्द एक भावना में विलीन हो जाएंगे और यह आपके शरीर, मन और सत्ता में प्रवेश कर जाएगा।
मन की शुद्धि
प्रतिदिन मन को शुद्ध करें, साफ़-सुथरा करें। इसके लिए कौन-सा डिटर्जेंट होगा? भावनाओं का रेचन मन को शुद्ध करने का एक बेहतरीन साधन है। मन का स्वभाव है कि वह दिनभर व्यर्थ विचार, भाव, प्रभाव के रूप में कूड़ा-करकट जमा करता रहता है। जिस तरह आप अपने घर की रोज़ाना सफ़ाई करते हैं, उसी तरह इस कबाड़ को साफ़ करना ज़रूरी है। यह बहुत निर्मल उपाय है। एक सुस्नात, सुव्यवस्थित मन स्वस्थ शरीर का सृजन अवश्य करेगा।
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